महाकुंभः हिन्दुत्ववादी सरकार में इतने करोड़ जीवित लौटे, कम उपलब्धि है?
अभी मारे गए लोगों की गिनती भी नहीं हुई है, चिताओं की आग ठंडी भी नहीं हुई है लेकिन महाकुंभ से महाहास की तस्वीरें जारी की जाने लगी हैं। महाकुंभ में भगदड़ और मौतों के दो दिन बाद ही उपराष्ट्रपति और अन्य ‘वी आई पी’ लोगों ने डुबकी लगाते फोटो खिंचवाई और प्रसारित की। सरकार ने ही नहीं, मीडिया ने दो दिन बाद ही यह बतलाना शुरू कर दिया कि बावजूद इन मौतों के, महाकुंभ से संसार के समंदर में तरंगें उठ रही हैं। 77 देशों के 117 प्रतिनिधि महाकुंभ पहुँच चुके हैं। किसी ने न पूछा कि क्या वे अपने खर्चे पर गए हैं या हमारी सरकार उन्हें हमारे कंधों पर बैठाकर ले गई है?
वहाँ एक विदेशी कह रहा है कि मानवता का आरंभ भारत में ही हुआ था।भारतीयों, विशेषकर हिंदुओं के लिए श्वेतांग के प्रमाण पत्र से बढ़कर और कुछ नहीं है। एक टी वी रिपोर्टर उत्तेजित होकर एक विदेशी महिला प्रतिनिधि से पूछा रहा है कि डुबकी लगाकर कैसा लगा।वह कहती है, ‘अद्भुत’। क्या डुबकी के इस अनुभव के लिए भी सरकार का शुक्रिया अदा करना है? आप उत्तर प्रदेश सरकार के प्रबंध के बारे में क्या कहेंगी? ‘मुझे जाना है,’ कहकर उससे पीछा छुड़ाना चाहती है लेकिन पत्रकार निराश नहीं होता। उसका कैमरा सरकारी इंतज़ाम की तारीफ़ की खोज में जुट गया है।
लाल क़ालीन दिख रहा है जिस पर विदेशी प्रतिनिधि चरण धरते मेला क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। क्या यह लाल क़ालीन भारतीय तीर्थ यात्रियों के लिए भी बिछाया गया था? कुछ दिन पहले संगम के आस पास की नंगी भूरी ज़मीन पर जान बचाकर भागनेवालों की छूट गई चप्पलों की तस्वीर हम देख चुके हैं। उन तस्वीरों से जो विषाद भाव पैदा हुआ है उसका परिमार्जन ये छवियाँ कर रही हैं। दुख नकारात्मक है। आनंद हिंदुत्व का स्थायी भाव है।
वी आई पी नदी में एक दूसरे पर पानी उछाल कर कौतुक कर रहे हैं। कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और रामदेव की साथ-साथ नृत्य करते तस्वीरें प्रसारित हुई थीं।
जो मारे गए उनकी मौत को मौत कहना भी ग़लत है। हिंदू धर्म के हिंदुत्व में परिवर्तन के बाद ऐसी मौतों को मोक्ष कहा जाने लगा है। हमें बतलाया जा रहा है कि संगम के निकट मृत्यु तो पुण्यात्मा को ही मिलती है। अब तक लोग मृत्यु को मोक्ष में बदलने के लिए वाराणसी जाते थे, अब वह मोक्ष हर जगह उपलब्ध है। जहाँ जहाँ, जब जब हिंदुत्ववादी सरकार की बदइंतज़ामी के चलते हिंदू मरते हैं, वे मोक्ष प्राप्त करते हैं या राष्ट्र के नाम क़ुर्बान होते हैं। उन मौतों को मौत कहना राष्ट्र भाव में विकार उत्पन्न करना है।
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अख़बार लिख रहे हैं कि क्या हुआ कि कुछ लोग मरे। क्या हमें इससे खुश नहीं होना चाहिए कि महाकुंभ से इतने करोड़ लोग जीवित लौट गए? हमें बतलाया जा रहा है कि इससे ज़्यादा मौतें तो बीमारी और सड़क दुर्घटना में होती हैं। पत्रकार और अन्य धार्मिक संत कह रहे हैं कि ‘सनातन’ श्रद्धालुओं ने इसके बाद भी करोड़ों की संख्या में संगम आकर साबित कर दिया है कि सनातन धर्म महान है।
मुख्यमंत्री ने कुंभ में विराजमान संतों को धन्यवाद दिया है कि उन्होंने बहुत धीरज और संयम से काम लेकर सनातन धर्म के शत्रुओं को मुँहतोड़ उत्तर दे दिया है। ये वही मुख्यमंत्री हैं जो दुर्घटना के पूरे दिन उसके ब्योरे देने से कतराते रहे और जब रास्ता नहीं रह गया तो शाम को आँखों में आँसू लाकर मृत लोगों को श्रद्धांजलि देने लगे। प्रधानमंत्री ने मृत ‘पुण्यात्माओं’ को श्रद्धांजलि दे दी है।इससे अधिक हिंदुओं को क्या चाहिए और वे कर ही क्या सकते हैं?
पहली दुर्घटना के बाद दूसरी भगदड़ की खबर भी आई है। लेकिन सरकार उस पर बात नहीं करना चाहती।चूँकि सरकार नहीं चाहती, मीडिया भी उचित नहीं समझता कि इस अप्रीतिकर प्रसंग को छेड़ा जाए।मुख्यमंत्री को इस पूरे मामले में सनातन विरोधियों की साज़िश की बू आ रही है। यह सबसे अच्छा तरीक़ा है। सरकार को साज़िश से बचाना जनता का धर्म है।
भारत में सनातन धर्म के राजधर्म बन जाने के बाद का यह पहला महाकुंभ है।मेले में प्रवास कर रहे ‘साधुओं-संतों’ को पहली बार ऐसा अलग रहा है कि वे राजकीय अतिथि हैं।राजा को प्रसन्न रखना ही साधु का कर्तव्य है।वही वे कर रहे हैं। हमें ऐसी खबर नहीं मिली कि किसी अखाड़े ने इस दुर्घटना के बाद कोई राहत का काम किया हो। बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद ने सहायता का कोई काम किया हो, इसकी भी खबर नहीं।
क्या यह आश्चर्य की बात है कि जो प्रशासन हमें हर रोज़ निश्चयपूर्वक आँकड़े दे रहा है कि कितने करोड़ लोग नहा चुके, वह यह नहीं बतला पा रहा कि कितने लोग मारे गए और वह अभी तक लापता लोगों का पता नहीं दे पा रहा? जो पत्रकार संख्या को लेकर सवाल कर रहे हैं उन्हें अधिकारी धमका रहे हैं। ज़्यादातर मीडिया मंचों को इसमें कोई रुचि नहीं है। हम पहले भी देख चुके हैं कि उत्तर प्रदेश और भाजपा शासित राज्यों में किसी भी दुर्घटना की खबर देने को ही राष्ट्र विरोधी माना जाता है और ऐसा करनेवाले को जेल में डाल दिया जाता है।जनता को सच्चाई बतलाना उसमें राष्ट्रविरोधी भावना भर कर उसे भड़काना है।
जो बच गए हैं, उनकी मारे गए लोगों के प्रति कोई सहानुभूति हो, इसका कोई प्रमाण नहीं है। उनकी मृत्यु ईश्वरेच्छा है, वह उनकी नियति है।नागरिकता बोध से रहित, मानवीयता से वंचित श्रद्धा को क्या कहेंगे?