महाराष्ट्र में एक बार फिर सरकार बनाने की बीजेपी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा क्या पूरी हो पाएगी? या महाविकास आघाडी बीजेपी को सत्ता से दूर रखने में इस बार भी सफल रहेगी? प्रदेश और मुंबई में कोरोना का कहर है लेकिन राजनीतिक गलियारों में कुछ और ही चल रहा है।
जहां तक बीजेपी का सवाल है, वह यही चाह रही होगी कि राज्यपाल मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद सदस्य नियुक्त करने का प्रस्ताव खारिज कर दें और नया राजनीतिक खेल शुरू हो। दूसरी ओर, महाविकास आघाडी इस कवायद में जुटी है कि वह इस आपात परिस्थिति में ऐसा क्या जुगाड़ करे कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल न बने।
उद्धव से दिलवाया जाएगा इस्तीफा
जो ख़बरें मिल रही हैं, उनके मुताबिक़ राज्यपाल अगर उद्धव ठाकरे के मनोनयन का प्रस्ताव नकार देते हैं तो उसके बाद महाविकास आघाडी की तरफ से प्लान बी तैयार कर लिया गया है। इस प्लान के मुताबिक़, उद्धव ठाकरे को इस्तीफा दिलवाकर, एकदम सहज तरीके से उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी जाएगी। ऐसा किए जाने से मंत्रिमंडल बर्खास्त नहीं होगा और स्थिति जैसी थी, वैसी ही हो जाएगी। इस स्थिति में उद्धव ठाकरे को विधायक बनने के लिए फिर से 6 माह का समय मिल जाएगा।
बेचैन क्यों हैं फडणवीस, पाटिल?
लेकिन सवाल यह है कि जब सब कुछ इतना सहज है तो पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस या बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल इतने बैचेन क्यों नजर आ रहे हैं? पिछले 15 दिनों में फडणवीस तीन बार राज्यपाल से मिल चुके हैं और आधा दर्जन पत्र मुख्यमंत्री के नाम लिख कर प्रेस में सार्वजनिक कर चुके हैं।
फडणवीस से एक कदम आगे बढ़कर चंद्रकांत पाटिल ने तो बयान ही दे डाला कि महाविकास आघाडी के नेता ही उद्धव ठाकरे से इस्तीफ़ा दिलवाना चाहते हैं।
बीजेपी के नेता इस मामले में जो भी बयान दें लेकिन एक बात पर सभी स्तर पर सवाल उठाए जा रहे हैं और वह है राज्यपाल की भूमिका!
फ़ैसले में देरी क्यों?
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार हों या कांग्रेस के नेता बालासाहब थोरात या अशोक चव्हाण या फिर शिवसेना के सांसद संजय राउत, सभी ने राजभवन में चलने वाली राजनीति पर सवाल उठाए हैं। प्रदेश के पूर्व महाधिवक्ता और अनेकों संविधान विशेषज्ञों ने भी मीडिया में आकर इस बात को उठाया है कि उद्धव ठाकरे की नियुक्ति को लेकर इतनी बड़ी पेचीदगी या दुविधा जैसी स्थिति नहीं है तो फिर फ़ैसला लेने में देरी क्यों हो रही है।
राज्य मंत्रिमंडल ने 6 अप्रैल को संबंधित प्रस्ताव राज्यपाल के पास भेजा था और इतने दिन बीत जाने के बाद भी इस पर कोई फ़ैसला नहीं हुआ है? राजभवन से होने वाली यह देरी ही आशंकाओं को जन्म दे रही है कि कहीं बीजेपी कर्नाटक या मध्य प्रदेश की तरह महाराष्ट्र में भी कमल खिलाने की तो कोई रणनीति तैयार नहीं कर रही है? और शायद इन्ही शंकाओं के आधार पर महाविकास आघाडी की तरफ से प्लान बी बनाया गया है।