कांग्रेस विधायकों की दगाबाज़ी की वजह से सत्ता गंवाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ अपने कुनबे के विधायकों को अब भी साधकर नहीं रख पा रहे हैं। एक के बाद एक विधायक कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़कर ‘कमल’ को थाम रहे हैं।
उधर, राजस्थान के सचिन पायलट एपिसोड ने भी नाथ की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। इस बीच चुनाव आयोग ने राज्य विधानसभा की रिक्त सीटों पर सितंबर में चुनाव के संकेत देकर कांग्रेस का बीपी और बढ़ा दिया है।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के दो विधायकों ने हाल ही में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। इन दो विधायकों की बगावत के बाद कांग्रेस को धोखा देने वाले विधायकों की संख्या 24 हो गई है। सिंधिया समर्थकों की बगावत से पहले दो सीटें सदस्यों के आकस्मिक निधन से रिक्त थीं। इस तरह से मध्य प्रदेश में फिलहाल 26 सीटों पर उपचुनाव सुनिश्चित हो गया है।
मध्य प्रदेश कांग्रेस के विधायकों में ‘भगदड़’ अभी थमी नहीं है। कई कांग्रेसी विधायकों के बीजेपी के संपर्क में होने की ख़बरें हैं।
ग्वालियर-चंबल संभाग के एक बेहद वरिष्ठ विधायक के अलावा कमल नाथ सरकार में मंत्री रहे विंध्य क्षेत्र के एक युवा विधायक के भी कांग्रेस छोड़कर बीजेपी के साथ जाने की सुगबुगाहट बनी हुई है। ख़बरों के अनुसार, अभी भी चार-पांच कांग्रेस विधायक बीजेपी के संपर्क में बताये जा रहे हैं।
विधायकों की ग़ैर-हाजिरी से खलबली
पीसीसी अध्यक्ष और कांग्रेस विधायक दल के नेता कमलनाथ ने रविवार को कांग्रेस विधायकों की बैठक बुलाई थी। बैठक में सभी को एकजुट रहने की ‘शपथ’ दिलाई गई। बैठक में सभी को उपस्थित रहने के निर्देश दिये गये थे। बावजूद इसके कुल 90 विधायकों में से 65 ही बैठक में पहुंचे। दो दर्जन से ज्यादा विधायकों की ग़ैर-हाजिरी चर्चा में रही। दिग्विजय सिंह के अनुज लक्ष्मण सिंह भी बैठक में नहीं आये।
बीजेपी की पैनी नज़र
कुल मिलाकर दृश्य यही बन रहा है कि नाथ अपने विधायकों को साध नहीं पा रहे हैं। उधर, कांग्रेस विधायकों में कथित असंतोष को भुनाने में बीजेपी भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। हाल ही में बीजेपी ने जब एक विधायक को तोड़ा था तो कांग्रेस छोड़ने और बीजेपी ज्वाइन करने वाले दिन ही उन्हें मंत्री पद के दर्जे के साथ एक निगम का अध्यक्ष बना दिया गया था।
मध्य प्रदेश बीजेपी के रणनीतिकार चाहते हैं कि उपचुनाव से पहले कांग्रेस को संख्याबल में इस कदर पीछे कर दिया जाये कि अगर उपचुनाव में उसे कुछ सीटें कम भी मिलें तो भी सत्ता उसके हाथों में ही बनी रहे। बीजेपी की दूसरी रणनीति यह भी है कि सिंधिया और उनके समर्थकों का दबाव कम करने के लिए सिंधिया समर्थक उन ग़ैर- विधायकों को ‘जमीन’ दिखाई जाए, जो सिंधिया की मदद से शिवराज कैबिनेट में ना केवल जगह हासिल किये हुए हैं, बल्कि सिंधिया के दबाव के चलते अच्छे विभाग भी पा चुके हैं।
ग्वालियर-चंबल में 16 सीटें
