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पीएम को चिट्ठी लिखना गुनाह? वर्धा विश्वविद्यालय ने 6 छात्र निकाले

पीएम को चिट्ठी लिखना गुनाह? वर्धा विश्वविद्यालय ने 6 छात्र निकाले

वर्धा के महात्मा गाँधी अंतराराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के छह छात्रों को विश्वविद्यालय से  सिर्फ़ इसलिए निष्कासित कर दिया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया।

छात्रों की आवाज़ को बुलंद करने वाले जयप्रकाश नारायण के जन्म दिवस से एक दिन पहले वर्धा के महात्मा गाँधी अंतराराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के छह छात्रों को आवाज़ उठाने के लिए विश्वविद्यालय से ही निकाल दिया गया। इन्हें सिर्फ़ इसलिए निष्कासित किया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी और सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया। ये वही छात्र हैं जिनके प्रदर्शन को जयप्रकाश नारायण ने नया आयाम दिया था और इंदिरा गाँधी सरकार के ख़िलाफ़ खड़ा किया था। तब जनसंघ ने भी उनके इस संघर्ष की तारीफ़ की थी। जनसंघ से निकली बीजेपी आज भी जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन की तारीफ़ करते नहीं थकती और जब तब राजनीतिक मंचों से इसका ज़िक्र करती ही रहती है। लेकिन इसी बीजेपी की केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार के अंतर्गत आवाज़ उठाने भर से छात्रों को एक झटके में बाहर कर दिया गया है।

हालाँकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन छात्रों के निकाले जाने के पीछ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का हवाला दिया है। छात्रों ने प्रशासन की इस कार्रवाई पर सवाल इसलिए भी उठाया है कि इस प्रदर्शन में छात्र बड़ी संख्या में शामिल थे, लेकिन चुन-चुन कर कार्रवाई की गई है। दावा किया गया है कि जिन छात्रों को निकाला गया है वे या तो दलित हैं या फिर ओबीसी। चंदन सरोज (एम फ़िल, सोशल वर्क), नीरज कुमार (पीएचडी, गाँधी और शांति अध्ययन), राजेश सारथी, रजनीश आंबेडकर (महिला अध्ययन विभाग), पंकज वेला (एम फ़िल, गाँधी और शांति अध्ययन) और वैभव पिंपलकर (डिप्लोमा, महिला अध्ययन विभाग) को निष्कासित किया गया है। छात्र दुष्कर्म के आरोपियों को बचाने, मॉब लिंचिंग की घटनाओं सहित ऐसी ही कई बातों को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे।

छात्रों के निष्कासित किए जाने का एक कारण तो विश्वविद्यालय ने अपने आदेश में बताया है, लेकिन वह भी साफ़ नहीं है। कई ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर विश्वविद्यालय ने नहीं दिया है। विश्वविद्यालय के 9 अक्टूबर को जारी आदेश में कहा गया है कि सामूहिक धरना का आयोजन कर 2019 के विधानसभा चुनावों का उल्लंघन करने और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने के लिए छात्रों को निष्कासित किया जाता है। लेकिन इसमें सवाल यह उठता है कि चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर चुनाव आयोग कार्रवाई करता है या विश्वविद्यालय  क्या विश्वविद्यालय को ऐसा आदेश चुनाव आयोग से मिला एक सवाल यह भी है कि क्या धरना किस न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप है कैंपस में छात्रों के प्रदर्शन को क्या चुनाव और चुनावी आचार संहिता से जोड़ा जा सकता है सवाल तो छात्र भी उठा रहे हैं।

एक छात्र का आरोप है कि विश्वविद्यालय ने भेदभावपूर्ण तरीक़े से कार्रवाई की है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ विश्वविद्यालय से निकाले गए छह छात्रों में से एक चंदन सरोज की प्रतिक्रिया प्रकाशित की है। इसमें सरोज ने आरोप लगाया है कि हालाँकि 9 अक्टूबर को क़रीब 100 छात्र धरने में मौजूद थे, विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने तीन दलित और तीन ओबीसी छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की। उन्होंने कहा कि हमारे साथ कई उच्च जाति के छात्र भी एकजुटता में साथ थे।

छात्रों के संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने इन छह छात्रों को निष्कासित किए जाने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई है। फ़ेसबुक पर इसने लिखा है, ‘राजद्रोह और निष्कासन आज के प्रशासन की सच्चाई को छुपा नहीं सकते! हजारों और बोलेंगे! एआईएसए की माँग है कि छह छात्रों के ख़िलाफ़ निष्कासन पत्र तुरंत वापस लिया जाए। वर्धा प्रशासन द्वारा छात्रों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हम वर्धा विश्वविद्यालय के छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई के विरोध में खड़े होने का आह्वान करते हैं।’

एआईएसए ने फ़ेसबुक पर लिखा है कि राजेश सारथी संगठन का कार्यकर्ता हैं। इसने अपने फ़ेसबुक पोस्ट में इस बात का ज़िक्र किया है कि बीजेपी के चिन्मयानंद और कुलदीप सिंह सेंगर के ख़िलाफ़ शिकायत करने वाली महिलाओं को ही आरोपी बनाया जा रहा है। इसमें झारखंड में तबरेज़ अंसारी की लिंचिंग, भीमा कोरेगाँ में दलितों पर अत्याचार, दिल्ली में रविदास मंदिर के ढहाए जाने से लेकर कश्मीर मुद्दों तक का ज़िक्र किया गया है। 

छात्रों का क्या है तर्क

कार्यवाहक कुलपति कृष्ण कुमार सिंह ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया, ‘महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता की अवधि के दौरान सामूहिक विरोध-प्रदर्शन के ख़िलाफ़ निषेधाज्ञा के तहत कार्रवाई की गई है। हमारा पत्र इस मामले पर बहुत साफ़ है।’ 

अख़बार के अनुसार, चंदन सरोज ने कहा, ‘कुछ दिनों पहले हमने अपने फ़ेसबुक पेज पर घोषणा की थी कि हम विरोध करने के लिए पीएम को पत्र लिखने जा रहे हैं। कुछ छात्रों ने हमें बताया कि प्रशासन कह रहा था कि उनकी अनुमति के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता। इसलिए 7 अक्टूबर को हमने उन्हें एक पत्र दिया। उन्होंने अनुमति देने से इनकार करते हुए कहा कि हमारे पत्र में तारीख़ नहीं है। उन्होंने कभी भी आचार संहिता के बारे में कुछ नहीं बताया।’

छात्र ने कहा कि उन्होंने गाँधी हिल में उस परिसर में इकट्ठा होने का फ़ैसला किया जहाँ गांधी प्रतिमा है। उन्होंने यह भी कहा कि 9 अक्टूबर को बीएसपी के संस्थापक कांशी राम की पुण्यतिथि थी, इसलिए हमने दोनों कार्यक्रमों का विलय किया। उन्होंने दावा किया कि इसमें कुछ भी असंवैधानिक नहीं था और विश्वविद्यालय परिसर में चुनाव आचार संहिता नहीं हो सकती है।

उनका यह भी आरोप है कि देर रात जब कार्यालय बंद रहता है तो छह छात्रों के ख़िलाफ़ आदेश निकाला गया। उन्होंने यह भी कहा कि इसके बाद उन्होंने 10 अक्टूबर को पीएम को चिट्ठी लिखी है।

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