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महाराष्ट्र में चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन रहा है बेतहाशा बढ़ता कर्ज?

महाराष्ट्र में चुनावी मुद्दा क्यों नहीं बन रहा है बेतहाशा बढ़ता कर्ज?

महाराष्ट्र में चुनाव का प्रचार जोर-शोर से चल रहा है लेकिन क्या प्रदेश पर तेजी से बढ़ता कर्ज चुनावी मुद्दा बन पायेगा? 

महाराष्ट्र में चुनाव का प्रचार जोर-शोर से चल रहा है लेकिन क्या प्रदेश पर तेजी से बढ़ता कर्ज चुनावी मुद्दा बन पायेगा फडणवीस सरकार के  कार्यकाल में प्रदेश के कुल कर्ज में क़रीब ढाई गुणा की बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा सरकार ने जिन कर्जों की गारंटी ली है, वे भी चार गुणा तक बढ़ गये हैं। दूसरी ओर, प्रदेश में विधानसभा प्रचार की गूँज है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले सप्ताह प्रदेश में 9 चुनावी सभाओं को और गृहमंत्री तथा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 18 सभाओं को संबोधित करेंगे। 

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की अब तक हुई महाराष्ट्र की सभाओं में तो पाकिस्तान और अनुच्छेद 370 को हटाने का ही स्वर सुनाई दिया है। प्रदेश में अब तक का जो चुनावी माहौल दिखाई दिया है उसमें जनता के मुद्दे या उनकी परेशानियों से हटकर किस नेता को अपनी पार्टी में मिलाना है या किस नेता के ख़िलाफ़ आयकर विभाग या ईडी की कार्रवाई हो रही है, यही नज़र आ रहा है। दल-बदल कर कुछ नेता अपनी जीत के प्रति आश्वस्त दिख रहे हैं और वे जनता से ज़्यादा अपने नए दल में समीकरण और वहां के कार्यकर्ताओं से सामंजस्य बिठाने में व्यस्त हैं। 

चुनाव की तारीख़ें घोषित होने से पूर्व राज्‍य के मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने चुनाव प्रचार के लिए राज्य भर में महाजनादेश यात्रा निकालकर यह दावा किया कि अगली बार वह ही मुख्यमंत्री बनेंगे। उन्होंने जनता को अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाईं। लेकिन इस सरकारी चुनाव प्रचार के शोर में कुछ सच्चाईयां हैं जो जनता से दूर रहीं या यूं कह लें कि इन्हें कोई आवाज नहीं मिल पायी। ऐसी ही एक सच्चाई है प्रदेश पर बढ़ते कर्ज की। 

कांग्रेस-एनसीपी ने उठाई थी आवाज़

इस कर्ज को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेताओं ने विधानसभा में राज्य सरकार को घेरने की कई बार कोशिश की लेकिन सड़क पर कभी नहीं उतरे। जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उनके आधार पर यदि कहा जाये कि महाराष्ट्र की राज्‍य सरकार कर्ज के पहाड़ के तले दब गई है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। 

वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार ने जब सत्ता संभाली थी, उस समय राज्‍य पर कुल 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था जो वर्ष 2019 में (जून तक) बढ़कर 4.71 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसके अलावा महाराष्‍ट्र सरकार ने क़रीब 43 हज़ार करोड़ रुपये की परियोजनाओं को बैंक गारंटी दी है। हालांकि पिछले पांच साल में महाराष्‍ट्र का सकल राज्‍य घरेलू उत्‍पाद (जीएसडीपी) भी बढ़ा है। 

पूर्व वित्‍त सचिव सुबोध कुमार के मुताबिक़, 'जब राज्‍य के कुल कर्ज की बात होती है तो परियोजनाओं को दी गई गारंटी को गंभीरतापूर्वक लेना होगा। यदि जिन संगठनों ने लोन लिया है, वे कर्ज नहीं लौटाते हैं तो राज्‍य सरकार को इसके लिए आगे आना होगा।'

वर्ष 2016-17 में राज्‍य सरकार ने 7305 करोड़ के लोन को गारंटी दी थी। वर्ष 2017-18 में गारंटी बढ़कर 26,657 करोड़ रुपये पहुंच गई। यह मुख्‍यत: एमएमआरडीए द्वारा मुंबई ट्रांस-हार्बर लिंक प्रॉजेक्‍ट और मेट्रो-4 परियोजनाओं के लिए 19016 करोड़ रुपये के लोन को गारंटी देने से बढ़ी। इसके अलावा राज्‍य सरकार ने इस साल अगस्‍त में नागपुर एक्‍सप्रेसवे की खातिर लिए गए 4 हज़ार करोड़ रुपये के लोन को अपनी गारंटी दी है।

वर्ष 2019 में 4.71 करोड़ रुपये कर्ज और बैंक गारंटी के इस मुद्दे पर सरकार के वित्त मंत्री सुधीर मनगुंटीवार का दावा राजनीतिक और अपनी पूर्ववर्ती सरकारों को दोष देने वाला ज़्यादा नज़र आता है। सुधीर मुनगंटीवार ने इस संबंध में कहा कि सरकार ने केवल चुनिंदा परियोजनाओं को ही गारंटी दी है। उन्‍होंने कहा, 'हमने केवल सार्वजनिक कंपनियों को गारंटी दी है जो मुख्‍यतया आधारभूत ढांचे को लेकर है। इसकी राज्‍य को ज़रूरत है। इससे पहले की सरकारों ने बड़ी संख्‍या में ऐसे निगमों को गारंटी दी जिस पर राजनेताओं का नियंत्रण था।' हालांकि कर्ज को लेकर जब भी विपक्ष ने सरकार को घेरने की कोशिश की, विधानसभा में इस तरह का कोई दस्तावेज पेश नहीं किया गया वे कौन-कौन से संस्थान थे जिनका नियंत्रण राजनेताओं के पास रहा और सरकार ने उनके कर्जों को गारंटी दी थी। 

इसके विपरीत ऐसी ख़बर पता चल रही है कि राज्य सरकार ने इन बढ़ती हुई बैंक गारंटियों से निपटने के लिए गारंटी मुक्ति फ़ंड तैयार किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि यदि कोई गांरटी देनी पडे़ तो उसका सीधा असर बजट पर न पड़े। इस फ़ंड में क़रीब 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। 

बता दें कि फडणवीस सरकार को अपने 5 साल के कार्यकाल के दौरान किसानों की कर्जमाफी, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसी कई वित्‍तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार ने जब सत्‍ता संभाली थी, उस समय राज्‍य पर कुल 1.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था जो वर्ष 2019 में बढ़कर 4.71 लाख करोड़ रुपये हो गया।  राज्य पर यह कर्ज क़रीब ढाई गुणा बढ़ा है। लेकिन इस चुनाव प्रचार में यह मुद्दा नहीं बन रहा है। 

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