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वी. पी. मलिक : कारगिल के दौरान पीओके पर क़ब्ज़ा की इज़ाज़त मिलनी चाहिए थी

वी. पी. मलिक : कारगिल के दौरान पीओके पर क़ब्ज़ा की इज़ाज़त मिलनी चाहिए थी

तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष वी. पी. मलिक ने कहा है कि कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर पर क़ब्ज़ा कर लेने की अनुमति मिलनी चाहिए थी। 

तत्कालीन थल सेना अध्यक्ष वी. पी. मलिक ने कहा है कि कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना को पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर पर क़ब्ज़ा कर लेने की अनुमति मिलनी चाहिए थी। 

उन्होंने कारगिल विजय दिवस के मौके पर 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' से बात करते हुए यह कहा है। 22 साल पहले यानी 1999 को पाकिस्तानी सेना ने कारगिल में घुसपैठ कर चुपके से ऊँची चोटियों पर क़ब्ज़ा कर लिया था, जहाँ से उसे हटाने के लिए भारतीय सेना को कार्रवाई करनी पड़ी थी। इसमें दोनों ही सेनाओं के लोग मारे गए थे।

जनरल वी. पी. मलिक उस समय थल सेना प्रमुख थे और केंद्र में बीजेपी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार थी, जिसके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।

जनरल मलिक के इस बयान को तत्कालीन सरकार की परोक्ष आलोचना के रूप में देखा जा सकता है। कुछ लोग यह कह सकते हैं कि भारत ने पाक-अधिकृत कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने और इस तरह जम्मू- कश्मीर की समस्या के समाधान का एक मौका गंवा दिया।

'शुरुआती उलझन'

मलिक ने कहा है कि जब करगिल में भारतीय जवानों को सफलता मिल रही थी, हमें पाकिस्तानी ज़मीन पर कब्जे की इजाजत मिलनी चाहिए थी। 

उन्होंने कहा कि शुरू में भारतीय सेना के लिए उलझन की स्थिति थी क्योंकि ख़ुफ़िया जानकारी की कमी थी और यह बिल्कुल चौंकाने वाला मामला था, जिसके लिए भारत तैयार नहीं था।

एलओसी पार करने की अनुमति नहीं

जनरल मलिक ने कहा कि भारतीय सेना ने जल्द ही स्थिति मजबूत कर ली और तेज़ी से आगे बढ़ने लगी और जल्द ही कारगिल पर क़ब्ज़ा कर लिया। उसी समय भारतीय सेना को और आगे बढ़ कर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भी क़ब्ज़ा कर लेना चाहिए था। 

याद दिला दें कि भारतीय सेना को किसी भी सूरत में नियंत्रण रेखा पार करने की अनुमति नहीं थी और सरकार बार-बार यह कह रही थी। सरकार को आशंका थी कि ऐसा करने से एक सीमित क्षेत्र में सिमटी यह कार्रवाई पूरे युद्ध में तब्दील हो जाती और उससे अधिक जान-माल की तबाही होती। 

भारत सरकार ने इससे बचने के लिए नियंत्रण रेखा पार नहीं करने की हिदायत दे रखी थी।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसके अलावा भारत पर अमेरिका समेत अंतरराष्ट्रीय दबाव भी था और सरकार यह नहीं चाहती थी कि उसे आक्रामक या क़ब्ज़ा करने वाली सेना के रूप में देखा जाए।

कैसे हुई थी घुसपैठ?

कश्मीर के बटालिक सेक्टर के तारकुल गाँव में तीन मई 1999 को गड़रिया ताशी नाग्याल रोज़ की तरह उस दिन भी अपनी भेड़ें चरा रहा था। पहाड़ियों पर अपनी भेड़ों को तलाशने के लिए जब उसने दूरबीन से नज़र दौड़ाई तो उसे भेड़ों के बजाय कुछ लोगों की आवाजाही सी दिखी, जिसका मतलब था कि पाकिस्तानी लोग घुसपैठ कर रहे हैं।

ताशी तुरंत समझ गया कि उसे क्या करना है, दौड़ता हुआ वह फौजी अफसरों के पास पहुँचा।

 - Satya Hindi

12 मई 1999 तक पाकिस्तानी फौज के 200 जवान सीमा पार करके, नियंत्रण रेखा को पार करके कारगिल की सुनसान पहाड़ियों पर पहुँच चुके थे। उनका इरादा भारत के इलाक़े में दस चोटियों पर कब्ज़ा करने का था। 

उन्होंने उन पर कब्जा कर भी लिया, क्योंकि उस इलाक़े में सर्दियों के दौरान भारत और पाकिस्तान दोनों अपनी फौज को नीचे उतार लेते हैं और फिर जैसे ही गर्मियाँ शुरू होती हैं वे वापस अपने अपने इलाक़ों में तैनाती कर लेते हैं। जब कारगिल हुआ उस वक़्त तब के विदेश मंत्री जसवंत सिंह तुर्कमेनिस्तान में थे। 

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