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महाराष्ट्र: मंत्री न बनाये जाने से कई नेता नाराज़;  सरकार की स्थिरता को चुनौती?

महाराष्ट्र: मंत्री न बनाये जाने से कई नेता नाराज़;  सरकार की स्थिरता को चुनौती?

महाराष्ट्र में हुए मंत्रिमंडल विस्तार से शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के कुछ नेता ख़ुश नहीं दिखाई दे रहे हैं। लेकिन क्या इससे सरकार की स्थिरता को कोई ख़तरा होगा?

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के लिए आयोजित शपथ ग्रहण समारोह से ठाकरे के क़रीबी और सत्ता संघर्ष में शिवसेना का पक्ष रखने वाले पार्टी के प्रवक्ता संजय राउत मौजूद नहीं रहे। इसे लेकर सवाल उठे और इन सवालों के जवाब देने ख़ुद संजय राउत मीडिया के सामने आये। राउत ने ट्वीट करके भी अपना पक्ष रखा और बताया कि वह नाराज़ नहीं हैं। संजय राउत ने इसका कारण बताया कि सामान्य तौर पर वह किसी सरकारी कार्यक्रम में उपस्थित नहीं रहते हैं। वैसे, राउत उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह में शिवाजी पार्क में उपस्थित रहे थे।

मंत्रिमंडल विस्तार कार्यक्रम में संजय राउत के भाई और पार्टी के विधायक सुनील राउत भी उपस्थित नहीं थे। मीडिया में ऐसी ख़बरें आईं कि सुनील राउत का नाम मंत्रियों की सूची में था लेकिन ऐन वक्त पर सूची में बदलाव हुआ और उनका नाम काट दिया गया! इससे मतलब यह निकाला गया कि संजय राउत नाराज़ हैं। 

सुनील राउत को मंत्री नहीं बनाये जाने को लेकर चर्चाओं का दौर गर्म है। संजय राउत कह रहे हैं कि तीन पार्टियों की सरकार में हर पार्टी की मजबूरी है। उन्होंने कहा, ‘शिवसेना को जितने पद मिले हैं उसमें सहयोगियों का भी समावेश करना था। हमें नाराज़गी उस समय होती जब उद्धव ठाकरे मुखयमंत्री नहीं बन पाते।’ राउत ने कहा कि ठाकरे परिवार से उनका रिश्ता बहुत पुराना है और मंत्री पद उसके सामने कोई मायने नहीं रखता। 

शिवसेना में कुछ अन्य नेताओं के नाराज़गी के स्वर सुनाई दे रहे हैं लेकिन वे खुलकर नहीं बोल रहे हैं। क्योंकि पिछली सरकार में पार्टी के जो वरिष्ठ नेता मंत्री रहे हैं, उनमें से कुछ को इस बार कुर्सी नहीं मिली है। इसमें दिवाकर राउते, तानाजी सावंत, दीपक केसरकर, रामदास कदम के नाम प्रमुख हैं। इसके विपरीत पार्टी ने सरकार बनाने में सहयोगी दो छोटी पार्टियों के नेताओं को अपने कोटे से मंत्री पद की कुर्सी दी है। 

शंकरराव गडाख और बच्चू कडु को शिवसेना ने अपने कोटे से मंत्री बनाया है। जबकि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने अपने किसी सहयोगी दल के नेता को मंत्री पद नहीं दिलाया। इसे लेकर स्वाभिमानी शेतकरी संगठन के प्रमुख राजू शेट्टी नाराज़ भी हुए और मीडिया के समक्ष आकर बयान दिया कि यदि सहयोगी दलों की उपेक्षा की गई तो इसकी क़ीमत चुकानी पड़ेगी। 

शिवसेना की सांसद भावना गवली ने विदर्भ से संजय राठौड़ को मंत्री बनाये जाने पर नाराज़गी जताई है। उन्होंने कहा है कि राठौड़ की जगह किसी और को यह पद दिया जाना चाहिए था।

नाराज़गी के ऐसे ही स्वर कांग्रेस में भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण, पूर्व मंत्री नसीम ख़ान, तीन बार की विधायक प्रणीति शिंदे सहित संग्राम थोपते, अमीन पटेल, रोहिदास पाटिल जैसे नेता नाराज़ हैं और इन नेताओं ने मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाक़ात कर एतराज जताया है। महाराष्ट्र कांग्रेस के नेताओं ने मंगलवार को इस मुद्दे पर सोनिया गाँधी और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक भी की है। 

एनसीपी में भी नाराज़गी की बातें सुनाई दे रही हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रकाश सोलंके ने तो विधायक पद से इस्तीफ़ा देने की बात कही है। मंत्री पद नहीं मिलने से कई अन्य नेताओं में भी नाराज़गी है।

वैसे, महाराष्ट्र में नाराज़ नेताओं को मनाने के लिए यहां के महामंडल के चैयरमैन के पद दिए जाते हैं। महामंडलों के चैयरमैन को राज्यमंत्री का दर्जा मिलता है और इनकी संख्या भी क़रीब दो दर्जन से अधिक है। तीनों पार्टियों के सामने यह चुनौती है कि वह अपने नाराज़ नेताओं को इन पदों को देकर मना पाती है या नाराज़गी के स्वर महा विकास अघाडी सरकार का सिरदर्द बने रहेंगे, यह तो समय ही बताएगा। 

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