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2024 पर नज़र: दिल्ली आएंगी ममता, विपक्षी नेताओं से मिलेंगी!

2024 पर नज़र: दिल्ली आएंगी ममता, विपक्षी नेताओं से मिलेंगी!

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जल्द ही दिल्ली के दौरे पर आएंगी और यहां वह कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात कर सकती हैं। 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जल्द ही दिल्ली के दौरे पर आएंगी और यहां वह कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत कई विपक्षी नेताओं से मुलाक़ात कर सकती हैं। पश्चिम बंगाल के चुनाव के बाद हुई कुछ घटनाओं को आपस में जोड़कर देखेंगे तो समझ आएगा कि 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए विपक्षी दलों के बीच कुछ ‘पक’ ज़रूर रहा है। 

पहले एनसीपी के मुखिया शरद पवार की चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से कई दौर की मुलाक़ात, उसके बाद दिल्ली में विपक्षी दलों के नेताओं की राष्ट्र मंच नामक संस्था के बैनर तले बैठक, प्रशांत किशोर की सोनिया, राहुल व प्रियंका से मुलाक़ात और अब ममता बनर्जी के दिल्ली आने की ख़बर। 

सियासी दोस्तों से होगी मुलाक़ात

ममता बनर्जी ने कहा है कि वह पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद से दिल्ली नहीं गई हैं। उन्होंने कहा है कि अब कोरोना क़ाबू में है, वह संसद सत्र के दौरान दिल्ली जाएंगी और अपने सियासी दोस्तों से मिलेंगी। हालांकि अभी बनर्जी के दिल्ली आने की तारीख़ तय नहीं है लेकिन उनका ये दौरा इस महीने के अंत में हो सकता है क्योंकि संसद सत्र 19 जुलाई से शुरू होकर 13 अगस्त तक चलेगा। 

ममता अगर दिल्ली में सोनिया समेत अन्य विपक्षी नेताओं से मिलती हैं तो तय मानिए कि 2024 के आम चुनाव के लिए इन विपक्षी दलों ने अपनी थोड़ी-बहुत तैयारी शुरू कर दी है।

ग़लती से लिया सबक! 

लोकसभा चुनाव 2024 में हालांकि अभी तीन साल का वक़्त है लेकिन विपक्षी दलों के नेताओं की सक्रियता से पता चलता है कि वे इस बार कोई चूक नहीं करना चाहते। जैसे 2019 से पहले बीजेपी के ख़िलाफ़ एक फ्रंट बनाने की बात हुई थी लेकिन नेताओं के आपसी अहं के कारण वह आकार नहीं ले सका था लेकिन शायद बार कई विपक्षी नेता वैसी ग़लती दोहराने के मूड में नहीं हैं। 

इस बीच, इस ख़बर का आना कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं और पार्टी उन्हें 2024 के आम चुनाव के लिए कोई बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है, यह भी बेहद अहम सियासी ख़बर है। बंगाल और तमिलनाडु में टीएमसी और डीएमके को मिली जीत से पता चलता है कि प्रशांत किशोर में कुछ बात तो ज़रूर है। 

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सिर जोड़कर बैठना होगा

ममता ने बंगाल चुनाव में बीजेपी को करारी शिकस्त देने के बाद यह दिखाया है कि अगर राज्यों के क्षत्रप आपस में सिर जोड़कर बैठ जाएं और अपने आपसी स्वार्थों को दूर रख दें तो एक ऐसा मज़बूत फ्रंट खड़ा हो सकता है, जो अपने-अपने राज्यों में बीजेपी की राह रोक देगा और इससे 2024 में बीजेपी की वापसी की संभावना निश्चित रूप से कम हो सकती है। लेकिन ऐसा तभी होगा जब एकजुट होकर लड़ने का इरादा हो। 

कहा जा रहा है कि ममता का यह दौरा चार दिन का हो सकता है। इस दौरान वह सोनिया के अलावा शरद पवार, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल सहित कुछ और नेताओं के साथ मुलाक़ात कर सकती हैं। 

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चेहरा तय करना होगा

एंटी बीजेपी या थर्ड फ्रंट बनाने से पहले चेहरा तय करना होगा जिस पर सभी दलों की एकराय हो। विपक्षी नेताओं में सबसे ज़्यादा सियासी अनुभव रखने वाले नेता शरद पवार ही हैं। एकदम उलट विचारधारा वाली पार्टियों कांग्रेस और शिव सेना को एक साथ सरकार में शामिल करवाना उनके तजुर्बे की तसदीक करता है। देखना होगा कि पवार के नाम पर सहमति बनती है या फिर कोई और नेता विपक्षी दलों का चेहरा बनता है। 

अहम है 2022

2024 में बीजेपी को चुनौती देने लायक स्थिति में पहुंचने से पहले विपक्षी दलों को 2022 में अपने आप को साबित करना होगा। 2022 में सात राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं जिनमें 5 राज्यों के चुनाव तो फरवरी-मार्च में ही हैं। ख़राब प्रदर्शन की सूरत में थर्ड फ्रंट या एंटी बीजेपी फ्रंट बीजेपी के सामने टिक नहीं पाएगा। 

सात राज्यों में से छह में बीजेपी के सामने कांग्रेस एक मुख्य चुनौती है, इसलिए उसके प्रदर्शन पर भी राजनीतिक विश्लेषकों की नज़रें टिकी रहेंगी और उसका प्रदर्शन ही उसका सियासी मुस्तकबिल भी तय करेगा।

केसीआर-नायडू ने भी की थी कोशिश 

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष के. चन्द्रशेखर राव (केसीआर) ग़ैर-बीजेपी, ग़ैर-कांग्रेस दलों का राष्ट्रीय मोर्चा बनाने की कोशिश में हाथ-पांव मार चुके हैं। लोकसभा चुनाव 2019 से पहले भी केसीआर ने ऐसी ही कोशिश की थी। तब वह ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, नवीन पटनायक, पिनराई विजयन, स्टालिन, देवेगौड़ा जैसे दिग्गज नेताओं से भी मिले भी थे। उस समय तेलुगु देशम पार्टी के मुखिया चंद्रबाबू नायडू ने भी ऐसी ही कोशिश की थी लेकिन दोनों की कोशिशें परवान नहीं चढ़ी थीं। 

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