महाराष्ट्र में होने वाले विधान परिषद के चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों के नाम का एलान कर दिया है। लेकिन उसने पूर्व कैबिनेट मंत्री पंकजा मुंडे को उम्मीदवार नहीं बनाया है। पंकजा मुंडे बीजेपी के बड़े नेता रहे गोपीनाथ मुंडे की बेटी हैं और राज्य में ओबीसी राजनीति का एक बड़ा चेहरा भी हैं।
बीजेपी ने प्रवीण यशवंत दरेकर, प्रोफेसर राम शंकर शिंदे, श्रीकांत भारतीय, उमा गिरीश खापरे और प्रसाद मिनेश लाड को एमएलसी चुनाव में टिकट दिया है।
पंकजा मुंडे को टिकट ना मिलने के बारे में महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने कहा कि उम्मीदवारों के बारे में फैसला पार्टी हाईकमान ने लिया है। पाटिल ने कहा कि उन्होंने और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने पंकजा मुंडे को टिकट दिलाने की कोशिश की।
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद पंकजा मुंडे के बीजेपी छोड़ने की अटकलें लगने लगी थीं। पंकजा ने बगावती तेवर दिखाए थे और ट्विटर बायो से बीजेपी शब्द हटा लिया था।
लेकिन बीजेपी हाईकमान ने उन्हें मध्य प्रदेश का प्रभारी और राष्ट्रीय सचिव बनाकर मना लिया था। पंकजा मुंडे 2019 में परली विधानसभा सीट से चुनाव हार गई थीं। उन्हें उनके चचेरे भाई और एनसीपी नेता धनंजय मुंडे ने हराया था।
फडणवीस से है राजनीतिक लड़ाई
2014 में गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद हुए विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी सत्ता में आई तो दिल्ली से नरेंद्र मोदी-अमित शाह की पसंद के नाम पर देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री बना दिया गया। पंकजा फडणवीस सरकार में मंत्री बनीं जबकि वह मुख्यमंत्री बनने की सियासी ख़्वाहिश रखती थीं।
कहा जाता है कि पंकजा मुंडे ने ख़ुद के सियासी विस्तार की बहुत कोशिश की लेकिन फडणवीस ने उन्हें मंत्री पद तक ही सीमित कर दिया। महाराष्ट्र की सियासत में कहा जाता है कि फडणवीस से छत्तीस के आंकड़े के चलते ही पंकजा मुंडे बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बन सकी थीं।
एकनाथ खडसे
महाराष्ट्र में ओबीसी समाज के दूसरे बड़े नेता एकनाथ खडसे को भी फडणवीस की उपेक्षा का शिकार होना पड़ा था। पंकजा को तो बीजेपी ने मना लिया था लेकिन एकनाथ खडसे ने पार्टी छोड़ दी थी और वह एनसीपी में शामिल हो गए थे। खडसे ने बीजेपी छोड़ते वक्त कहा था कि देवेंद्र फडणवीस ने उनका राजनीतिक जीवन बर्बाद कर दिया।
खडसे भी महाराष्ट्र बीजेपी में बड़े क़द के नेता थे और 2014 तक विधानसभा में नेता विरोधी दल थे। 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री पद पर उनका दावा सबसे प्रबल था। लेकिन देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने के बाद वह लगातार पिछड़ते चले गए।
वरिष्ठ नेताओं का कटा था टिकट
2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने खडसे को टिकट ही नहीं दिया और कहा जाता है कि फडणवीस ने ही उन्हें किनारे लगाया था। एकनाथ खडसे की ही तरह वरिष्ठ नेता चंद्रशेखर बावनकुले, विनोद तावड़े, प्रकाश मेहता, दिलीप कांबले का भी टिकट काट दिया गया था। ये सभी नेता फडणवीस सरकार में मंत्री थे।
हालांकि महा विकास अघाडी सरकार बनने के बाद बीजेपी को इन नेताओं की याद आई। बीजेपी ने विनोद तावड़े को सचिव से प्रमोशन देकर पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव और हरियाणा का प्रभारी बनाया और फिर चंद्रशेखर बावनकुले को महाराष्ट्र की विधान परिषद में भेज दिया था। बीजेपी को इस बात का भी अहसास हुआ था कि तावड़े और बावनकुले का टिकट काटा जाना ग़लत था।
बड़े ओबीसी चेहरे
बीजेपी को महाराष्ट्र के ओबीसी समाज के मतदाताओं के वोट दिलाने वाले प्रमुख नेता गोपीनाथ मुंडे और एकनाथ खडसे ही थे। इन दोनों नेताओं की बदौलत ही मराठा समुदाय के प्रभुत्व वाले महाराष्ट्र में बीजेपी को राजनीतिक ज़मीन मिली और वह शिव सेना के साथ मिलकर सत्ता तक पहुंची। मुंडे 1980 से लेकर 2009 तक विधायक रहे और महाराष्ट्र विधानसभा में नेता विपक्ष सहित कई अहम पदों पर रहे।
खडसे के पार्टी छोड़कर जाने के बाद अगर पंकजा मुंडे पार्टी से नाराज बनी रहती हैं तो महाराष्ट्र में लगभग 40 फ़ीसदी वाले ओबीसी समुदाय में पार्टी को इनके कद का कोई मजबूत नेता खोजना होगा।