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महाराष्ट्रः चुनाव धांधली के खिलाफ कांग्रेस ने अब क्यों खोला मोर्चा
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एमपीसीसी) ने मतदाता सूची में हेराफेरी के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की घोषणा की है। उसका कहना है कि चुनाव आयोग जानबूझकर इस मुद्दे की अनदेखी कर रहा है। क्योंकि बीजेपी ने राज्य विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के लिए उसके साथ मिलकर इस खेल को खेला है।
महाराष्ट्र कांग्रेस ने मतदाता सूची में धोखाधड़ी के आरोपों को लेकर एक बैठक शुक्रवार 28 फरवरी की। महाराष्ट्र कांग्रेस प्रमुख हर्षवर्धन सपकाल ने कहा, "हमारे नेता राहुल गांधी ने लोकसभा में यह उठाया था। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक रूप में संकलित अंतिम मतदाता सूची मांगी थी। भारत का चुनाव आयोग डर रहा है और देरी करने की रणनीति अपना रहा है। इसलिए, हमने इस लड़ाई को जनता की अदालत में ले जाने का फैसला किया है। हम हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में की गई 'धोखाधड़ी' के खिलाफ एक जनसंपर्क अभियान शुरू करेंगे और तथ्यों को जनता के सामने लाएंगे।"
एआईसीसी सदस्य गुरदीप सप्पल ने कहा, "पार्टी ने जब दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी मांग रखी, तो चुनाव आयोग ने तीन और महीनों की मांग की। एक तरफ वो दावा करता है कि चुनाव व्यवस्था पूरी तरह से सुरक्षित है, वहीं दूसरी तरफ जानकारी साझा करने से इनकार करता है।"
क्या कांग्रेस ने इस संकेत को समझाः सोलापुर जिले में मरकडवाडी गांव के लोगों ने चुनाव नतीजों को स्वीकार नहीं किया। इसकी वजह यह थी कि उन्होंने जिसे वोट दिया था, वो प्रत्याशी नहीं जीता। वहां आश्चर्यजनक रूप से बीजेपी प्रत्याशी को सबसे ज्यादा वोट मिले। इसीलिए मरकडवाडी के लोगों ने वहां मॉक मतदान आयोजित किया। ग्रामीणों ने खुद के खर्चे से बैलट पेपर से वोटिंग की व्यवस्था की। ग्रामीणों ने तय किया है कि मतपत्र से वोटिंग 3 दिसंबर को सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक होगी। इसके तुरंत बाद वोटों की गिनती होगी और परिणाम आएगा।
यह गांव मालशिरस विधानसभा क्षेत्र में आता है। यहां से शरद पवार की एनसीपी के प्रत्याशी उत्तम जानकर और बीजेपी उम्मीदवार राम सातपुते के बीच कड़ी टक्कर थी। इसमें उत्तम जानकर ने जीत हासिल की। लेकिन मार्कडवाडी गांव में सातपुते को ज़्यादा वोट मिले। सातपुते को 1003 वोट मिले, जबकि जानकर को गांव से मात्र 843 वोट मिले। ग्रामीणों में इसी को लेकर नाराज़गी थी। इसलिए उन्होंने मॉक वोटिंग का फैसला किया। लेकिन इससे पहले वोटिंग होती जिला प्रशासन ने मरकडवाडी में धारा 144 लगा दी। यह इशारा था कि मॉक वोटिंग नहीं होने दी जायेगी।
चुनाव आयोग इस मॉक वोटिंग से कुछ ज्यादा ही डर गया था। सूत्रों का कहना है कि उसकी सलाह पर ही वहां धारा 144 लगाकर मॉक वोटिंग रोकी गई। बाद में गांव वालों को सबक सिखाने के लिए 200 लोगों पर एफआईआर भी दर्ज की गई। इसके बाद अकोला जिले के बालापुर क्षेत्र के तुलजापुर गांव और पातुर तहसील के बेलतला गाँव में मॉक पोल आयोजित करने की घोषणा की गई।
कहा जा रहा है कि भले ही यह वोटिंग नहीं हो पाई, लेकिन इसने कई जगहों पर लोगों को मॉक पोल के ज़रिए प्रतिकात्मक विरोध-प्रदर्शन की एक राह दिखाई है। कांग्रेस ने इसी संदेश को पकड़ा है और आंदोलन की घोषणा की है।
