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महाराष्ट्र का रण: शरद पवार और फडणवीस दिल्ली में, हलचल बढ़ी

महाराष्ट्र का रण: शरद पवार और फडणवीस दिल्ली में, हलचल बढ़ी

महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनेगी, इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों के बीच जोर-आजमाइश जारी है।

महाराष्ट्र में किसकी सरकार बनेगी, इसे लेकर तमाम राजनीतिक दलों के बीच जोर-आजमाइश जारी है। महाराष्ट्र की राजनीतिक लड़ाई का फ़ैसला अब दिल्ली में हो सकता है क्योंकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार की सोमवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाक़ात होनी है। दूसरी ओर, देवेंद्र फडणवीस ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की है। मुलाक़ात के बाद फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र में जल्द ही सरकार का गठन होगा। 

शिवसेना की ओर से यह दावा करने के बाद कि उसके पास 170 विधायकों का समर्थन है, यह संकेत मिल रहे हैं कि शिवसेना अब बीजेपी के साथ नहीं रहेगी। शिवसेना को विधानसभा चुनाव में 56 सीटें मिली हैं। माना जा रहा है कि शिवसेना को कांग्रेस के 44, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के 54 और कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन मिल सकता है और ऐसे में यह आंकड़ा 170 के करीब पहुंचता है। संजय राउत यह भी कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही बनेगा। 

महाराष्ट्र में चुनावी नतीजे आने के बाद से ही सरकार गठन को लेकर अनिश्चचितता का माहौल है। बीजेपी और शिवसेना ने चुनाव तो साथ मिलकर लड़ा लेकिन सरकार के गठन को लेकर दोनों दलों की बातें अलग-अलग हैं। शिवसेना जहाँ 50-50 के फ़ॉर्मूले के तहत महाराष्ट्र की सत्ता में समान भागीदारी और ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद का बंटवारा होने की बात कह रही है, वहीं बीजेपी किसी भी सूरत में मुख्यमंत्री पद का बंटवारा नहीं होने देना चाहती। 

शिवसेना के तेवरों को देखकर यह स्पष्ट है कि वह किसी भी सूरत में समझौता नहीं करेगी। क्योंकि चुनाव नतीजे आने के बाद से ही वह मुख्यमंत्री पद को लेकर बेहद आक्रामक है। संजय राउत संकेत दे चुके हैं कि महाराष्ट्र में सरकार का गठन अब बस एक क़दम दूर है। राउत ने कहा था, ‘हम पहले बीजेपी को सरकार बनाने का मौक़ा देंगे और उसके बाद उन्हें विधानसभा में हराकर नई सरकार बनाने का काम शुरू कर देंगे।’

संजय राउत ने एक ताज़ा ट्वीट कर शिवसेना के इरादे ज़ाहिर कर दिये हैं। उन्होंने पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ एक फ़ोटो ट्वीट करते हुए लिखा है कि लक्ष्य तक पहुंचने से पहले सफर में मजा आता है। जय हिंद। 

उद्धव ठाकरे ने फडणवीस के बयान के जवाब में कहा, 'मुख्यमंत्री पद हमारा है, यह हमारी माँग ही नहीं -हमारी ज़िद भी है।’ शिवसेना प्रमुख किसी शिवसैनिक को ही महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने की बात कई बार कह चुके हैं और यह भी कह चुके हैं कि बीजेपी से जो तय हुआ है, वही चाहिए और इससे कम कुछ नहीं चाहिए। चुनाव नतीजे आने के बाद जब उद्धव ठाकरे ने पार्टी के विधायकों की बैठक बुलाई थी तो उसमें भी विधायकों ने यही माँग रखी थी कि आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी से लिखित आश्वासन लिया जाना चाहिए। 

दूसरी ओर, यह भी देखना होगा कि शरद पवार की सोनिया गाँधी के साथ मुलाक़ात में क्या बातें सामने आती हैं। क्योंकि महाराष्ट्र की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 8 नवंबर को ख़त्म हो रहा है और तब तक यदि सरकार का गठन नहीं होता राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की स्थिति बन सकती है। हालांकि पवार कह चुके हैं कि एनसीपी को विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है लेकिन फिर भी उनका सोनिया गाँधी से मिलना यह बताता है कि कहीं न कहीं सरकार गठन को लेकर शिवसेना से कोई बातचीत ज़रूर चल रही है। क्योंकि न तो कांग्रेस-एनसीपी और न ही शिवसेना के पास इतने विधायक हैं कि वे राज्य में सरकार बना सकते हैं। तो ऐसे में संजय राउत किस आधार पर दावा कर रहे हैं कि उनके पास 170 विधायकों का समर्थन है। 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में सरकार बनाने के लिये 145 विधायकों का समर्थन ज़रूरी है। 

'बदला' लेना चाहती है शिवसेना

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि शिवसेना पिछले पाँच साल तक महाराष्ट्र में सरकार में रहने के दौरान अपनी उपेक्षा का 'बदला' लेना चाहती है। सरकार में रहने के दौरान भी शिवसेना लगातार बीजेपी पर हमलावर रही थी और हालात इस कदर ख़राब हो गए थे कि यह माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में गठबंधन नहीं होगा। लेकिन तब अमित शाह ख़ुद मातोश्री आये थे और उद्धव ठाकरे को मनाया था। मुख्यमंत्री की कुर्सी की लड़ाई में शिवसेना किसी भी क़ीमत पर चूकना नहीं चाहती क्योंकि उसे पता है कि उसके लिये यही सुनहरा ‘मौक़ा’ है, जब वह बीजेपी को झुकने के लिये मजबूर कर सकती है। 

अब कहा जा रहा है कि बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता में शिवसेना को ज़्यादा हिस्सेदारी देकर और केंद्र की सत्ता में ज़्यादा भागीदारी देकर उसे मनाने की कोशिश करेगी। इसके लिए अमित शाह के ख़ुद मुंबई आने की चर्चा थी लेकिन वह नहीं आये। तो फिर यह विवाद कैसे हल होगा। क्या शिवसेना किसी शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने की अपनी जिद को कांग्रेस-एनसीपी के समर्थन से पूरा करेगी या फिर राज्य में राष्ट्रपति शासन लग जायेगा या फिर बीजेपी, शिवसेना के या अन्य दलों में तोड़फोड़ करके बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल कर पायेगी, यह देखने वाली बात होगी। 

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