संगम में डूबे मोदी-योगी के धार्मिक ध्रुवीकरण के नारे
महाकुंभ 2025 में दो बार आगजनी और भगदड़ की छह छह घटनाओं में सैकड़ों लोगों के मारे जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आज जब संगम में डुबकी लगाने पहुंचे हैं। कई चैनल इसे इस तरह बढ़ा चढ़ा कर पेश कर रहे हैं, जैसे इसके पहले किसी बड़े नेता या प्रधानमंत्री ने संगम में स्नान ही न किया हो। जिस वीआईपी व्यवस्था के कारण हजारों श्रद्धालुओं को भगदड़ में अपने परिजनों को खोना पड़ा, न जाने कितने मृत और न जाने कितने लापता हो गये, उसी वीआईपी व्यवस्था में आज प्रयागराज का सारा अमला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को स्नान कराने पहुंचा है।
क्या मोदी महाकुम्भ हादसे के बाद योगी को हटाएंगे, यह सवाल उनके संगम दौरे से तेज हो उठा है। 2013 में मोदी ने इसी संगम तट पर संत सभा के माध्यम से अपने को प्रधानमंत्री बनवाने के लिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने मांगें उठवायी थीं।
कहते हैं कि इस बार योगी भी भारत का अगला प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने की ऐसी ही मांग संतों से उठवाने की रणनीति बनाये हुए थे। लेकिन यह दांव महाकुंभ हादसे के कारण उल्टा पड़ गया। संगम की पहचान जिस गंगा-यमुना-सरस्वती के मिलन बिंदु के कारण विश्व विख्यात है, उसको चुनौती उसी घाट पर खड़े होकर बंटोगे तो कटोगे का नारा देने वाले मुख्यमंत्री योगी की राजनीति को प्रयागराज और यूपी की सजग जनता बार बार ठुकराती आयी है। लेकिन जिस तरह प्रयागराज में सरस्वती विलुप्त हो जाती हैं, उसी तरह राजनेताओं की बुद्धि भी मानो विलुप्त हो गयी है।
महाकुंभ हादसे के बाद किस तरह इलाहाबाद की गंगा-जमुनी संस्कृति ने लाखों श्रद्धालुओं की जानें बचायीं, उन्हें अपने घरों में पनाह दी, ये तो हम आगे बताएंगे, लेकिन पहले आइये देखते हैं कि मुगल सम्राटों और ब्रिटिश गवर्नर जनरलों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से लेकर भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय राजनेताओं ने कब कब कैसे कैसे कुंभ मेले में शिरकत की या स्नान किया था।
महात्मा गांधी और कुंभ मेला
महात्मा गांधी का कुंभ मेले से जुड़ाव ऐतिहासिक रहा है। 1915 के हरिद्वार कुंभ के दौरान उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले से मुलाकात की थी। यह भेंट ऐतिहासिक थी, क्योंकि इसी दौरान गोखले ने गांधीजी को भारतीय समाज और राजनीति को नजदीक से समझने की सलाह दी थी। गोखले ने गांधीजी को कुंभ मेले की आध्यात्मिक और सामाजिक महत्ता बताते हुए उनसे इसमें स्नान करने का आग्रह किया। 1918 में जब प्रयागराज में कुंभ मेला आयोजित हुआ, तब देश में अंग्रेजों का शासन था और स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था। ब्रिटिश सरकार ने इस आयोजन पर कड़ी नजर रखी थी और कई नेताओं की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा रखा था। इसके बावजूद, महात्मा गांधी ने गुप्त रूप से प्रयागराज पहुंचकर संगम में स्नान किया। वे यहां एक साधु के आश्रम में ठहरे और बिना किसी प्रचार के कुंभ स्नान किया।इस ऐतिहासिक स्नान का जिक्र गांधीजी ने बाद में 10 फरवरी 1918 को फैजाबाद में हुए कांग्रेस अधिवेशन में किया। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने ब्रिटिश सरकार की सख्ती के बावजूद कुंभ मेले में भाग लिया। इस घटना का उल्लेख राजकीय अभिलेखागार में मौजूद ब्रिटिश अफसरों की खुफिया रिपोर्ट में भी दर्ज है।