पश्चिम बंगाल में उपचुनाव क्यों नहीं करा रहा है चुनाव आयोग?
ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी लगातार सवाल पूछ रही है कि आख़िर पश्चिम बंगाल में उपचुनाव कब होगा। टीएमसी ने बंगाल चुनाव में बीजेपी को हरा दिया था लेकिन ममता ख़ुद नंदीग्राम सीट से चुनाव हार गई थीं। ममता को मुख्यमंत्री पद पर बने रहने के लिए शपथ लेने की तारीख़ से छह महीने के अंदर विधायक का चुनाव जीतना ज़रूरी है।
हार के बाद भी टीएमसी के विधायक दल ने ममता बनर्जी को ही नेता चुना था। ममता ने 5 मई, 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 5 मई से छह माह का तय वक़्त 5 नवंबर को ख़त्म हो जाएगा। ऐसे में मुश्किल से तीन महीने का वक़्त बचा हुआ है और सवाल यही उठता है कि चुनाव आयोग ने अब तक उपचुनाव की तारीख़ों का एलान क्यों नहीं किया है।
सवाल बहुत सारे खड़े होते हैं। सबसे पहले तो चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल खड़ा होता है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ही उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए, ब्लॉक प्रमुख के चुनाव हुए, 2022 वाले सभी चुनावी राज्यों में धरना-प्रदर्शन और राजनीतिक कार्यक्रम जारी हैं, उत्तराखंड की सरकार चार धाम यात्रा कराने पर पूरा जोर दे रही है लेकिन बंगाल में उपचुनाव का एलान नहीं कराया जा रहा है लेकिन क्यों?
बड़ा सवाल यह है कि क्या ममता बनर्जी को इस्तीफ़ा देना पड़ेगा। पश्चिम बंगाल में विधान परिषद भी नहीं है, ऐसे में ममता को विधानसभा में ही आना होगा लेकिन वो आएंगी तो तब चुनाव आयोग उपचुनाव की तारीख़ों का एलान करेगा।
पॉजिटिविटी रेट बेहद कम
ममता बनर्जी कई बार कह चुकी हैं कि जब पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हो रहे थे, तब कोरोना का पॉजिटिविटी रेट 30 फ़ीसदी था और अब यह 1 फ़ीसदी के आसपास आ गया है। तो ऐसे में आख़िर चुनाव कराने में क्या दिक्क़त है। ममता ने कुछ दिन पहले तंज कसते हुए कहा था कि जब मोदी निर्देश देते हैं तो चुनाव आयोग काम करता है।
तीरथ की ‘बलि’
ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ सकता है, इसकी चर्चा तब शुरू हो गई थी, जब जुलाई की शुरुआत में बीजेपी ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को उनके पद से हटा दिया था। लेकिन तीरथ के मामले में संवैधानिक संकट का हवाला दिया गया था।
संकट यह था कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुच्छेद 151ए के मुताबिक़, ऐसे राज्य में जहां चुनाव होने में एक साल का वक़्त बचा हो, उपचुनाव नहीं कराए जा सकते। उत्तराखंड की विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में ख़त्म होगा, ऐसे में वहां उस वक़्त चुनाव में 9 महीने का ही समय था और 151ए के मुताबिक़, चुनाव नहीं हो सकते थे। तब ये कहा गया था कि आयोग चाहे तो चुनाव करा सकता है लेकिन किसी विशेष वजह से तीरथ सिंह रावत की ‘बलि’ ली गई है।
लेकिन बंगाल में तो ऐसी कोई दिक्क़त नहीं है। कोरोना का संकट भी पहले से बहुत कम है तो फिर चुनाव कराने में आयोग किस बात की देरी कर रहा है। टीएमसी के नेता इस मामले में चुनाव आयोग से मिल रहे हैं।
5 नवंबर के हिसाब से अब लगभग तीन महीने का वक़्त बचा है। चुनाव आयोग अगर महीने भर में भी तारीख़ों का एलान करेगा तो नोटिफ़िकेशन जारी होने के बाद से नतीजे आने तक कम से कम एक महीने का वक़्त चाहिए। ऐसे में चुनाव आयोग को इस मामले में उठ रहे तमाम सवालों का जवाब देना पड़ेगा।
छोड़नी पड़ेगी कुर्सी?
बंगाल में एक नहीं 7 विधानसभा सीट खाली हैं और इन सभी पर उपचुनाव होना है। कोरोना की तीसरी लहर आने की आशंका जताई जा रही है। चुनाव आयोग कोरोना की महामारी का हवाला देकर उपचुनाव कराने से पीछे हट सकता है। अगर ऐसा हुआ तो ममता बनर्जी को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा और किसी और नेता को कुर्सी पर बैठाना होगा, क्या केंद्र सरकार इसी बात का इंतजार कर रही है?