'जयाजीराव सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया था', सरकारी वेबसाइट से क्यों हटा?
भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम सन 1857 की क्रांति के समय ‘ग्वालियर के तत्कालीन सिंधिया महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने अंग्रेजों का साथ दिया था। अपना भविष्य बचाने के लिए सिंधिया ने अंग्रेजों से हाथ मिलाया और बगावत को दबाने में ब्रिटिश फौज का साथ दिया। सिंधिया के अंग्रेजों के साथ आने से ग्वालियर में महारानी लक्ष्मीबाई की शहादत हुई और क्रांति का दमन हो गया।’ वरिष्ठ पत्रकार डॉ. राकेश पाठक ने कहा है कि यह तथ्य खुद भारत सरकार ने लिखित रूप से स्वीकार किया है।
यह चौंकाने वाला खुलासा वरिष्ठ पत्रकार, कवि और लेखक डॉ. राकेश पाठक की हाल ही में प्रकाशित किताब ‘सिंधिया और 1857’ में हुआ है। लेकिन जैसे ही डॉ. पाठक की किताब चर्चा में आई वैसे ही सरकार की वेबसाइट से संबंधित पेज हटवा दिया गया है।
31 अक्टूबर को दिन में 12.29 बजे मैंने @DrRakeshPathak7 की किताब के बारे में ट्वीट किया था जिस में भारत सरकार की स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव मनाने वाली अधिकृत वेबसाइट पर सिंधिया के पूर्वजों की अंग्रेज़ों के साथ साँठ गाँठ होने और झाँसी की रानी की शहादत का उल्लेख है।
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) November 2, 2023
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डॉ. पाठक की किताब में उल्लेख है कि स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव संबंधी भारत सरकार की वेबसाइट पर उपरोक्त तथ्य दर्ज़ हैं। संभवतः यह पहली बार है कि भारत सरकार ने क्रांति के समय अंग्रेजों का साथ देने वाली सिंधिया की भूमिका को अधिकृत रूप से स्वीकार किया है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इस सरकार में जयाजीराव के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्री हैं।
डॉ. पाठक ने किताब में उस समय के घटनाक्रम का प्रमाणिक दस्तावेजों के आधार पर सिलसिलेवार विश्लेषण किया है। किताब सेतु प्रकाशन समूह से प्रकाशित हुई है।
किताब के मुताबिक़ सरकार की वेबसाइट पर लिखा है कि… "1857 की पहली क्रांति भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की एक महत्वपूर्ण घटना थी। विद्रोह मेरठ शहर (उत्तर प्रदेश) से मई 1857 से आरंभ हुआ। यह शीघ्र ही देश के अन्य भागों जैसे दिल्ली और आगरा तक फैल गया। यह विद्रोह ग्वालियर पहुँचा और ग्वालियर छावनी ने जून 1857 में विद्रोह किया।
ग्वालियर के जागीरदार मानसिंह और ग्वालियर के दूसरे जागीरदार, राघोगढ़ के राजा ने विद्रोहियों का पता ना बताकर उनका साथ दिया। लेकिन महाराजा जयाजीराव सिंधिया ने क्रांतिकारियों का साथ नहीं दिया। अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने ब्रिटिश फौजों से हाथ मिलाया और उन्हें इस बग़ावत को दबाने के लिए हर तरह से मदद की।
वह संकट के समय ग्वालियर से भाग निकले जिससे ब्रिटिश सैन्य बलों को ग्वालियर पर आक्रमण करने और उस पर कब्ज़ा करने में सहायता मिली। यह वही आक्रमण था जिसमें झाँसी की रानी युद्ध के दौरान लड़ते हुए मारी गईं जिससे आखिरकार क्रांति का दमन हो गया।”