वोट प्रतिशत और मतदाता बढ़ने पर विवाद में
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2024 में गिने गए वोट और डाले गए वोट के बीच काफी अंतर है। इस पर अभी भी विवाद हो रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग के अनुसार,विधानसभा में अंतिम मतदान 66.05% था यानी कुल 64,088,195 वोट। हालाँकि, गिने गए कुल वोटों का जोड़ 64,592,508 है, जो कुल पड़े वोटों से 504,313 अधिक है। हालाँकि आठ विधानसभा क्षेत्रों में गिने गए वोटों की संख्या डाले गए वोटों से कम थी, शेष 280 निर्वाचन क्षेत्रों में, गिने गए वोट डाले गए वोटों से अधिक थे।
सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि लोकसभा चुनाव 2024 के पांच महीने बाद विधानसभा चुनाव हुए थे। जिसमें महाराष्ट्र में कुल मतदाताओं की संख्या में 47 लाख की वृद्धि हो गई! जबकि, 2019 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2024 के लोकसभा चुनाव तक पांच साल में महाराष्ट्र में सिर्फ 37 लाख मतदाताओं की वृद्धि हुई थी। जबकि इस बार पांच महीने में 47 लाख मतदाता बढ़ गये।
डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि नए मतदाताओं की संख्या कुछ विधानसभा क्षेत्रों में विशेष रूप से अधिक थी। सिर्फ 78 विधानसभा सीटों में 18 लाख से अधिक नए मतदाता जोड़े गए, जहां बीजेपी ने 68 सीटें जीतीं। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे को संसद के अंदर और बाहर उठाया। उन्होंने कहा कि अकेले शिरडी क्षेत्र की एक बिल्डिंग में ही सात हजार नये मतदाता बढ़ गये।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ कांग्रेस ने ही चुनाव धांधली के मुद्दे को उठाया। वंचित बहुजन आघाडी (वीबीए) ने महाराष्ट्र चुनाव परिणामों में शाम 6 बजे के बाद डाले गये 76 लाख वोटों का विवरण मांगने के लिए याचिका दायर की। मतगणना के दिन मतदान एजेंटों ने 99% बैटरी होने की कई शिकायतें दर्ज कराईं। लेकिन उनका कोई संज्ञान नहीं लिया गया।
चुनाव आयोग की हठधर्मी
दिल्ली हाईकोर्ट को मंगलवार 25 फरवरी को चुनाव आयोग को बताया कि वो तीन महीने में फैसला लेगा कि कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला को मतदाता सूची देना है या नहीं। सुरजेवाला ने आयोग से 2009 से 2024 के बीच हरियाणा और महाराष्ट्र में हुए चुनावों की मतदाता सूची मांगी है। हरियाणा और महाराष्ट्र की मतदाता सूचियों में गड़बड़ी की काफी शिकायतें चुनाव के दौरान आई थीं। उसी वजह से कांग्रेस सांसद ने ईसीआई से मतदाता सूची मांगी।लेकिन इस मामले में ईसीआई हीलाहवाली कर रहा है। यानी वो मतदाता सूची नहीं देना चाहता। कांग्रेस की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "जवाब देने में दो महीने लग गए। दो महीने में उन्होंने कहा है कि अब हमें जवाब देने के लिए और समय चाहिए।"
सुरजेवाला की याचिका में कहा था कि ECI से अपने कामकाज में पूरी पारदर्शिता की उम्मीद की जाती है, साथ ही चुनाव प्रक्रिया पर किसी भी स्तर पर, चाहे वह चुनाव से पहले, दौरान या बाद में हो, सत्यापन और जवाबदेही के लिए तैयार रहना चाहिए। याचिका में कहा गया, "इस प्रकार, यह जरूरी है कि निर्वाचन आयोग राजनीतिक दलों को आयोग द्वारा एकत्र किए गए डेटा की जांच करने की अनुमति दे, ताकि यह तय किया जा सके कि चुनाव प्रक्रिया में कोई अनदेखी विसंगतियां नहीं हैं।" लेकिन चुनाव आयोग अब तीन महीने में यह फैसला लेगा कि वो डेटा देगा या नहीं।