एमपी : कोरोना से लड़ने लायक सुविधाएँ नहीं, निराश डॉक्टर दे रहे हैं इस्तीफ़ा

09:51 pm Jun 04, 2020 | संजीव श्रीवास्तव - सत्य हिन्दी

स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में बेहद पिछड़े राज्यों में शुमार मध्य प्रदेश कोरोना काल में ख़ासी मुश्किलों में है। डाॅक्टरों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी तो पहले से ही थी, संसाधनों की कमी ने भी राज्य के लोगों और स्वयं स्वास्थ्य महकमे को मुश्किलों में डाला हुआ है। परेशान डाॅक्टर तो अब इस्तीफ़े देने लगे हैं।

एपिडेमोलॉजिस्ट का इस्तीफ़ा

भोपाल में कोरोना इन्फेक्शन कंट्रोल टीम की एपिडेमोलाॅजिस्ट डाॅक्टर रश्मि जैन ने बुधवार को सीएमएचओ डाॅक्टर प्रभाकर तिवारी को अपना इस्तीफ़ा भेज दिया है। डाॅक्टर रश्मि ने अपने इस्तीफ़े में कोरोना से जंग के लिए पर्याप्त संसाधन और स्टाॅफ की कमी होने की दलील दी है।

बकौल रश्मि, वे सीएमएचओ ऑफिस के एक शेड में बैठकर काम कर रही थीं। अनेक महत्वपूर्ण डाटा वह ख़ुद पिछले दिनों से कम्प्यूटर में फ़ीड करती रहीं। मगर ज़रूरत के वक़्त वह भी नहीं मिल पाया। एक्सेल पर काम करने वाला स्टाॅफ तक उन्हें नहीं मिला।

डॉक्टर रश्मि ने अपने इस्तीफ़े में कहा कि जो हालात हैं, उनमें कोरोना से जंग लड़ना मुश्किल है, ऐसे में वह असहाय हैं और नौकरी छोड़ने को मजबूर हो गई हैं।

डॉक्टरों की कमी

भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और उज्जैन ऐसे शहर हैं, जहाँ पर्याप्त संख्या में डाॅक्टर हैं। इन नगरों की गिनती सरप्लस डाॅक्टरों वाले शहरों में भी की जा सकती है। दरअसल राज्य के इन टाॅप शहरों में पद ना होते हुए भी अनेक डाॅक्टरों ने जोड़तोड़ से पोस्टिंग हासिल की हुई है।

राज्य में कुल 51 ज़िले हैं। ज़्यादातर ज़िलों में डाॅक्टरों की संख्या कम है। 

कई ज़िले तो ऐसे हैं जहाँ लगभग 75 फ़ीसदी पद खाली है। ऐसे ज़िलों में राजस्थान की सीमा से लगा नीमच सबसे ऊपर है। मंदसौर और रतलाम में भी डाॅक्टरों की बेहद कमी है।

आदिवासी बाहुल्य ज़िले अलीराजपुर, झाबुआ और धार में डाॅक्टरों की ज़बरदस्त की कमी है। सीधी, सिंगरौली, बैतूल, राजगढ़, रायसेन, शाजापुर और आगर मालवा ज़िलों की गिनती भी डाॅक्टरों की बेहद कमी वाले ज़िलों में की जा सकती है।

ग्रामीण इलाक़ों में हालात सबसे खस्ता हैं। बड़ी तादाद में डाॅक्टरों की कमी ग्रामीण क्षेत्र के स्वास्थ्य केन्द्रों में है। ब्लाॅक लेबल पर भी डाॅक्टर नहीं हैं।

विशेषज्ञों के 80% पद खाली

मध्य प्रदेश में क्लास वन विशेषज्ञ चिकित्सकों के कुल स्वीकृत पदों की संख्या 3 हज़ार 620 हैं। आज की तारीख़ में महज 765 पद ही भरे हुए हैं। विशेषज्ञ चिकित्सकों के 2,855 पद खाली हैं।