उपचुनाव वाली कुल 26 सीटों में 16 सीटें ग्वालियर-चंबल संभाग में हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव क्षेत्र वाले इलाकों की इन सीटों पर उपचुनावों के लिए बीजेपी ने तैयारियां आरंभ कर दी हैं। मुख्यमंत्री शिवराज और ज्योतिरादित्य सिंधिया साझा चुनावी दौरे भी करने लगे हैं। बीजेपी के इन नेताओं के साथ आला नेतागण वर्चुअल रैलियां कर रहे हैं।
पायलट एपिसोड ने बढ़ाई मुश्किलें
उपचुनाव के तमाम गुणा-भाग के बीच राजस्थान में सचिन पायलट के एपिसोड ने कमलनाथ और कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। असल में ग्वालियर-चंबल संभाग में जिन 16 सीटों पर उपचुनाव होना है, उनमें 8 ऐसी हैं जहां गुर्जर वोट महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सचिन पायलट गुर्जर नेता हैं और उनकी इस वोट बैंक में खासी पैठ है। सचिन के साथ जो कुछ भी हुआ और हो रहा है, उससे गुर्जर तबका नाराज बताया जा रहा है।
गुर्जर वोटर खड़ी करेंगे मुश्किल
कमलनाथ के सिरदर्द की वजह कथित तौर पर नाराज चल रहे गुर्जर वोटर माने जा रहे हैं। यहां बता दें मध्य प्रदेश की जिन आठ सीटों पर गुर्जर वोटरों की भूमिका अहम होती है, उनमें मुरैना में 60 हजार, सुमावली में 45 हजार, मेहगांव में 27 हजार, गोहद में 23 हजार, जोरा में 18,000, दिमनी में 17,000, अंबाह, ग्वालियर पूर्व, भांडेर और डबरा में 10-10 हजार, ग्वालियर, बम्होरी तथा मुंगावली में 5000-5000 तथा अशोक नगर में दो हजार वोट गुर्जर समाज के वोटर हैं। इन क्षेत्रों का पिछले चुनावों का ट्रेंड देखा जाये तो आमतौर पर ये वोट एकतरफा पड़ते हैं।
मध्य प्रदेश में कांग्रेस को यदि सत्ता में वापसी करनी है तो उसे सभी 26 सीटें जीतनी होंगी। हालांकि किसी भी सूरत में यह मुमकिन नहीं माना जा रहा है। कांग्रेस के पास ताजा हालात में 90 विधायक हैं जबकि राज्य विधानसभा में सत्ता पाने का जादुई आंकड़ा 116 का है।
मध्य प्रदेश में विधानसभा के 2018 के चुनाव के बाद कमलनाथ की अगुवाई में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तब कांग्रेस के पास कुल 230 में से 114 सीटें थीं। बीएसपी के दो, एसपी के एक और चार निर्दलीयों ने उसका साथ दिया था और कांग्रेस का आंकड़ा 121 पर पहुंच गया था। बीजेपी के पास 109 सीटें थीं।
दिसंबर, 2019 में कांग्रेस के बनवारी लाल शर्मा और जनवरी, 2020 में बीजेपी के मनोहर ऊंटवाल के निधन से दो सीटें रिक्त हुईं थीं। मार्च महीने में 22 कांग्रेस विधायकों के पार्टी छोड़ने के बाद खाली सीटों की संख्या 24 हो गई थी। कमलनाथ की सरकार गिराने के लिए कांग्रेस का साथ छोड़ने वाले 14 गैर विधायकों को शिवराज ने अपनी काबीना में जगह दी है। हाल ही में कांग्रेस के दो और विधायकों प्रद्युम्न सिंह लोधी और सुमित्रा देवी ने भी कांग्रेस छोड़ दी है।
बीजेपी को चाहिए 9 सीटें
बीजेपी के पास अभी 107 विधायक हैं। अपने दम पर सत्ता में बने रहने के लिए उपचुनाव में महज 9 सीटें जीतने पर भी उसका ‘काम’ चल जाएगा। बीजेपी ने कुछ निर्दलीय और बीएसपी-एसपी विधायकों को पहले ही साध रखा है। बीजेपी रिक्त हो चुकीं 26 में से कम से कम आधी या उससे कुछ ज्यादा सीटें जीतने के लिए पूरा जोर लगाएगी, प्रेक्षक ऐसी संभावना जता रहे हैं।