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महाराष्ट्र में आख़िर क्यों हो रही हैं इतनी मौतें?

महाराष्ट्र में आख़िर क्यों हो रही हैं इतनी मौतें?

कोरोना संक्रमण से महाराष्ट्र में इतनी बदतर स्थिति क्यों है? जितनी मौतें पूरे देश भर में हुई हैं उसकी क़रीब आधी (क़रीब 42 फ़ीसदी) मौतें महाराष्ट्र में हुईं। संक्रमण ज़्यादा क्यों? मौतें ज़्यादा क्यों? और ज़िम्मेदार कौन?

कोरोना संक्रमण से महाराष्ट्र में इतनी बदतर स्थिति क्यों है जितनी मौतें पूरे देश भर में हुई हैं उसकी क़रीब आधी (क़रीब 42 फ़ीसदी) मौतें महाराष्ट्र में हुईं। पूरे देश भर में 9900 लोगों की मौत हुई है तो अकेले महाराष्ट्र में 4128 लोगों की। देश भर में 3 लाख 43 हज़ार 91 पॉजिटिव केस आए हैं तो इसमें से सिर्फ़ महाराष्ट्र में 1 लाख 10 हज़ार 744 पॉजिटिव केस। महाराष्ट्र के बाद जो सबसे ज़्यादा प्रभावित राज्य तमिलनाडु है वहाँ भी 46 हज़ार 504 संक्रमण के मामले आए हैं और 479 लोगों की मौत हुई है। यानी महाराष्ट्र की अपेक्षा काफ़ी कम। महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में ही 60 हज़ार से ज़्यादा संक्रमण के मामले आए हैं और 3100 से ज़्यादा मौतें हुई हैं। फिर महाराष्ट्र में ऐसी स्थिति क्यों है संक्रमण ज़्यादा क्यों मौतें ज़्यादा क्यों और ज़िम्मेदार कौन

विशेषज्ञों का कहना है कि यह दिखाता है कि कोरोना वायरस से लड़ने में विफलता हाथ लगी है, कई स्तरों पर कमियाँ रही हैं। उनका कहना है कि न तो समय से तैयारी की गई और न ही महाराष्ट्र और मुंबई की घनी आबादी जैसी विशेष परिस्थितियों के अनुसार योजना बनाई गई और लॉकडाउन भी यूँ ही लागू कर दिया गया। ‘द हिंदू’ ने कई ऐसे विशेषज्ञों से बात की है कि आख़िर महाराष्ट्र में ऐसा क्या हो गया कि स्थिति इतनी बदतर हो गई

केंद्र ने उचित सलाह नहीं दी!

विरालजिस्ट यानी विषाणु विज्ञानी डॉ. जैकब जॉन ने ‘द हिंदू’ से बातचीत में कहा, 'मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र को उचित रूप से सलाह दी गई थी, चेतावनी दी गई थी और पालन करने के लिए केंद्र द्वारा कोई खाका दिया गया था। इसलिए जब महामारी का प्रकोप हुआ तो महाराष्ट्र तैयार नहीं था।' 

महाराष्ट्र ने भी सक्रियता नहीं दिखाई

डॉ. जैकब ने यह भी कहा, 'भारत सरकार की प्रतिक्रिया बहुत धीमी थी और जनवरी में देश में वायरस आने से पहले इस पर कार्रवाई होनी चाहिए थी।’ वह कहते हैं, 'हमारी संसद को 23 मार्च को ही स्थगित किया जा सका। यह सभी राज्यों को क्या संदेश देता है यही न कि सब कुछ सामान्य है।' उनका साफ़ कहना है कि यह काफ़ी पहले होना चाहिए था ताकि राज्यों को सचेत होने का संकेत जाता। 

डॉ. जैकब जॉन के अनुसार, केरल स्वतंत्र निर्णय लेने में सफल रहा जबकि अधिकांश अन्य राज्यों ने नहीं किया। वह कहते हैं कि महाराष्ट्र को भी अपने थिंक-टैंक को सक्रिय करना चाहिए था जैसा कि केरल ने किया था।

