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महाराष्ट्र में ब्राह्मणवाड़ा, माली गली जैसे जातिगत नाम नहीं चलेंगे

महाराष्ट्र में ब्राह्मणवाड़ा, माली गली जैसे जातिगत नाम नहीं चलेंगे

महाराष्ट्र में न तो ब्राह्मणवाड़ा, माली गली, कुंभारवाड़ा और न ही महारवाड़ा, बौधवाड़ा, मंगवाड़ा, धोरावस्ती जैसे गाँव-गलियाँ-सड़कें और बस्तियाँ होंगी। महाराष्ट्र में धार्मिक और जातिगत नाम वाले गाँव-मोहल्लों के ऐसे नाम बदलेंगे। 

महाराष्ट्र में न तो ब्राह्मणवाड़ा, माली गली, कुंभारवाड़ा और न ही महारवाड़ा, बौधवाड़ा, मंगवाड़ा, धोरावस्ती जैसे नाम से गाँव-गलियाँ-सड़कें और बस्तियाँ होंगी। महाराष्ट्र में धार्मिक और जातिगत नाम वाले गाँव-मोहल्लों के ऐसे नाम बदलेंगे। महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट ने बुधवार को फ़ैसला किया कि सड़कों, गाँव और मोहल्लों का नाम किसी ख़ास जाति या धर्म के आधार पर नहीं होंगे। इसका प्रस्ताव राज्य के सामाजिक कल्याण विभाग द्वारा दिया गया था।

सरकार की ओर से जारी प्रेस नोट के अनुसार, महारवाड़ा, बौधवाड़ा, मंगवाड़ा, धोरावस्ती, ब्राह्मणवाड़ा, माली गली और कुंभारवाड़ा जैसे क्षेत्र राज्य की छवि से मेल नहीं खाते हैं। इन क्षेत्रों को अब समता नगर, भीम नगर, ज्योति नगर, शाहू नगर और क्रांति नगर जैसे नामों से पुकारा जाएगा। हालाँकि, ख़ास नए नाम अभी तय नहीं किए गए हैं।

सामाजिक न्याय मंत्री धनंजय मुंडे ने कहा है कि यह निर्णय समाज में 'जाति उन्मूलन' की दिशा में एक क़दम है। उन्होंने कहा कि हम विभिन्न समुदायों के बीच सामाजिक सद्भाव और आपसी संबंध की भावना पैदा करना चाहते हैं।

मुंडे ने कहा, 'किसी जाति विशेष के नाम पर किसी भी इलाक़े का नाम क्यों रखा जाना चाहिए पवार साहब ने मेरे साथ इस मुद्दे पर चर्चा की और महसूस किया कि हमें जल्द से जल्द इसे ख़त्म करना चाहिए। यह निर्णय पार्टी प्रमुख के साथ विचार-विमर्श के बाद लिया गया'।

दरअसल, गाँवों की हक़ीक़त यह है कि अक्सर जातियों के नाम पर गली-मोहल्ले का नाम रखा जाता है। माना जाता है कि इन्हीं कारणों से कि सामाजिक विभाजन की सीमाएँ और भी गहरी होती जाती हैं। बस्तियों को जातियों के अनुसार अलग किया जाता है। 

सवर्ण अपने चुने हुए स्थानों पर अलग रहते हैं, निचली जातियों के लोग गाँव के बाहरी इलाक़ों में रहने के लिए मजबूर होते हैं। अक्सर इन बस्तियों के निवासियों को उनकी जातिगत पहचान से जाना जाता है।

अक्सर देखा जाता है कि ऐसे गाँवों के लोग जब सवर्ण हों तो अपने गाँव, बस्ती, गली का नाम गर्व से लेते हैं जबकि दलित बस्तियों के लोग अपनी उन बस्तियों का नाम लेने में भी हिचकिचाते हैं। ऐसे नाम के साथ यही वह सामाजिक कलंक जुड़ा होता है जिसे हटाने के प्रयास के तौर पर महाराष्ट्र सरकार इसे पेश कर रही है।  

 - Satya Hindi

रिपोर्टों में कहा गया है एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कुछ समय पहले उल्लेख किया था कि जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर आवासीय इलाक़ों का नामकरण सही नहीं था और इसे ठीक करने के लिए क़दम उठाए जाने चाहिए। 

कहा जा रहा है कि इसके बाद समाज कल्याण मंत्री धनंजय मुंडे ने अपने विभाग को उपयुक्त सुधार करने के निर्देश दिए। इसके बाद ही सामाजिक कल्याण विभाग ने इस दिशा में पहल की।

'मुंबई मिरर' की रिपोर्ट के अनुसार, समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव शाम टैगडे ने कहा कि महाराष्ट्र इस तरह का निर्णय लेने वाला पहला राज्य है और यह बहुत प्रगतिशील क़दम है। उन्होंने कहा, 'ऐसे क्षेत्रों के निवासियों के लिए यह बहुत शर्मनाक था। हम शहरी विकास विभाग और ग्रामीण विकास विभाग को उचित बदलाव करने के लिए निर्देश जारी करेंगे।'

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