मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ‘संकट’ में हैं। यादव ने 13 दिसंबर 2024 को मुख्यमंत्री पद संभाला था। साल पूरा होने वाला है, लेकिन राजनीतिक तौर पर मोहन यादव सेट नहीं हो पाये हैं। उन्हें ‘बाहर’ (विपक्ष) से कहीं ज्यादा चुनौतियां ‘घरवालों’ (काबीना एवं बीजेपी संगठन के सहयोगियों) से पेश आ रही हैं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद मिलने के बाद भी मोहन यादव के सेट न होने पाने की खास वजह, मध्य प्रदेश के दिग्गज नेताओं की वो टोली है - जिसे, मोदी-शाह की मर्जी (सीएम मोहन यादव) को, न चाहते हुए भी झेलना पड़ रहा है। याद रहे मोहन यादव सरकार में विधानसभा के स्पीकर पद पर नरेन्द्र सिंह तोमर विद्यमान हैं। केन्द्र में मंत्री रहे तोमर, मध्य प्रदेश भाजपा की राजनीति के पुराने धुरंधर हैं।
अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले सातवीं बार के विधायक जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम पद मिला हुआ है। दूसरे डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल भी पांचवीं बार के विधायक हैं। मोहन यादव के अधीन 7वीं बार के विधायक और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं शिवराज सिंह चौहान के संकट मोचकों में शुमार रहे कैलाश विजयवर्गीय मंत्री हैं।
ऐसे ही 7 बार के आदिवासी विधायक विजय शाह, 5 बार के विधायक एवं कई बार के सांसद और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्यमंत्री रहे प्रहलाद पटेल मन मसोसकर काम कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष और जबलपुर से चार बार लोकसभा के सदस्य एवं लोकसभा में भाजपा संसदीय दल के मुख्य सचेतक रहे राकेश सिंह को भी मोहन यादव काबीना के सदस्य के तौर पर काम करना पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश विधानसभा में लगातार 9वीं बार सागर की रेहली सीट से पहुंचे गोपाल भार्गव पार्टी के साधारण विधायक की भूमिका में हैं। काफ़ी सीनियर विधायकों की संख्या डेढ़ दर्जन से कुछ ज्यादा है। उपरोक्त में ज्यादातर वो नाम हैं, जो विधानसभा चुनाव 2023 के नतीजों के पहले और परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री पद की रेस में बने रहे थे। मोदी और शाह की जोड़ी ने सभी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए तीसरी बार के विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपकर सभी को चौंका दिया था। कुर्सी मिलने के बाद मोहन यादव का अंदाज और कार्यशैली, हर दिन इनके सीने को जलाती है। सीने पर सांप लौटाती है।
