कोरोना: महाराष्ट्र में आर्थिक हालात इतने ख़राब कि कर्मचारियों को वेतन का संकट!
महाराष्ट्र में कोरोना वायरस के कहर ने न सिर्फ़ नागरिकों की सेहत, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी मुसीबत में डाल दिया है। पिछले कई हफ्तों से राज्य में लगातार कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिसके चलते सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अनलॉक की प्रक्रिया भी पूरी तरह से नहीं कर पा रही है। इसका नतीजा यह हुआ है कि सरकार की तिजोरी अब खाली होने लगी है। इसका भी भरोसा नहीं है कि केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाला जीएसटी का रिटर्न कब मिलेगा। पिछले दो महीने से जीएसटी को लेकर मुख्यमंत्री ने कई बार प्रधानमंत्री को इस बारे में बताया तथा पत्र भी लिखा है, लेकिन अभी भी बहुत बड़ी राशि बाक़ी है। ऐसे में सरकार के समक्ष यह सवाल खड़ा हो गया है कि वह अपने कर्मचारियों की तनख्वाह कैसे दे।
दरअसल, मई महीने में ही सरकार को इस बात के संकेत मिलने लगे थे कि आने वाले दिन चुनौती भरे होंगे। मुंबई के नरीमन पॉइंट, सेंट्रल मुंबई (वरली, परेल, लोअर परेल, प्रभादेवी और दादर), विकरोली, बांद्रा-कुर्ला कॉक्वप्लेक्स, अंधेरी, गोरेगाँव और नवी मुंबई के कुछ हिस्सों के प्रमुख वाणिज्यिक केंद्र लॉकडाउन की वजह से आज भी लगभग बंद ही हैं। टाटा, आदित्य बिड़ला, महिंद्रा, गोदरेज, आरपीजी एंटरप्राइजेज, हिंदुजा और जेएसडब्ल्यू सहित देश के कुछ सबसे बड़े कॉर्पोरेट समूह मुंबई में स्थित हैं, जिनमें सभी ने लॉकडाउन के दौरान ग़ैर-ज़रूरी सामान का उत्पादन बंद कर दिया है। कंपनियाँ अपने प्रशासनिक तथा आईटी कार्य लोगों के लिए घर से काम का विकल्प देकर करा रही हैं।
राहत की एकमात्र बात यह दिखती है कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाक़ों में महामारी का प्रभाव कम रहा है। इसलिए भले ही बड़े केंद्र प्रभावित हों, तकनीकी रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में ईकाइयाँ खुल रही हैं। लेकिन एक परेशानी यह भी है कि उत्पादन क्षेत्र में कई ईकाइयों के काम एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इनमें से कुछ ईकाइयाँ रेड ज़ोन में हैं, इसलिए उद्योग का कामकाज लगभग ठप ही है।
ठाकरे ने आर्थिक गतिविधियों की बहाली के लिए दो टास्क फ़ोर्स बनाईं—एक, उप-मुख्यमंत्री अजीत पवार के नेतृत्व में, जिसे लॉकडाउन को धीरे-धीरे करके हटाने तथा प्रदेश में औद्योगिक गतिविधियों को पूर्ववत लाने की ज़िम्मेदारी दी गयी है। दूसरी, वैज्ञानिक रघुनाथ माशेलकर, बैंकर दीपक पारेख और विजय केलकर तथा अजीत रानाडे जैसे अर्थशास्त्रियों की अगुआई वाली, जो अर्थव्यवस्था पर महामारी के असर को कम करने के तरीक़ों पर काम कर रही है। लेकिन इन सबके बावजूद कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण प्रदेश ही नहीं, देश की आर्थिक गतिविधियों का केंद्र मुंबई अपनी रफ़्तार नहीं पकड़ पा रही। या यूँ कह लें कि मुंबई 10 फ़ीसदी पर काम कर रही है।
लोकल ट्रेन आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं हो पाने के कारण भी शहर अपनी पुरानी रफ़्तार में नहीं आ पा रहा। ऐसे में महाराष्ट्र के मंत्री विजय वडेट्टीवार ने कहा है कि हालात कुछ ऐसे हैं कि कर्मचारियों की अगले महीने की सैलरी के लिए अब लोन लेना होगा।
वडेट्टीवार ने मीडिया को राज्य को कोरोना की वजह से हो रहे घाटे को लेकर केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा, ‘राज्य में हालात ये हैं कि हमें सरकारी कर्मचारियों को अगले महीने की सैलरी देने के लिए भी लोन लेना होगा। सिर्फ़ 3-4 विभागों को छोड़कर बाक़ी सभी विभाग के ख़र्चों में कटौती की गई है। हमें केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई फंड नहीं मिला है।’ उन्होंने विरोधी पक्ष नेता देवेंद्र फडणवीस की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अगर कुछ नेता कह रहे हैं कि हमें केंद्र से फंड मिला है तो वो राज्य को धोखा दे रहे हैं। हालाँकि कोरोना की स्थिति से निपटने के लिए रुपये की कमी नहीं है, लेकिन अर्थव्यवस्था को खड़ा करना एक चुनौती साबित हो रहा है। उन्होंने कहा कि कोरोना की लड़ाई में जुटे कर्मचारियों के अलावा शेष कर्मचारियों के वेतन कटौती के विकल्प पर भी गौर किया जा रहा है।
बता दें कि महाराष्ट्र में लगातार कोरोना वायरस के बढ़ते हुए मामलों को देखते हुए लॉकडाउन को 31 जुलाई तक बढ़ा दिया गया है। पिछले तमाम नियम अब 31 जुलाई तक लागू होंगे। इससे पहले ठाकरे ने 28 जून को राज्य को संबोधित करते हुए कहा था, ‘ऐसा मत सोचिए कि 30 जून के बाद लॉकडाउन प्रतिबंध ख़त्म हो जाएगा। कोविड-19 का ख़तरा अभी भी राज्य पर मंडरा रहा है और सभी सावधानी बरतने की ज़रूरत है।