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भारतीय सेना हटाने को कहने के बाद मालदीव एक संधि से भी अलग

भारतीय सेना हटाने को कहने के बाद मालदीव एक संधि से भी अलग

क्या मालदीव को लेकर भारत की विदेश नीति सफल साबित नहीं हो रही है? आख़िर वह एक के बाद एक भारत के ख़िलाफ़ फ़ैसले क्यों ले रहा रहा है?

मालदीव ने पिछले महीने ही भारत को वहाँ से अपने सैनिक हटाने को कहा था, और अब इसने एक समझौते को लेकर एक और बड़ा फ़ैसला लिया है। मालदीव के नये राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू की सरकार ने देश के हाइड्रोग्राफिक सर्वे पर भारत के साथ पिछली सरकार के समझौते को आगे नहीं बढ़ाने का फ़ैसला किया है।

यह पहला द्विपक्षीय समझौता है जिसे नवनिर्वाचित मालदीव सरकार आधिकारिक तौर पर समाप्त कर रही है। गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय में सार्वजनिक नीति के अवर सचिव मोहम्मद फ़िरुज़ुल अब्दुल खलील ने कहा कि मुइज्ज़ू सरकार ने 7 जून, 2024 को समाप्त होने वाले हाइड्रोग्राफी समझौते को आगे नहीं बढ़ाने का फ़ैसला किया है।

यह समझौता 8 जून, 2019 को हस्ताक्षरित हुआ था। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के निमंत्रण पर मालदीव का दौरा किया था। भारत को मालदीव के क्षेत्रीय जल, अध्ययन और चार्ट रीफ, लैगून, समुद्र तट, महासागर की धाराओं, ज्वार आदि का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने की अनुमति दी गई थी। 

मालदीव के राष्ट्रपति कार्यालय के अधिकारी ने बताया कि मालदीव ने इस समझौते को आगे नहीं बढ़ाने की बात अब क्यों की है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने कहा, 'इस समझौते की शर्तों के अनुसार, यदि एक पक्ष समझौते को छोड़ना चाहता है तो समझौते की समाप्ति से छह महीने पहले दूसरे पक्ष को निर्णय के बारे में सूचित किया जाना चाहिए। शर्तों के अनुसार, ऐसा नहीं होने पर समझौता अपने आप अतिरिक्त पांच वर्षों के लिए नवीनीकृत हो जाता है।'

फ़िरोज़ुल ने कहा कि भारत को बताया गया है कि मालदीव समझौते पर आगे नहीं बढ़ना चाहता है। माले के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि मालदीव सरकार ने मुइज्ज़ू प्रशासन के फैसले से वहां भारतीय उच्चायोग को अवगत करा दिया है।

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने पिछले महीने औपचारिक रूप से भारत सरकार से द्वीप राष्ट्र से अपनी सैन्य उपस्थिति वापस लेने का अनुरोध किया था। अनुरोध को राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा एक आधिकारिक बयान के माध्यम से सार्वजनिक किया गया।

मालदीव के राष्ट्रपति के कार्यालय द्वारा की गई घोषणा में कहा गया कि उनका देश उम्मीद करता है कि भारत लोगों की लोकतांत्रिक इच्छा का सम्मान करेगा। यह अनुरोध तब किया गया जब मुइज़्जू ने माले में भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की थी। इसके कुछ दिन बाद ख़बर आई थी कि भारत सरकार ने सैनिकों को वापस बुलाने का फ़ैसला ले लिया है।

तो सवाल है कि आख़िर मालदीव के साथ ऐसा क्या हो गया कि भारत से इसके रिश्ते अब पहले की तरह नहीं चलते दिख रहे हैं। 

दरअसल, मालदीव में हाल में चुनाव हुए हैं। मुइज्जू नये राष्ट्रपति बने हैं। मुइज्जू लंबे समय से भारत के विरोधी रुख अपनाए हुए हैं। वह अपने चुनाव अभियान के दौरान से ही भारत के ख़िलाफ़ जहर उगलते रहे हैं। दो महीने पहले ही उन्होंने साफ़ तौर पर कह दिया था कि वह भारतीय सैनिकों को मालदीव से वापस भेजेंगे।

अक्टूबर महीने में राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के बाद मुइज्जू ने कहा था, 'लोग नहीं चाहते हैं कि भारत के सैनिकों की मौजूदगी मालदीव में हो। विदेशी सैनिकों को मालदीव की ज़मीन से जाना होगा।'

दरअसल, मुइज्जू को चीन की ओर झुकाव वाला नेता माना जाता है। वह इससे पहले राजधानी माले शहर के मेयर रहे थे। वे चीन के साथ मजबूत संबंधों की वकालत करते रहे हैं। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति सोलिह 2018 में राष्ट्रपति चुने गए थे। मुइज्जू ने उनपर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारत को देश में मनमर्जी से काम करने की छूट दी है। 

बता दें कि भारत मालदीव के राष्ट्रीय रक्षा बल के लिये सबसे बड़ी संख्या में प्रशिक्षण देता है और उनकी लगभग 70% रक्षा प्रशिक्षण ज़रूरतों को पूरा करता है। 'द हिन्दू' की रिपोर्ट के अनुसार, 'अब्दु और लम्मू द्वीप में 2013 से ही भारतीय नौसैनिकों और एयरफ़ोर्स कर्मियों की मौजूदगी रही है। नवंबर 2021 में मालदीव नेशनल डिफेंस फ़ोर्स ने संसदीय कमिटी से कहा था कि मालदीव में कुल 75 भारतीय सैन्यकर्मी मौजूद हैं।'

वैसे, मालदीव की सुरक्षा में भारत की बेहद अहम भूमिका रही है। 1988 में राजीव गांधी ने सेना भेजकर मौमून अब्दुल गयूम की सरकार को बचाया था। 2018 में जब मालदीव के लोग पेय जल की समस्या से जूझ रहे थे तो मोदी सरकार ने पानी भेजा था। इसके बाद भी इसने मालदीव को कई बार आर्थिक संकट से निकालने के लिए क़र्ज़ भी दिया। लेकिन अब मालदीव का रुख काफी बदल गया है। सवाल है कि ऐसा क्यों?

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