यही वजह है कि मोदी एवं शाह की पसंद होने के बावजूद जिसे जब मौका मिलता है, वो टंगड़ी अड़ाने, या फिर पीठ पर वार करने से नहीं चूकता। मोहन यादव की पीठ भर पर नहीं, सामने से वार करने वाले चेहरे भी सामने आते हैं। मुख्यमंत्री मोहन यादव पर ताजा राजनीतिक हमला, गत दिवस देखने को मिला। राज्य मंत्रिमंडल की बैठक से जो खबर निकलकर बाहर आयी, उससे मोहन यादव की ज़बरदस्त छीछालेदर हो रही है।
खबरों के अनुसार उज्जैन में 2 हज़ार 312 करोड़ रुपयों की तीन सड़कों की स्वीकृति का मसला कैबिनेट बैठक में रखा गया था। पीडब्ल्यू मिनिस्टर रह चुके (मोहन यादव काबीना में नगरीय विकास एवं आवास और संसदीय कार्यमंत्री) कैलाश विजयवर्गीय ने प्रस्ताव का न केवल विरोध किया, बल्कि तीखी आपत्तियां भी जताईं। यहां बता दें, मोहन यादव उज्जैन के रहने वाले हैं। उज्जैन उनका गृह शहर एवं गृह जिला है।
मीडिया खबरों के अनुसार प्रस्ताव का विरोध करते हुए विजयवर्गीय ने दो टूक कहा, ‘उज्जैन में ही इतना पैसा जाएगा तो प्रदेश की बाकी सड़कों का क्या होगा?’ खबर में आगे बताया गया, मोहन यादव सरकार में पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग एवं श्रम महकमे की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे प्रहलाद पटेल ने आग में घी डालते हुए ज्यादा गंभीर सवाल उठाया और पूछा, ‘इतनी लागत क्यों? बताते हैं, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अकेले उज्जैन की सड़कों पर 23 सौ करोड़ राशि व्यय होने को लेकर सफाई दी, ‘सिंहस्थ होने एवं इस फंड में महज 5 सौ करोड़ रुपये का ही प्रावधान होने की यादव की दलील रही।’
सीएम यादव की सफ़ाई एवं दलील पर विजयवर्गीय का जवाब रहा, ‘ऐसा है तो सिंहस्थ का बजट बढ़वायेंगे। केन्द्र से बात करेंगे।’ पूरे मामले में ‘सत्य हिन्दी’ ने संबंधितों का अधिकारिक बयान लेने का प्रयास किया, लेकिन टिप्पणी नहीं मिल पायी।
इन तीन सड़कों को लेकर हुआ विवाद...!
- 1. उज्जैन सिंहस्थ बायपास, लंबाई 19.815 किलोमीटर, 4-लेन. लागत 701.86 करोड़।
- 2. इंदौर-उज्जैन ग्रीनफील्ड 4-लेन. लंबाई 48.05 किलोमीटर. लागत 1370.85 करोड़।
- 3. उज्जैनके इंगोरिया-देपालपुर 2-लेन, लंबाई 32.60 किलोमीटर. लागत 239.38 करोड़।
मुख्य सचिव बने सीएम की ढालः खबरों के अनुसार राज्य के मुख्य सचिव अनुराग जैन मुख्यमंत्री के ढाल बने। उनका कहना रहा, ‘सड़क बनने में 3 से 4 साल लगेंगे। बीओटी में हो तो फाइनेंशियल क्लियरेंस में एक से डेढ़ साल लगते हैं। शासन सड़क बनाकर उस पर टोल लगाएगा। सड़क के दोनों तरफ इंडस्ट्रियल टाउनशिप बनायेंगे। लैंड पुलिस से भी पैसा मिलेगा। सिंहस्थ की सड़कों का यह मामला एकदम ताजा है। इसके अलावा भी निरंतर मुख्यमंत्री यादव, सीनियर मिनिस्टरों और भाजपा के सीनियर लीडरों के बीच खींचतान की खबरें सामने आ रही हैं।
सागर में मंच से ललकारा गया…!
