महाराष्ट्र चुनाव: किसानों के 'प्याज सत्याग्रह’ से डरेगी सरकार?
प्याज की बढ़ी हुई क़ीमतों ने देश में दो बार केंद्रीय सरकारों को अस्थिर किया है। पहला जनता पार्टी के समय मोरारजी देसाई की सरकार को और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को। एक बार फिर प्याज ने अपने चाहने वालों के आँसू निकालने शुरू कर दिए हैं। महाराष्ट्र में चुनाव हैं इसलिए यहाँ पर यह चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा है। किसान संगठनों ने प्रदेश में 'कांदा सत्याग्रह' शुरू कर दिया है तो शरद पवार ने प्याज के निर्यात पर रोक के केंद्र सरकार के निर्णय को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 'जब किसान को दो पैसे कमाने का समय आया तो सरकार ने यह पाबंदी लगा दी।' उन्होंने कहा कि यह सरकार विरोधी है और इसके फ़ैसलों से राज्य में इस साल 16 हज़ार किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी है।
बाज़ारों में प्याज का खुदरा भाव 50 रुपये प्रति किलो को पार कर चुका है और उसका असर लोगों की जेबों पर दिखने लगा है। लेकिन किसानों में रोष इसलिए है कि पिछले चार सालों से उनके प्याज को अच्छा भाव नहीं मिल रहा था। एक रुपये किलो के भाव में भी प्याज नहीं बिक रहा था। प्याज को महाराष्ट्र के गाँवों से मुंबई के बाज़ार में लाने के लिए जितना गाड़ी-भाड़ा लगता था वह राशि भी उन्हें नहीं मिल पाती थी। उन्होंने पूछा कि तब यह सरकार क्या कर रही थी प्याज के दाम नहीं मिल पाने के कारण क़र्ज़ में डूबे कई किसानों ने आत्महत्या कर ली, उस समय यह सरकार किसानों की मदद के लिए क्यों नहीं आयी किसानों का कहना है कि आज चुनाव हैं तो मध्यमवर्गीय लोगों का हवाला देकर सरकार प्याज उत्पादकों व व्यापारियों पर दबाव बनाकर दाम कम कराने की कोशिश कर रही है।
'कांदा सत्याग्रह' करने वाले शेतकरी (किसान) संगठन के प्रदेशाध्यक्ष अनिल घनवट का कहना है कि सरकार ने सिर्फ़ निर्यात बंदी ही नहीं लागू कर रखी है, अघोषित रूप से देश के दूसरे राज्यों में प्याज को भेजने पर भी पाबंदी लगा दी है। महाराष्ट्र से प्याज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में जाता है। इस बार गुजरात, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में अधिक बारिश के कारण प्याज की फ़सल कम हुई है। घनवट ने बताया कि निर्यात पर पाबंदी की वजह से सरकार ने व्यापारियों पर प्याज ख़रीदने पर भी एक सीमा निर्धारित कर दी है। प्याज के व्यापारियों पर छापे डालने की कार्रवाई की जा रही है। लिहाज़ा वे भी इस आंदोलन में किसानों के साथ खड़े हो गए हैं।
प्याज की आवक घटी
महाराष्ट्र का अहमदनगर व नासिक ज़िला प्याज के उत्पादन में अग्रणी है। नासिक ज़िले की पिंपलगाँव व लासलगांव मंडी में प्रतिदिन औसतन 15000 क्विंटल प्याज बिक्री के लिए आता है। लेकिन 'कांदा सत्याग्रह' की वजह से यह घटकर 3 हज़ार क्विंटल रह गया है। सोमवार को यह सत्याग्रह शुरू हुआ और मंगलवार को दशहरा था। परंपरा के अनुसार दशहरे के दिन किसान शुभ मानते हुए किसान यहाँ पर प्याज की मुहूर्त में बिक्री करते हैं। लेकिन इस बार सत्याग्रह की वजह से उसमें बाधा पड़ी। इस आंदोलन की वजह से बुधवार को बहुत से थोक बाज़ारों में प्याज की आवक शून्य रही क्योंकि किसान और व्यापारी दोनों सरकार की नीतियों की वजह से आंदोलित हैं।
'कांदा सत्याग्रह' की वजह से कृषि उत्पन्न थोक बाज़ार समितियों में प्याज की नीलामी बंद है। इस कारण आने वाले कुछ दिनों में प्याज की क़ीमतें और बढ़ने की संभावना है।
इस मामले में सरकार ने किसानों पर दबाव बनाकर मध्यमवर्ग के मतदाताओं में अपने वोट प्रभावित नहीं होने की राह निकाली है लेकिन इससे किसान वर्ग बड़े पैमाने पर प्रभावित हो रहा है। किसानों की इस परेशानी को अब कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेता सरकार की विफलता से जोड़कर अपना जन समर्थन बढ़ाने में लगे हैं। वे किसानों की आत्महत्या और फ़सल बीमा के भुगतान में लापरवाही से हुए कम भुगतान तथा किसान क़र्ज़ माफ़ी से भी जोड़ने लगे हैं।
बीमा कंपनियों को सबक सिखाएँगे: पवार
इसी प्याज बेल्ट (अहमदनगर ज़िले) में एक सभा को संबोधित करते हुए शरद पवार ने किसानों से अपील की कि बीजेपी वाले जब आएँ तो उन्हें दरवाज़े पर खड़ा भी मत होने देना। पवार ने कहा, 'प्याज के दाम बढ़ने से किसानों को दो पैसे कमाने का मौक़ा मिला था, लेकिन बीजेपी सरकार ने प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगा दी। पवार ने कहा, 'जब कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी तो एक ही बीमा कंपनी से किसानों के नुक़सान की भरपाई होती थी। बीजेपी सरकार ने कई बीमा कंपनियों से बीमा कराया है, फिर भी किसानों को उनकी फ़सल के नुक़सान की भरपाई नहीं मिल रही। हम सत्ता में आते ही इन बीमा कंपनियों को सबक सिखाएँगे।'
उन्होंने कहा, 'देश में बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों के पैसे डुबो दिए तो सरकार ने बैंकों को 78 हजार करोड़ रुपये की भरपाई की, लेकिन किसानों के क़र्ज़ माफ़ करने में वह आनाकानी करती है।'
देखना यह है कि प्याज का यह मुद्दा राजनीति को कितना प्रभावित करता है। लेकिन एक बात तो साफ़ है कि यदि यह सत्याग्रह एक सप्ताह भी चल जाता है तो सरकार के लिए प्याज की क़ीमतों को नियंत्रित करने में बड़ी दिक़्क़त आ सकती है।