विद्यासागर के बहाने बंगाल में प्रतीकों की राजनीति तेज़ की ममता ने
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता में विद्यासागर की मूर्ति का अनावरण कर निकट भविष्य की राजनीतिक रणनीति का संकेत दे दिया है। कोलकाता के बीचीबीच विधान सरणी स्थित विद्यासागर कॉलेज में 6 फ़ीट ऊँची आदमकद प्रतिमा का अनावरण एक बेहद सादगीपूर्ण कार्यक्रम में हुआ। पर इसके गंभीर राजनीतिक संकेत हैं। तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ने यह संकेत दे दिया है कि वह विधानसभा चुनाव के पहले बंगाली राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाएँगी और भारतीय जनता पार्टी को 'ग़ैर-बंगाली’ व ‘बाहरी लोगों की पार्टी’ बता कर उसे कटघरे में खड़ा करेंगी।
बंगाली राष्ट्रवाद
उग्र राष्ट्रवाद के सामने बंगाली राष्ट्रवाद और उग्र हिन्दुत्व के सामने सॉफ़्ट हिन्दुत्व को वह चुनावी मुद्दा बनाएँगी। प्रतीकों की राजनीति करने वाली बीजेपी को ममता प्रतीकों की राजनीति से ही जवाब देंगी, अंतर इतना होगा कि ये प्रतीक बंगाली अस्मिता से जुड़े होंगे जो सीधे बंगालियों को अपील करेंगे।संसदीय चुनाव के दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो के समय 14 मई को कुछ लोगों ने विद्यासागर कॉलेज में घुस कर विद्यासागर की प्रतिमा तोड़ी दी थी। आरोप लगाया गया था कि बीजेपी के लोगों ने यह किया है, पार्टी ने इससे इनकार किया था। ईश्वर चंद्र विद्यासागर शिक्षाविद थे, जिन्होंने आधुनिक बांग्ला वर्णमाला को नया रूप देते हुए ‘वर्णमाला’ नाम की किताब लिखी थी। आज भी लोग इसे पढ़ते हैं। इसके अलावा उच्च शिक्षा और लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
मूर्ति तोड़ने के मुद्दे ने ज़ोर पकड़ा। पूरे पश्चिम बंगाल में बीजेपी की तीखी आलोचना हुई, पार्टी के लोग सफ़ाई देते रहे कि यह काम उन्होंने नहीं किया, पर यह मामला उनके हाथ से निकल गया। इसे ममता बनर्जी ने सीधे बंगाली अस्मिता से जोड़ा और प्रचारित किया कि यह पार्टी बांग्ला मूल्यों के ख़िलाफ़ है, गैर-बंगालियों की पार्टी है।
नरेंद्र मोदी ने चुनाव के मद्देनज़र कहा कि वह विद्यासागर की प्रतिमा लगवाएँगे। ममता बनर्जी ने जवाब देते हुए कहा कि बंगाल के लोगों के पास पैसे हैं और उन्हें बाहर की मदद नहीं चाहिए। उन्होंंने तंज करते हुए कहा, ‘जाइए, पहले श्रीराम की मूर्ति तो लगवाइए।’
मंगलवार को हुए कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने पहले कलकत्ता विश्वविद्यालय के पास हेअर स्कूल के मैदान में प्रतिमा का अनावरण किया और उसके बाद वहाँ से मिनी ट्रक में उसे पास के ही विद्यासागर कॉलेज ले गईं।
#FBLIVE Unveiling of Vidyasagar's Bust at College Street | কলেজ স্ট্রিটে ঈশ্বরচন্দ্র বিদ্যাসাগরের আবক্ষ মূর্তির পুনঃস্থাপন #3 >> https://t.co/o2bkb38A8U
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) June 11, 2019
राज्य सरकार ने यह ध्यान रखा कि इस कार्यक्रम में ‘बंगालीपन’ को ऊपर रखा जाए, इसके साथ ही हिन्दुत्व से जुड़े तत्वों को भी सामने लाया जाए। रामकृष्ण मठ के कई वरिष्ठ भिक्षुओं को न्योता गया और उन्हें मंच पर जगह दी गई। इसके साथ ही बंगाली बुद्धिजीवी समुदाय के लोगों, ख़ास कर कलाकारों और फिल्मकारों को बुलाया गया था।
बीजेपी पर हमला
मंच पर मौजूद मुख्यमंत्री ख़ुद सबके पास जाकर उन्हें मूर्ति तक ला रही थीं और उन्हें माला चढ़ाने का आग्रह कर रही थीं। हालाँकि उन्होंने इन लोगों के बारे में कुछ नहीं कहा, पर ये सारे लोग बंगालियों के दिल के क़रीब हैं और कम से कम शहरी बंगालियों को अपील तो करते ही हैं।उन्होंने बीजेपी पर चोट करते हुए कहा कि ‘यह देश हमारा है, बीजेपी से नष्ट करना चाहती है, पर उसे ऐसा नहीं करने दिया जाएगा।’