लॉकडाउन पर झूठी धारणा

डॉ. जैकब जॉन ने कहा कि लॉकडाउन ने सर्वोच्च आत्मविश्वास की झूठी धारणा गढ़ी, लेकिन वास्तविकता यह थी कि यह मुंबई के अत्यंत भीड़भाड़ वाले स्थानों पर काम करने वाला नहीं था। उन्होंने कहा, 'मुंबई आर्थिक इंजन है और शहर को अतिरिक्त देखभाल के साथ संरक्षित किया जाना था। लेकिन मुंबई के लिए विशिष्ट दृष्टिकोण कभी नहीं अपनाया गया।'

दिसंबर से ख़तरा, तैयारी नहीं

‘द हिंदू’ के अनुसार, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज के स्कूल ऑफ़ हेल्थ सिस्टम स्टडीज के एक प्रोफ़ेसर सौमित्र घोष ने कहा, 'हम दिसंबर के अंत से संभावित ख़तरे के बारे में जानते थे। फिर भी, हवाई अड्डों पर अधिकांश लोगों को एक सुरक्षित रास्ता मिल गया, यहाँ तक ​​कि वे वायरस के बिना लक्षण वाले वाहक भी थे। हमने यात्रियों पर अनिवार्य रूप से क्वॉरेंटीन का नियम लागू क्यों नहीं किया'

सामूहिक कार्रवाई में कमी

घोष ने कहा कि मामलों में वृद्धि जारी है क्योंकि महामारी को समय पर नियंत्रित नहीं किया जा सका है। 'वुहान में वे दो सप्ताह में 43,000 लोगों को जुटाने में कामयाब रहे। कितने डॉक्टरों, विशेषज्ञ डॉक्टरों को दूसरे हिस्सों से मुंबई लाया गया है महाराष्ट्र के साथ-साथ केंद्र और राज्य के बीच सामूहिक कार्रवाई की भी कमी है।' 

टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग पर ध्यान नहीं दिया

सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. अभय शुक्ला ने कहा कि सामान्यीकृत लॉकडाउन का सटीक परिणाम नहीं आया बल्कि इसके संभावित परिणामों पर पानी फेर दिया। डॉ. शुक्ला ने कहा, 'दक्षिण कोरिया या केरल का उदाहरण लें, जहाँ पूरा ध्यान गहन आउटरीच, टेस्टिंग, कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन, या कंटेनमेंट या छोटे स्तर पर कंटेनमेंट पर था।' उन्होंने कहा, 'ऐसी रणनीति के साथ ऐसे संपूर्ण लॉकडाउन की ज़रूरत भी कम ही पड़ती।'

इन्हीं कमियों के कारण महाराष्ट्र में अब तक स्थिति बिगड़ी ही है, आगे भी स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा है। कोरोना वायरस को महाराष्ट्र में आए 9 मार्च से क़रीब 100 दिन हो चुके हैं। दुबई से लौटे एक जोड़े में पहली बार पुणे में कोरोना संक्रमण पाया गया था। संक्रमण से निपटने के लिए अप्रैल के मध्य में वरिष्ठ डॉक्टरों की एक टास्क फ़ोर्स गठित की गई थी। इस टास्क फ़ोर्स के सदस्य डॉ. शशांक जोशी भी हैं। 

‘द हिंदू’ से बातचीत में डॉ. शशांक जोशी कहते हैं, ‘मुंबई में संक्रमण 14 मई से 31 मई तक चरम पर रहा। कई मौतें अब उस समय की हैं, जिन्हें तब संक्रमण हुआ था। अनलॉक करने के बाद अब संक्रमण की दूसरी लहर आ सकती है जब यह फिर शिखर पर हो सकता है। यह अब लोगों पर है कि वे सहयोग करें, क्योंकि सरकार और डॉक्टरों ने अपना काम किया है।’

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