रफ़ाल पर सरकार के साथ खड़ा है सीएजी? जानिए मुख्य बातें
रफ़ाल सौदे पर सीएजी की रिपोर्ट पर सरसरी नज़र से डालने से ही यह साफ़ हो जाता है कि वह वही बातें ही कह रहा है, जो नरेंद्र मोदी सरकार कहती आई है।
रफ़ाल सौदे पर सीएजी की रिपोर्ट आने के बाद पहले से पूछ जा रहे सवालों के जवाब तो नहीं ही मिले, नए सवाल ज़रूर खड़े हो गए हैं। इस रिपोर्ट को देखने से लगता है कि इसमें वही बातें कही गई हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार अब तक कहती आई है। मुख्य बातें यहाँ देखी जा सकती हैं।
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कीमत
- 1.दो सरकारों के बीच किए गए क़रार में विमानों की जो कीमत तय की गई है, वह पहले की कीमत से 2.86 प्रतिशत कम है।
- 2.सीएजी ने रक्षा मंत्रालय के इस तर्क को खारिज कर दिया कि 36 विमानों की कीमत 2007 में प्रस्तावित कीमत से 9 प्रतिशत कम है।
- 3. रफ़ाल के क़रार में छह अलग-अलग पैकेज के प्रस्ताव दिए गए हैं, जिनमें 14 चीजें हैं। सात चीजों की जो कीमत तय की गई है और जिस पर क़रार हुआ, वह उस कीमत से ज़्यादा है जो शुरू में प्रस्तावित था।
- 4.बुनियादी विमान समेत तीन चीजों की कीमत पहले के प्रस्तावित कीमत के बराबर ही थी, जबकि दूसरी चार चीजों की कीमत पहले की कीमत से कम थी।
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डेलीवरी
- 1.पुराने क़रार के मुताबिक जिस समय इन विमानों की डिलीवरी होती, नए क़रार की वजह से उससे एक महीने पहले ही विमान मिल जाएँगे। भारत की सुरक्षा ज़रूरतों के मुताबिक बदलाव करने में 72 महीने लग जाते, जबकि नए क़रार की वजह से बदलाव के बाद भी विमान 71 महीने में ही मिल जाएँगे।
- 2.साल 2007 के प्रस्ताव के अनुसार 18 विमान क़रार पर दस्तख़त होने के 50वें महीने में मिल पाते। हिन्दुस्तान एअरोनॉटिक्स लिमिटेड से क़रार होता तो उसके 49वें से 52वें महीने में बाकी के 18 विमान मिलते। लेकिन 2016 में दस्तख़त किए गए क़रार के मुताबिक क़रार पर दस्तख़त करने के 36वें से 53वें महीने में 18 विमान और बाकी के 18 विमान 67वें महीने में मिलते।
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गारंटी
- 1.क़ानून मंत्रालय की सलाह पर रक्षा मंत्रालय ने फ्रांस की सरकार से गारंटी देने को कहा था। पर पेरिस ने सिर्फ़ 'लेटर ऑफ़ कॉम्फ़र्ट' ही दिया।
- 2.रक्षा मंत्रालय ने भुगतान के लिए एस्क्रो अकाउंट खोलने की बात कही थी। पर फ्रांस इसके लिए राज़ी नहीं हुआ।
- 3.दसॉ कंपनी ने 2007 में जो प्रस्ताव दिया था, उसमें गारंटी की बात थी। पर ऐसा करने से क़रार की कीमत 25 प्रतिशत अधिक हो जाती।
- 4.पुराने प्रस्ताव में वेंडर ने मूल कीमत में ही गारंटी का शुल्क भी जोड़ दिया था। साल 2016 के क़रार में किसी तरह की गारंटी या वारंटी की व्यवस्था नहीं थी। इससे वेंडर के पैसे बचे, पर उसने वह पैसा भारत को नहीं दिया।
तकनीकी मूल्यांकन
- 1.भारत की सुरक्षा ज़रूरतों के हिसाब से विमान में जो बदलाव करने को कहे गए थे, उनमें से चार की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि भारतीय वायु सेना ने साल 2010 की अपनी रिपोर्ट में उसकी ज़रूरत नहीं बताई थी।
- 2.इन बदलावों को बाद में जोड़ दिया गया, हालाँकि वायु सेना ने उन्हें कम करने के लिए कई बार कहा। उ
- 3.वायु सेना ने साफ़-साफ़ नहीं कहा कि एयर स्टाफ क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट से उसका क्या मतलब है। नतीजा यह हुआ कि कोई भी वेंडर ये ज़रूरतें पूरी नहीं कर सका।
- 4.विमान हासिल करने की प्रक्रिया शुरू होने में देर होने की यह मुख्य वजह थी।