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद: राष्ट्रपति के रूप में कुंभ में कल्पवासः 1954 के प्रयागराज कुंभ में भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कुंभ मेले में कल्पवास किया। यह पहली बार था जब किसी राष्ट्राध्यक्ष ने आधिकारिक रूप से इस धार्मिक आयोजन में भाग लिया। संगम तट पर स्थित अकबर किले में उनके रहने की विशेष व्यवस्था की गई थी। राष्ट्रपति होने के बावजूद उन्होंने सादगी और आध्यात्मिक अनुशासन का पालन किया। उनकी उपस्थिति ने कुंभ मेले की धार्मिक और राष्ट्रीय महत्ता को और बढ़ाया। अब वह स्थान जहाँ डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कल्पवास किया था, "प्रेसिडेंट व्यू" के नाम से प्रसिद्ध है और कुंभ मेले में विशेष आकर्षण का केंद्र बन गया है।
पंडित नेहरू भी गये थे कुंभ
पंडित जवाहरलाल नेहरू का तो जन्म ही 14 नवंबर 1889 को गंगा किनारे बसे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था। नेहरू ने अपनी आत्मकथा "टुवर्ड फ्रीडम" में गंगा के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए लिखा है: "गंगा, विशेष रूप से, भारत की नदी है, जिसके साथ हमारी सभ्यता के पूरे इतिहास में गहरा संबंध रहा है।" लेकिन वे आज के नेताओं की तरह ढकोसले बाज नहीं थे। जब 10 जनवरी 1938 को नेहरू की मां, स्वरूप रानी नेहरू, का निधन हुआ, तो नेहरू ने इलाहाबाद में संगम तट पर उनकी अस्थियों का विसर्जन किया था। इस अवसर पर ली गई एक तस्वीर में नेहरू जी गंगा में स्नान करते हुए दिखाई देते हैं। इस तस्वीर को कभी-कभी उनके कुंभ मेले में स्नान के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जो सही नहीं है। 1954 के प्रयागराज कुंभ मेले में पंडित जवाहरलाल नेहरू गये जरूर थे, पर वे व्यवस्थाओं की समीक्षा करने के लिए पहुंचे थे। और राज्यसभा में दिए अपने बयान में उन्होंने साफ कहा था कि वे संगम में स्नान करने नहीं गए।कामा मैकलीन की पुस्तक “Pilgrimage and Power: The Kumbh Mela in Allahabad from 1776-1954” में नेहरू की 1954 के कुंभ मेले की तस्वीर छपी है, जिसमें वह भीड़ के बीच नजर आ रहे हैं। मैकलीन लिखती हैं कि जब नेहरू से संगम में स्नान के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया—"मैंने शारीरिक रूप से नहीं, लेकिन अन्य रूप में स्नान किया।"
लाल बहादुर शास्त्री के सचिव सी.पी. श्रीवास्तव ने अपनी जीवनी में लिखा है कि नेहरू ने शास्त्रीजी के कुंभ स्नान के अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि "मुझे गंगा नदी से प्रेम है, लेकिन कुंभ में स्नान नहीं करूंगा।"
अन्य प्रधानमंत्रियों और राजनेताओं का कुंभ से संबंध
इंदिरा गांधी: इंदिरा गांधी का इलाहाबाद, गंगा नदी और कुंभ मेले से गहरा संबंध था। वह इलाहाबाद में पली-बढ़ीं, जहां उनके परिवार का निवास आनंद भवन स्थित है। गंगा नदी के तट पर बसे इस शहर में उनका बचपन बीता, जिससे गंगा के प्रति उनका विशेष लगाव विकसित हुआ। 1966 में, जब प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का ताशकंद में निधन हुआ, तो इंदिरा गांधी उनकी अस्थियां लेकर इलाहाबाद पहुंचीं और उन्हें गंगा नदी में विसर्जित किया, जो उनकी गंगा के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। लेकिन उनके संगम में स्नान का कोई प्रमाण नहीं है।भारतीय राजनीति के प्रखर समाजवादी नेता, अपनी स्पष्टवादिता और सिद्धांतों के प्रति अडिग पहचान वाले प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का जन्म भी गंगा नदी के समीप उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी गांव में 17 अप्रैल 1927 को हुआ था। "बागी बलिया" के नाम से मशहूर बलिया की सबसे बड़ी झील सुरहाताल, कटहल नाले के माध्यम से गंगा से जुड़ी हुई है, और जिसने बलिया को एक समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान दी है। चंद्रशेखर गंगा को भारतीय संस्कृति की आत्मा और भारत की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना की वाहक मानते थे। 