सागर में सरकार के खिलाफ जबरदस्त उबाल है। शिवराज काबीना में सदस्य रहे भूपेन्द्र सिंह मंत्री नहीं बनाये जाने से खासे दुखी हैं। नौ बार के विधायक गोपाल भार्गव का दर्द एवं मर्म भी कुछ यही है। भार्गव ने खुद को मुख्यमंत्री पद रेस में शामिल किया था। उन्हें भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। मजेदार बात यह है कि सागर जिले से ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास चमचे, गोविन्द सिंह राजपूत मलाईदार महकमा लेकर मोहन यादव सरकार में मंत्री हैं। गोविन्द सिंह के खिलाफ कथित गड़बड़ियों के कई मामले बीते साल भर में मीडिया में उछले (वास्तव में उछाले गए), लेकिन सिंह का बाल भी बांका नहीं हुआ है।
क्षत्रियों ने दी विद्रोह की चेतावनीः सागर में विगत दिवस हुए भाजपा समर्थक क्षत्रियों के सम्मेलन में सरकार के खिलाफ विद्रोह की खुली चेतावनी मंच से दी गई। इस आयोजन में भाजपा के वरिष्ठ विधायक भूपेन्द्र सिंह मंच पर मौजूद रहे। समाज के नेताओं एवं भाजपा समर्थकों के साथ अन्याय के घटनाक्रमों का उल्लेख किया गया। कहा गया, ‘भूपेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया। इससे समाज आहत है।’ सागर में यह पहला मौका नहीं था। इसके पहले भी बीते कुछ वक्त में सार्वजनिक तौर पर भाजपा नेताओं एवं सीनियर विधायकों की तल्खियां मोहन यादव और पार्टी की सरकार के खिलाफ देखने-सुनने को मिली है।
पर्ची वाले सीएम हर मोर्चे पर फेलः विपक्ष
मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी, एवरेज दिन में तीन बार मुख्यमंत्री मोहन यादव को आड़े हाथों लेते हैं। उनका एक पेटेंट डायलॉग होता है पर्ची वाले सीएम यादव हर मोर्चे पर फैल हैं। कानून-व्यवस्था में विफल होने, तबादला उद्योग चलाने और भ्रष्टाचार को चरम पर ले जाने का आरोप पटवारी बार-बार मोहन यादव पर मढ़ते हैं। सीनियर जर्नलिस्ट राकेश दीक्षित ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘मोहन यादव जूनियर हैं, सबको साथ लेकर चलने के लिए मुख्यमंत्री पद की ठसक को भूलकर काम करना होगा।’ वे आगे कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री ने जमीन प्रेम और अन्य मोह नहीं त्यागा तो आने वाले वक्त में उनकी मुश्किलें ज्यादा बढ़ेंगी। मोह नहीं छोड़ा तो कुर्सी, हाथों से निकल भी सकती है।’ यहां बता दें, मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास सामान्य प्रशासन, गृह, जेल, औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन, जनसम्पर्क, नर्मदा घाटी विकास, विमानन, खनिज साधन, लोक सेवा प्रबंधन, प्रवासी भारतीय सहित ऐसे अन्य समस्त विभाग भी हैं जो किसी अन्य मंत्री को नहीं सौंपे गए हैं। मोहन यादव मप्र के पहले ऐसे सीएम भी हैं जिन्होंने इंदौर जिले का प्रभार अपने पास रखा हुआ है।
कैबिनेट में सीनियर नहीं आते, पार्टी में भी उठापटकः शिकायतें यह भी सामने आयी हैं कि सीनियर मिनिस्टर्स कैबिनेट की बैठक में बिना पूर्व सूचना के नदारत रह रहे हैं। कुल मिलाकर मप्र सरकार में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है। खींचतान तेज है। पार्टी के भीतर में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। एक्सटेंशन पर चल रहे भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की कुर्सी पर कई सीनियर्स दावेदार निगाह गड़ाए बैठे हुए हैं।
तीन पर्चियां, तीन मुख्यमंत्री
मोहन यादव किन हालातों में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाये गये थे, किसी से छिपा हुआ नहीं है। साल 2023 में मध्य प्रदेश, छत्तीगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम राज्य विधानसभा के चुनाव हुए थे। पांच सूबों के चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ राज्य को भाजपा ने अपने नाम कर लिया था। तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार बनी थी। जबकि मिजोरम में जोरम पीपुल्स मूवमेंट (जेड.पी.एम.) सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री ने पार्टी और प्रेक्षकों को चौंकाते हुए तीसरी बार के विधायक (शिवराज सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री रहे) मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था।मप्र की तरह राजस्थान में पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा और छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय के नाम का रूक्का खोला था। सीएम बनाये जाते वक्त, साय का राजनीतिक कैरियर ठीक-ठाक था। लेकिन मोहन यादव और भजनलाल शर्मा ने पार्टीजनों को ही दांतों तले ऊंगलियां दबाने पर मजबूर कर दिया था।