क्या भाजपा में सिंधिया का गेमओवर होने वाला है?

06:14 pm Dec 01, 2024 | संजीव श्रीवास्तव

ज्योतिरादित्य सिंधिया से क्या भारतीय जनता पार्टी का ‘मन’ भर गया है? सिंधिया क्या अब बीजेपी पर बोझ हो चले हैं? भाजपा क्या उन्हें थ्रो करने के मूड में है? या स्वयं ज्योतिरादित्य सिंधिया किसी बड़े फैसले का मन बना चुके हैं? ये और ऐसे अनेक सवालों की गूंज मध्य प्रदेश के राजनीतिक गलियारों और प्रशासनिक वीथिकाओं में तेज हो गई है। भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई का रूख एवं रवैया, इन तमाम अटकलों को और बल देता नज़र आ रहा है।

महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनावों के साथ देश की अलग-अलग राज्य विधानसभाओं की कुल 48 एवं दो लोकसभा सीटों वायनाड एवं नादेड़ के लिए भी हाल ही में उपचुनाव हुए हैं। विधानसभा सीटों के उपचुनावों में मध्य प्रदेश की दो सीटें शामिल रही हैं।

इन दो सीटों में एक सीट ग्वालियर-चंबल संभाग में आने वाले श्योपुर जिले की विजयपुर और दूसरी भोपाल संभाग में आने वाले सीहोर जिले की बुधनी विधानसभा सीट शामिल रही है।

चुनाव के परिणामों में बुधनी सीट को भाजपा बीते चुनावों की तुलना में काफी कम मतों से जीत पायी, जबकि विजयपुर सीट पर बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। फिलवक्त, विजयपुर सीट पर भाजपा की हार को लेकर तकरार चल रही है। भाजपा ने इस सीट से रामनिवास रावत को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस प्रत्याशी मुकेश मल्होत्रा ने 7 हजार से ज्यादा वोटों से जीत ली।

बहुत दिलचस्प बात इस सीट के उपचुनाव में यह रही कि कांग्रेस की टिकट पर लड़ते और जीतते रहे रामनिवास रावत इस उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार थे। जबकि भाजपा खेमे में रहे, चुनाव लड़ चुके, मल्होत्रा कांग्रेस प्रत्याशी थे।

रामनिवास रावत की हार के बाद से भाजपा में घमासान मचा हुआ है। रामनिवास रावत ने हार के लिए संकेतों में केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी जिम्मेदार ठहराया है। उनके समर्थक तो खुले आम कह रहे हैं, सिंधिया ने डॉज नहीं दिया होता और उनके समर्थक सेबोटॉज नहीं करते तो रावत चुनाव नहीं हारते।

विजयपुर सीट ग्वालियर-चंबल संभाग के उस हिस्से में है, जिसे सिंधिया के दबदबे और प्रभाव क्षेत्र में गिना जाता है। उपचुनाव के नतीजे 23 नवंबर को आये थे। नतीजों के बाद से हार का ठीकरा फोड़ने के लिए सिर ढूंढा जा रहा है।

रावत और उनके समर्थकों की दो टूक के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गत दिवस ग्वालियर पहुंचने पर मीडिया के सवालों के जवाब में कहा, ‘इस (विजयपुर हार) पर चिंतन करना होगा। ज़रूर चिन्ता की बात है। पर मतों में भी बढ़ोतरी हुई है। अगर मुझे कहा जाता तो मैं जरूर जाता।’

केन्द्रीय मंत्री सिंधिया के बयान के बाद भाजपा की राज्य इकाई ने ज्योतिरादित्य पर सनसनीखेज पलटवार कर दिया है। भाजपा के प्रदेश कार्यालय मंत्री और भोपाल दक्षिण से पार्टी विधायक, भगवानदास सबनानी ने साफ कर दिया है, ‘मुख्यमंत्री मोहन यादव, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा ने विजयपुर सीट पर प्रचार का आग्रह सिंधिया से किया था। सिंधिया ने अन्यत्र व्यस्त होने का हवाला देते हुए उपचुनाव में प्रचार करने में असमर्थता जता दी थी।’

भगवानदास सबनानी अपने तई यह बयान दें, संभव नहीं है। राज्य इकाई भी इस तरह का सार्वजनिक बयान देने के पहले दस बार सोचेगी। सिंधिया मोदी सरकार में मंत्री हैं। माना जा रहा है कि बिना दिल्ली की ‘अनुमति’ के यह बयान दिया जाना मुमकिन नहीं है।

बहरहाल, भगवानदास सबनानी के बयान के बाद सिंधिया के भाजपा में भविष्य से जुड़े सवालों से जुड़ा मसला कुछ ज्यादा गहरा गया है।

सीनियर जर्नलिस्ट अरूण दीक्षित कहते हैं, ‘भाजपा अलग तासीर वाला दल है, कांग्रेस को छोड़ते एवं भाजपा का दामन थामते समय सिंधिया इस बात को शायद भूल गए थे। यह मोदी और शाह की भाजपा है। इस भाजपा में वक्त पड़ने पर गधे को बाप बनाया जाता है और वक्त निकलते ही बाप को गधा बना दिया जाता है।’

वरिष्ठ पत्रकार अरूण दीक्षित आगे कहते हैं कि सिंधिया की स्थिति अब यह बन गई है, वे न तो घर के बचे हैं, और ना ही घाट के रह गए हैं।

मोदी-0.3 से सिंधिया की पूछपरख कम हुई...!