1989 के कुंभ मेले में संतों-महंतों से संवाद के दौरान उन्होंने कहा था कि गंगा हमारी सभ्यता की पहचान है और इसकी पवित्रता को बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। 10 नवंबर 1990 से 21 जून 1991 तक भारत के नौवें प्रधानमंत्री रहे चंद्रशेखर ने अपने छोटे लेकिन प्रभावशाली कार्यकाल में भी राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक विरासत के महत्व पर बल दिया। लेकिन धर्म के नाम पर आडंबर और धार्मिक भावनाओं को राजनीतिक लाभ के लिए उन्होंने कभी इस्तेमाल नहीं किया।
नेहरू और चंद्रशेखर की तरह अटल बिहारी वाजपेयी का भी कुंभ मेले के प्रति विशेष सम्मान था। उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को सदैव महत्व दिया। पर वे अंधविश्वासी नहीं, दार्शनिक थे। 2001 के प्रयागराज में आयोजित कुंभ महापर्व में तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने भाग लिया था। अटल जी भारतीय संस्कृति और परंपराओं के प्रति गहरा सम्मान रखते थे, और कुंभ मेले जैसे आयोजनों के महत्व को भली-भांति समझते थे। प्रधानमंत्री के तौर पर उन्होंने कुंभ मेले की व्यवस्थाओं की समीक्षा की और संतों-महंतों से मुलाकात की। लेकिन उनके संगम में स्नान करने का कोई प्रमाण नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थियों का संगम में विसर्जन जरूर किया गया था।
• 2001 में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी कुंभ मेले में भाग लिया और गंगा में डुबकी लगाई थी।• 2019 के अर्धकुंभ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा में डुबकी लगाई थी।
मुगल सम्राट और कुंभ मेला
मुगल सम्राट अकबर ने 1583 के प्रयागराज कुंभ में भाग लिया था और इसी कुंभ के दौरान उन्होंने प्रयागराज में एक विशाल किला बनवाया था, जिसे आज भी "अकबर किला" कहा जाता है।जहांगीर ने अपने संस्मरण "तुजुक-ए-जहांगीरी" में 1612 के कुंभ मेले का उल्लेख किया है। उन्होंने लिखा कि किस प्रकार इस आयोजन में लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते थे।1665 के कुंभ में औरंगजेब ने हिंदू संतों की बढ़ती शक्ति को देखकर इस मेले पर विशेष निगरानी रखने का आदेश दिया था।ब्रिटिश गवर्नर जनरल और कुंभ
- 1838 के कुंभ मेले के दौरान लॉर्ड विलियम बेंटिक ने भीड़ और अव्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक हस्तक्षेप किया था। यह पहला अवसर था जब अंग्रेजों ने मेले के संचालन में हस्तक्षेप किया।
- 1858 के कुंभ मेले के दौरान लॉर्ड डलहौजी ने पहली बार मेले की जनगणना करवाई और इसे "दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला" बताया।
- 1820 के दशक में ब्रिटिश अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने कुंभ मेले पर व्यापक अध्ययन किया और इसे पश्चिमी जगत में लोकप्रिय बनाया।
रोचक प्रसंग और किस्से
• 1867 कुंभ में साधु-संतों और अंग्रेजों की झड़प: प्रयागराज कुंभ में नागा साधुओं और ब्रिटिश अधिकारियों के बीच विवाद हुआ था, जिसमें कई साधु घायल हुए।• 1954 कुंभ त्रासदी: कुंभ मेले में भगदड़ मचने से 800 से अधिक लोग मारे गए थे।• 2025 महाकुंभ त्रासदी: इस साल महाकुंभ में भगदड़ मचने की छह घटनाओं का चर्चा हो रही है। दो बार आगजनी की घटनाएं भी हो चुकी हैं। सरकारी आंकड़ों में महज 30 लोगों के मरने की बातें कही गयी हैं। लेकिन सोशल मीडिया में सैकड़ों लोगों के मारे जाने और करीब 1500 लोगों के लापता होने की पुष्ट अपुष्ट खबरें चल रही हैं।संसद में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने हजारों मृतक श्रद्धालुओं को श्रद्धांजलि देने की बात कही तो बवाल मच गया। दोनों नेताओं ने हादसे की जांच के लिए जेपीसी गठित करने और सर्वदलीय बैठक बुलाने की भी मांग की। पर सरकार खामोश है।