बीजेपी की आक्रामकता
लेकिन ममता बनर्जी की यह रणनीति बीजेपी की आक्रामकता को किस हद तक रोक पाएगी और बंगाली राष्ट्रवाद बीजेपी के उग्र राष्ट्रवाद को कार्यकर्ताओं के स्तर पर कितना कमज़ोर कर पाएगा, इस पर संदेह है। इसकी वजह यह है कि बीजेपी और तृणमूल के कार्यकर्ताओं के बीच की लड़ाई बढ़ती जा रही है, वह पिछले कुछ दिनों में हिंसक हो गई। इस हिंसा के शिकार दोनों ही दलों के लोग हो रहे हैं, पर क़ानून व्यवस्था दुरुस्त रखने की ज़िम्मेदारी सरकार की है। लिहाज़ा, हिंसा की हर वारदात के साथ तृणमूल का आधार थोड़ा सा कमज़ोर होता जा रहा है। केंद्र की सरकार में होने के कारण बीजेपी को उसका अलग फ़ायदा है कि वह बात-बात पर राज्य सरकार को भंग करने की धमकी देकर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रही है।मंगलवार को ही पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने नई दिल्ली आकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से मुलाक़ात की और राज्य की मौजूदा हालत की जानकारी दी। त्रिपाठी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने के मुद्दे पर कोई बात नहीं हुई। लेकिन पत्रकारों के एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
West Bengal: BJP leader Mukul Roy writes to Home Minister Amit Shah in response to the letter TMC wrote to HM on June 9; states,'There has been a complete breakdown of state machinery and if steps are not taken urgently to contain the situation, the same will go out of hands.' pic.twitter.com/2tCLcTJOCl
— ANI (@ANI) June 11, 2019
बीजेपी की आक्रामकता को इससे भी समझा जा सकता है कि इसके नेता मुकुल राय ने गृह मंत्री को एक चिट्ठी लिख कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की माँग की थी। लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह वही मुकुल राय हैं, जो ममता बनर्जी के सबसे क़रीब थे। उनका नाम सारदा चिटफंड घोटाला में आया, उनके ख़िलाफ़ सीबीआई ने जाँच शुरू की, वह जेल गए। बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए, उसके बाद सीबीआई ने उन्हें एक बार भी सम्मन नहीं भेजा, उनकी जाँच वहीं रुकी पड़ी है।
बीजेपी की इस आक्रामकता को रोकने के लिए ममता बनर्जी क्या करेंगी, यह सवाल बार-बार उठता है। संसदीय चुनावों से यह साफ़ हो गया कि तृणमूल कांग्रेस बीजेपी के उग्र हिन्दुत्व को रोकने में नाकाम रही, उसका सॉफ़्ट हिन्दुत्व भी किसी काम न आया।
जय माँ काली
इसके उलट बीजेपी ने राम और रथ को पीछे कर काली के प्रतीक का प्रयोग करना बेहतर समझा क्योंकि पश्चिम बंगाल की जनमानस के क़रीब राम नहीं, काली हैं। बीजेपी ने ‘जय माँ काली’ का नारा बुलंद किया, लेकिन ममता बनर्जी ने तुरंत अपना पैंतरा बदला। इसे उनके ट्विटर अकाउंट से समझा जा सकता है जहाँ उन्होंने काली की प्रतिमा को लगाया।
एक बात बिल्कुल साफ़ है और विद्यासागर की प्रतिमा से एक बार फिर यह स्थापित हो गई कि अब पश्चिम बंगाल में प्रतीकों की राजनीति होगी, विकास की नहीं। प्रतीकों की इस लड़ाई में विद्यासागर, रामकृष्ण मठ, रबींद्रनाथ ठाकुर, बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय और बंगाली बुद्धिजीवियों का शहरी मध्यवर्ग का इस्तेमाल तृणमूल करेगी। दूसरी ओर, राम, काली, रथ, नेताजी सुभाष बीजेपी के काम आएँगे। अजीब विडंवना है कि इन प्रतीकों के साथ-साथ हिंसक वारदात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसका प्रयोग दोनों ही दल करेंगे। नतीजा कुछ दिन बाद ही मालूम हो सकेगा।