मोदी-0.3 में ज्योतिरादित्य सिंधिया मिनिस्टर जरूर हैं, लेकिन उन्हें मोदी-0.2 की तुलना में कथित तौर पर कम प्रभावी संचार और पूर्वाेत्तर क्षेत्र विकास महकमा सौंपा गया तो संकेत मिले कि भाजपा में सिंधिया के ढलान का वक्त आरंभ हो रहा है।

मोदी-0.2 में सिंधिया के पास उड्डयन और इस्पात मंत्रालय की जिम्मेदारी थी। हालांकि संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय बहुत हलके भी नहीं है, लेकिन उड्डयन एवं इस्पात विभाग में सिंधिया के कामकाज की मोदी तारीफ करते नहीं थका करते थे, फिर ये महकमे पुनः उन्हें क्यों नहीं दिए गए? इस बात की चर्चाएं निरंतर हो रही हैं।

मोदी-0.3 में सिंधिया की निरंतर कम होती पूछपरख और भाजपा संगठन द्वारा भी कथित तौर पर सिंधिया के प्रॉपर उपयोग न किए जाने की गूंज लंबे वक्त से हो रही है। सिंधिया की बॉडी लैंग्वेज और खनकदार आवाज़ की खनक पहले जैसी नहीं रहने के चर्चे भी निरंतर हो रहे हैं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर जो तमाम प्रश्न उठ रहे हैं अथवा राजनीतिक एवं प्रशासनिक वीथिकाओं में जो ताजा चर्चाएं हैं, वो यूं हीं नहीं हैं।

मध्य प्रदेश सहित पांच राज्यों के चुनावों में भी बहुत कुछ परिलक्षित हुआ था। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिंधिया के कई समर्थकों के टिकट कटे। बाद में जब भाजपा की सरकार बनी तो मंत्री पदों पर सिंधिया का ‘कोटा’ भी बगावत के दौर (कमल नाथ सरकार को गिराकर शिवराज सरकार बनाने के दौरान मिले हिस्से) से काफी कम हो गया।

सिंधिया का उपयोग मध्य प्रदेश सहित पांच सूबों के चुनाव में वैसा नहीं हुआ, जैसा कि सिंधिया अथवा उनके समर्थक लगाये बैठे थे। रही-सही कसर पहले जम्मू कश्मीर एवं हरियाणा में पूरी हुई। महाराष्ट्र और झारखंड में सिंधिया की पूछ-परख और भी कम हो गई।

सिंधिया के इस दावे कि विजयपुर उपचुनाव में उन्हें प्रचार का निर्देश मिलता तो वे जाते, को सही मान लिया जाये तो सिंधिया की भाजपा में स्थिति क्या बची है? समूची कहानी, सिंधिया का बयान ही खुद बयां कर रहा है।

कुल जमा, जो हालात बन रहे हैं, उन्हें सिंधिया के भाजपा में राजनीतिक भविष्य के मान से बेहतर नहीं माना जा रहा है।

सिंधिया की राहुल-खड़गे से मुलाकात की चर्चाएं

संविधान दिवस पर दिल्ली के केन्द्र सरकार के जलसे में ज्योतिरादित्य सिंधिया की राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की चर्चाएं भी थम नहीं रही हैं। हालांकि सिंधिया के नजदीकी सूत्रों ने दावा किया है, ‘शिष्टाचार भेंट थीं।’

कांग्रेस की ओर से भी कहा गया, ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया की माताश्री के निधन के बाद राहुल गांधी सिंधिया से रूबरू मिल नहीं पाये थे। शिष्टाचार भेंट की एक वजह यह भी थी।’

मगर मुलाकात अफसाना बनी हुई है। तमाम ‘अफसानों’ के बीच मध्य प्रदेश भाजपा के सिंधिया पर पलटवार वाले बयान के तमाम निहितार्थ निकाले या खोजे जा रहे हैं।

भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई के पलटवार वाले बयान के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया अथवा उनके समर्थकों की ओर से कोई नया बयान अभी नहीं आया है। मीडिया को सिंधिया के जवाबी बयान की प्रतीक्षा है।