विश्वव्यापी महामारी कोरोना के संक्रमण काल में जब अधिकांश लोग स्वयं और अपने परिवार की जान की चिंता करते नज़र आ रहे हैं, ऐसे कठिन दौर में खुद की जान की बाजी लगाने वाले ‘कोरोना वारियर्स’ की भी कमी नहीं है। ‘कोविड 19’ की जंग के ‘एक सिपाही’ ने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मानवता की अनूठी मिसाल पेश की है। कोरोना संक्रमण से एक शख़्स की मौत के बाद उसकी बाॅडी को जब परिजनों ने लेने से मना कर दिया तो लावारिस हो चुके शव को जिला प्रशासन के अफ़सर ने मुखाग्नि दी।
मामला भोपाल के पड़ोसी जिले शाजापुर का है। इस जिले की शुजालपुर तहसील निवासी प्रेम सिंह मेवाड़ा कोरोना वायरस से संक्रमित हो गये थे। उन्हें भोपाल के चिरायु अस्पताल में भर्ती कराया गया था। चूंकि ‘कोविड 19’ संक्रमित रोगी के साथ रहने की अनुमति किसी को नहीं है, लिहाजा भर्ती कराने के बाद परिजन घर को लौट गये थे। कोरोना से लड़ते हुए प्रेम सिंह की सोमवार को मौत हो गई। परिजनों को मौत की सूचना दी गई।
बेटा नहीं हुआ तैयार
मंगलवार को परिजन भोपाल आये। पत्नी, साले और बेटे संदीप मेवाड़ा ने प्रेम सिंह की बाॅडी लेने से साफ इनकार कर दिया। मामले को देख रहे अफ़सरों ने परिजनों को बहुत समझाया। बताया कि प्रेम सिंह के शव को पूरी तरह से सुरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि मुखाग्नि देने के लिए बेटे को कोरोना प्रोटोकाॅल के तहत पीपीई किट, दस्ताने और सैनेटाइजर उपलब्ध कराया जायेगा। प्रशासन की इस पेशकश के बाद भी संदीप पिता को मुखाग्नि देने के लिए तैयार नहीं हुआ।
तमाम समझाइश और सलाह को नहीं मानने पर अधिकारियों ने संदीप से शव ना लेने की वजह लिखकर देने को कहा। संदीप ने लिखकर दिया कि कोरोना संक्रमण के भय की वजह से वह पिता प्रेम सिंह का शव नहीं लेना चाहता।
संदीप द्वारा लिखकर देने के बाद भोपाल जिले में पदस्थ तहसीलदार गुलाब सिंह आगे आये। नगर निगम के कर्मचारियों ने परिवार की भूमिका अदा की। गुलाब सिंह ने प्रेम सिंह के शव को चिरायु अस्पताल के निकट बैरागढ़ विश्राम घाट पर मुखाग्नि दी और विधि-विधान के साथ अन्य संस्कार किये।
बेटी-दामाद को नहीं दिया था प्रवेश
पिछले सप्ताह उज्जैन में कोरोना संक्रमण के भय से तार-तार होते रिश्तों की भयावह तसवीर सामने आयी थी। इंदौर में रहने वाले एक परिवार के तीन बेटे कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए थे। तीनों को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद इनके माता-पिता को क्वरेंटीन किया गया था। लेकिन माता-पिता प्रशासन को गच्चा देकर इंदौर से उज्जैन के लिए पैदल निकल पड़े थे।
उज्जैन में इस महिला का मायका है। निलोफर नाम की इस महिला का कहना था कि जब वह अपने पति के साथ मायके पहुँची तो उनकी अम्मी नज़मा बी ने उन्हें घर में घुसने नहीं दिया। उसकी अम्मी का कहना था कि यदि उन्हें घर में रख लिया तो पूरा परिवार मुसीबत में पड़ जाएगा। यह दंपत्ति पूरे दिन उज्जैन में भटकता रहा था। पुलिस के हत्थे चढ़ने पर दंपत्ति को उज्जैन के एक सेंटर में क्वरेंटीन कर दिया गया था।