महाराष्ट्र: किसने रोकी अजित पवार की बीजेपी में एंट्री ?
महाराष्ट्र की राजनीति में उथल पुथल मची हुई है। इसका कारण विधानसभा में विपक्ष के नेता अजित पवार हैं। पिछले दिनों खबरें आ रही थीं कि अजित पवार पार्टी तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाने जा रहे हैं। एक दिन बाद अजित पवार ने इन खबरों का खंडन कर दिया। पवार ने कहा कि वे कहीं नहीं जा रहे हैं। वे पहले भी एनसीपी में थे और अब भी एनसीपी में ही रहेंगे। इन खबरों के लिए पवार ने मीडिया की भी आलोचना की, क्योंकि मीडिया ने ही अजित पवार द्वारा पार्टी तोड़ने की खबरों को हवा दी थी।
अब इस मसले पर बीजेपी के साथ महाराष्ट्र की सरकार में शामिल शिवसेना(एकनाथ शिंदे गुट) ने अजित पवार के पार्टी तोड़कर सरकार में शामिल होने का विरोध किया है। शिंदे गुट का कहना है कि अजित पार्टी तोड़कर आएं और बीजेपी या फिर शिंदे गुट की शिवसेना में शामिल हों, उनकी विचारधारा को स्वीकार्य करें। तब ही उनको सरकार में शामिल किया जाएगा।
इस मसले पर शिवसेना के विधायक और प्रवक्ता संजय शिरसाट ने मीडिया से बात करते हुए एक बयान दिया कि अजित पवार अगर एनसीपी छोड़कर बीजेपी या शिवसेना में शामिल होते हैं तो उनका स्वागत किया जाएगा, लेकिन अगर वे केवल पार्टी तोड़कर और कुछ विधायकों को साथ लेकर आते हैं और सरकार में शामिल होते हैं तो फिर शिवसेना सरकार से बाहर हो जाएगी। शिरसाट को इस हफ्ते के सोमवार को ही पार्टी का प्रवक्ता बनाया गया था।
शिरसाट ने आगे जोड़ते हुए यह भी कहा कि एनसीपी में उथल-पुथल का दौर चल रहा है, यह वैसा ही जैसा कुछ दिनों पहले शिवसेना में था। अजित पवार को उद्धव ठाकरे का नेतृत्व मंजूर नहीं है, और वह एनसीपी में भी नहीं रहना चाहते। उन्होंने आगे कहा कि मुझे लगता है कि अजित पवार को काम करने के लिए फ्री-हैंड नहीं मिल रहा है, जो उनकी बेचैनी का कारण है।
मंगलवार की शाम आई इस खबर से कयास लगाए जा रहे हैं कि अजित पवार के बीजेपी के साथ गठबंधन न करने की यह भी एक बड़ी वजह हो सकती है।
शिरसाट के बयान के कई मतलब निकाले जा रहे हैं। यह कहा जा रहा है कि अजित पवार को एनसीपी के कुछ विधायक तोड़कर लाने और सरकार में शामिल होने के लिए बीजेपी की तरफ से ही कहा गया था, लेकिन एकनाथ शिंदे के विरोध को देखते हुए बीजेपी ने अपने कदम वापस खींच लिए। कारण कि बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता नहीं खोना चाहती, लेकिन उसको इस बात का भी डर लगा हुआ है कि अगर सुप्रीम कोर्ट से विधायकों की सदस्यता रद्द की जाती है तो फिर सरकार को कैसे बचाया जाएगा। इसलिए बीजेपी अजित पवार को साथ लाने की कोशिश कर रही है।
एकनाथ शिंदे उनको शामिल करने के इच्छुक नहीं लग रहे हैं क्योंकि इससे उन्हें अपनी अहमियत कम होती दिख रही है। अजीत पवार के आने का मतलब उनके खुद के अधिकारों में कमी होना। महाराष्ट्र में शिंदे के मुख्यमंत्री होने के बावजूद असली सीएम देवेंद्र फडणवीस को माना जाता है। महाराष्ट्र की राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीजेपी नहीं चाहती है कि महाराष्ट्र की सरकार गिरे। इसका कारण महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की लोकप्रियता काफी बढ़ी हुई है इसलिए बीजेपी सरकार गिराकर चुनाव में भी नहीं जाना चाहती है। दूसरा कारण ये भी है कि शिंदे के जाते ही सरकार पर संकट आ जाएगा, और अजित पवार का कोई बहुत भरोसा नहीं किया जा सकता कि वे कब पलटी मार जाएं। इसलिए फिलहाल बीजेपी ने इस पूरे मसले से हाथ खींच लिए हैं, और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक इंतजार करने का फैसला किया है।
राज्य के सियासी संकट पर उद्धव गुट की शिवसेना भी नजर बनाए रखे हुए है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उसकी भी उम्मीदें टिकी हुई हैं। अजित पवार के मसले पर संजय राउत लगातार लिख और बोल रहे हैं। मीडिया के अलावा राउत ही हैं, जिन्होंने एनसीपी के भीतर चल रही लड़ाई को सार्वजनिक कर दिया था। अब इस मसले पर अजित पवार ने राउत को पवार और पार्टी के मसले पर शांत रहने के लिए कहा है। उनसे कहा गया है कि वे एनसीपी के आपसी मसले पर मीडिया के सामने बयानबाजी न करें। यह बात सीधे अजित पवार की तरफ से कही गई है।
अजित पवार ने बयान देते हुए कहा, “कुछ लोग जो एनसीपी में भी नहीं हैं लेकिन पार्टी के मामलों में मीडिया के सामने ऐसे बयान दे रहे हैं जैसे वे पार्टी के प्रवक्ता हों।” पवार ने संजय राउत का नाम लिए बगैर उनपर निशाना साधा और कहा कि वे जिस पार्टी के प्रवक्ता हैं उसी के रहें, एनसीपी का प्रवक्ता बनने की कोशिश न करें। मैं इस मसले को पार्टी के भीतर उठाने जा रहा हूं।