इसी तरह मेडिकल अफ़सरों के कुल स्वीकृत 5 हज़ार 97 पदों में 1508 पद रिक्त हैं। वर्तमान में 3 हज़ार 589 मेडिकल अफ़सरों के पद ही भरे हुए हैं।

दावों से उलट हालात

मध्य प्रदेश में पिछले करीब साढ़े सोलह सालों में 15 बरस बीजेपी की सत्ता रही। बीच में पन्द्रह महीने कमल नाथ की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार रही। बीते ढाई महीनों से फिर बीजेपी सत्ता में है। कोरोना संक्रमण फैलने के बाद सरकार की ओर से दावे तो लगातार हो रहे हैं, लेकिन ज़मीनी हकीक़त उलट है।

पीपीई किट से लेकर एन95 मास्क और अन्य संसाधनों की कमियाँ आम शिकायत हैं। डाॅक्टरों और संसाधनों की कमी की ओर ध्यान दिलाये जाने पर स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा दावा करते हैं,

‘कोरोना के नियंत्रण में सरकार कोई भी कमी नहीं छोड़ रही है। ज़रूरत के अनुसार हर सुविधा मुहैया कराई जा रही है। हेल्थ स्टाफ की सुरक्षा पर भी सरकार पूरा ध्यान दे रही है। कोरोना वॉरियर्स को 50 लाख रुपयों का बीमा कवच दिया हुआ है।’


नरोत्तम मिश्रा, स्वास्थ्य मंत्री, मध्य प्रदेश

सभी 51 ज़िलों में कोरोना रोगी

स्वास्थ्य मंत्री भले ही दावा करें कि सबकुछ नियंत्रण में है, लेकिन यह सही नहीं है। पिछले एक पखवाड़े में पूरा मध्य प्रदेश कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुका है। सभी 51 ज़िलों में कोरोना के रोगी हैं।

सरप्लस डाॅक्टरों वाले इंदौर, भोपाल और उज्जैन में रोगी बढ़ते ही चले जा रहे हैं। इन तीनों शहरों में कोरोना संक्रमितों की मौत के मामले भी थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

‘स्वर्णिम अवसर’

भोपाल के शासकीय जयप्रकाश अस्पताल से अधीक्षक पद से रिटायर्ड डाॅक्टर सुरेन्द्र सक्सेना कहते हैं, ‘लोक स्वास्थ्य को वास्तव में आम जन की चिकित्सा का जरिया बनाने का बेहद सुनहरा समय है। कोरोना को देखते हुए सरकार और तंत्र को जाग जाना चाहिए। अभी जाग गये तो आने वाला वक़्त सुनहरा हो जायेगा।’

डाॅक्टर सक्सेना आगे कहते हैं, ‘दरअसल लोक स्वास्थ्य को समाप्त करने का एक कुचक्र सा चलता आ रहा है। स्वास्थ्य ने उद्योग का रूप ले लिया है। तंत्र में बैठा वह बड़ा हिस्सा जो बेहतर से बेहतर निजी अस्पताल में इलाज में सक्षम है, वह सरकारी क्षेत्र के लोक स्वास्थ्य को उद्योग में बदलने में भूमिका निभा रहा है।’

डाॅक्टर सक्सेना सलाह देते हैं, ‘मौजूदा सरकारी स्वास्थ्य ढाँचे को मजबूत करने की दिशा भर में ईमानदारी भरे कदम बढ़ाकर ना केवल कोरोना बल्कि आगे आने वाली विपदाओं से निपटने की तैयारी भी की जा सकती है।’

राज्य में 3 जून की शाम को जारी सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना पाॅजिटिव रोगियों की संख्या साढ़े आठ हजार से ज़्यादा हो चुकी थी, 371 मौतें हुई थीं। इंदौर में मौतों का आंकड़ा 141, भोपाल में 60 और उज्जैन में 58 था। कुल पाॅज़िटिव रोगियों में 2800 के करीब रोगियों के ठीक होने का आँकड़ा भी इसमें शामिल था।