अनेक साधु संतों और शंकराचार्यों ने कुंभ को धार्मिक-राजनीतिक पर्यटन से जोड़ने और एक तथाकथित सनातनी भावनाओं को उभारने वाले इवेंट की तरह इस्तेमाल करने पर कड़ी आपत्ति जतायी है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर अपनी मनमर्जी से अर्ध कुंभ को कुंभ और पूर्ण कुंभ को महा कुम्भ बनाने पर भी विरोध जताया गया है। भगदड़ में हुई मौतों का आंकड़ा न देने पर सवाल उठाते हुए शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस्तीफे की मांग की और कहा कि इस सरकार ने तो मृतकों का श्राद्ध या उनकी आत्मा की शांति के लिए मौन तक रखने का मौका नहीं दिया। उन्होंने कहा कि जो सरकार 2700 अत्याधुनिक कैमरों से मेले में आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं के आंकड़े जारी कर रही थी, वह मौतों और लापता लोगों की सूची नहीं दे पा रही। जिन हेलीकॉप्टरों को घायलों के अस्पताल ले जाने के लिए लगाना चाहिए था, उनसे हादसे के बावजूद फूल बरसाकर घाव पर नमक छिड़का जाता रहा।
सबसे दुखद तो यह था कि जहां योगी सरकार लाखों श्रद्धालुओं को राहत की मूलभूत सुविधाएं देने की बजाय डंडों से भगाती रही, मुसलमानों के मेला क्षेत्र में प्रवेश पर रोक लगाती रही, वहीं उनके कटोगे तो बंटोगे के नारे के बावजूद इलाहाबाद की मुस्लिम बस्तियों के हजारों लोगों ने लाखों श्रद्धालुओं को रहने खाने, दिनचर्या और राहत की सुविधाएं देकर गंगा-जमुनी एकता की मिसाल कायम की। प्रयागराज में महाकुंभ के दौरान मौनी अमावस्या (29 जनवरी 2025) के दौरान हुई भगदड़ के बाद, प्रयागराज की गंगा-जमुनी तहजीब ने एक बार फिर मानवता और भाईचारे की मिसाल पेश की। स्थानीय मुस्लिम समुदाय ने श्रद्धालुओं की मदद के लिए अपने घरों, स्कूलों और संस्थानों के दरवाजे खोल दिए, जिससे कई लोगों की जान बचाई जा सकी।
चाहे नखास कोहना, चौक, रौशनबाग, सेवई मंडी का इलाका हो या रानीमंडी से लेकर हिम्मतगंज का इलाका, इस सारे इलाके के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने घरों के दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए। उन्होंने आराम के लिए दरी, चादर, प्लास्टिक बिछाई और चाय, बिस्किट, पूड़ी, सब्जी आदि का प्रबंध किया। दो दिनों तक हजारों श्रद्धालु यहां ठहरे रहे।
28 जनवरी की रात को, जिस दिन भगदड़ हुई, तो कोतवाली क्षेत्र में यादगार हुसैनी इंटर कॉलेज के प्रबंधक गौहर काज़मी ने कॉलेज खोलने का आदेश दिया। क्षेत्रवासियों के सहयोग से श्रद्धालुओं के ठहरने, खाने-पीने की सभी सुविधाएं प्रदान की गईं। कॉलेज परिसर का मैदान और कक्षाएं श्रद्धालुओं से भर गईं, जहां उनके आराम के लिए दरी, चादर, प्लास्टिक बिछाई गई थी और चाय, बिस्किट, पूड़ी, सब्जी का बंदोबस्त किया गया था।
इसी तरह चौक क्षेत्र के निवासियों ने मिलकर थके हुए श्रद्धालुओं को भोजन कराया। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रावासों, जैसे शताब्दी छात्रावास, केपीयूसी, पीसी बनर्जी, सर सुंदरलाल छात्रावास, महादेवी वर्मा छात्रावास और कल्पना चावला छात्रावास की छात्राओं ने भी श्रद्धालुओं की सहायता में योगदान दिया।
इन प्रयासों ने प्रयागराज की गंगा-जमुनी संस्कृति और मानवता की गहरी जड़ों को उजागर किया, जहां सभी समुदायों ने मिलकर संकट के समय में एक-दूसरे की मदद की। और इसके साथ ही मोदी-योगी और भाजपा के धार्मिक ध्रुवीकरण के नारे संगम में डूब गये।