एमपी : सरकार और गवर्नर की लड़ाई में कूदे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल

01:18 pm Oct 08, 2019 | संजीव श्रीवास्तव - सत्य हिन्दी

मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन और कमलनाथ सरकार के बीच महापौर के चुनाव की प्रक्रिया को लेकर 'तनातनी' और बढ़ गई है। इस मामले में हरियाणा और त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी भी अब 'कूद' पड़े हैं। पूर्व राज्यपाल सोलंकी ने इस पूरे मसले पर न केवल मध्य प्रदेश के राज्यपाल टंडन का पक्ष लिया है, बल्कि टंडन के कदम पर सवाल खड़ा करने वाले कांग्रेसियों को संकेतों में आड़े हाथ भी लिया है।

बता दें, कमलनाथ सरकार ने पिछले सप्ताह निर्णय किया था कि मध्य प्रदेश में अब महापौर सीधे जनता के बीच से नहीं चुने जायेंगे। महापौर को अब पार्षद  चुनेंगे। सूबे में अगले साल स्थानीय निकायों का चुनाव होना हैं। राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कराये जाने को लेकर तैयारियाँ शुरू कर चुका है। महापौर चुनाव की प्रक्रिया से जुड़ा अध्यादेश लटक जाने से आयोग की तैयारियों को धक्का लगा है।

मध्य प्रदेश में 16 नगर निगम हैं। फ़िलहाल सभी निगमों में भाजपा के महापौर हैं। इन्हें सीधे जनता ने चुनकर शहर का पहला नागरिक यानी महापौर निर्वाचित किया है।

नाराज़ हैं राज्यपाल

महापौर की चुनाव प्रक्रिया से जुड़े अध्यादेश को लेकर कांग्रेस की बयानबाजी से राज्यपाल लालजी टंडन ख़ासे नाराज़ हैं। कांग्रेसियों की बयानबाजी के बाद उन्होंने अपने अधिकारों का दायरा पता कराया है। 

राजभवन के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, सोमवार को राज्यपाल ने क़ानून के विशेषज्ञों के साथ इस पूरे मामले को लेकर एक बैठक की। बैठक में उन्होंने राजभवन द्वारा उठाये जा सकने वाले तमाम कदमों पर राय माँगी और विचार किया। 

नाराज़ हैं त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल

दूसरी ओर, हरियाणा और त्रिपुरा के राज्यपाल रह चुके कप्तान सिंह सोलंकी भी राजभवन के अधिकारों पर प्रश्न खड़ा किये जाने को लेकर नाराज़ हैं। उन्होंने इस पूरे मामले पर मीडिया से कहा, 'लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है और जनता के बीच से चुनाव कराया जाना  अधिक लोकतांत्रिक है।' 

महापौर चुनाव प्रक्रिया से जुड़े कमलनाथ सरकार के अध्यादेश पर विचार के बीच कांग्रेसियों द्वारा राजभवन को राजधर्म का पालन करने की नसीहत से जुड़े सवाल के जवाब में पूर्व राज्यपाल सोलंकी ने कहा, 'संविधान का पालन करना ही राजधर्म है।' संकेतों में उन्होंने - सरकार और कांग्रेसियों को दायरा समझाते हुए यह भी कह डाला कि 'गवर्नर हेड ऑफ दी स्टेट हैं, और सीएम हेड ऑफ दी गवर्मेंट।'

क्या है विकल्प? 

पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा, 'मध्यप्रदेश के गवर्नर के पास महापौर का चुनाव कराने वाले अध्यादेश को लेकर तीन विकल्प खुले हुए हैं' :

  1. गवर्नर यदि अध्यादेश से सहमत नहीं हैं, तो इसे लौटा कर सरकार से स्पष्टीकरण माँग सकते हैं।
  2. अध्यादेश को गवर्नर अपने पास पेंडिंग रख सकते हैं।
  3. अध्यादेश राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।

क्या हुआ था 20 साल पहले? 

महापौर चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराये जाने का प्रावधान 20 वर्ष पहले मध्य प्रदेश में लागू था। दिग्विजय सिंह सरकार ने स्थानीय सरकार के चुनाव की नियम-प्रक्रिया को बदला था। सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने महापौर का चुनाव पार्षदों की बजाय सीधे जनता के वोट से कराये जाने का निर्णय लिया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री सिंह की राय थी कि पार्षदों के जरिये महापौर का चुनाव कारपोरेटर्स की ख़रीद-फ़रोख़्त को बढ़ावा देता है। 

बहरहाल, कमलनाथ सरकार ने अब जब महापौर का चुनाव जनता की वोट से सीधे कराने की जगह पार्षदों के माध्यम से कराने का निर्णय लिया है, तब भाजपा यही दावा कर रही है कि - यह बदलाव एक बार फिर मध्यप्रदेश की स्थानीय सरकार के चुनाव में हार्स ट्रेडिंग को बढ़ायेगा। नाथ सरकार के निर्णय का बीजेपी खुलकर विरोध कर रही है।

आल इंडिया काउंसिल ऑफ मेयर्स का एक प्रतिनिधिमंडल सरकार के निर्णय को अमान्य करने की माँग को लेकर मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन से मिल चुका है।

बता दें, कमलनाथ सरकार ने कैबिनेट की बैठक में पारित कर इस अध्यादेश को मंजूरी के लिए राज्यपाल को भेज रखा है। आमतौर पर काबीना के निर्णयों को राजभवन की  मंजूरी कैबिनेट फ़ैसले के तुरन्त बाद मिल जाने की परंपरा रही है। राज्यपाल लालजी टंडन ने दस दिन बीत जाने के बाद भी अध्यादेश पर दस्तखत नहीं किया है।

सरकार-राज्यपाल टकराव!

अध्यादेश को महामहिम की मंज़ूरी मिलने में हो रही देरी के बीच ही राजभवन पर कांग्रेसियों की  छींटाकशी का सिलसिला शुरू हो गया था। छींटाकशी, नोकझोंक में बदली, और अब इस नोंकझोंक ने सरकार और राजभवन के बीच प्रतिष्ठा के प्रश्न वाले 'बड़े टकराव' का रूप अख़्तियार कर लिया है। कांग्रेस पूरे मामले में आक्रामक हो गई है। राज्यसभा सदस्य और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के पूर्व महाधिवक्ता विवेक तनखा ने राजभवन पर सीधा निशाना साध दिया है।

दो दिन पहले उन्होंने एक ट्वीट करके राज्यपाल लालजी टंडन को 'राजधर्म' का पालन करने का मशविरा दे दिया था। ट्वीट में उन्होंने यह भी कहा था : 

कैबिनेट के निर्णयों को राजभवन की मंजूरी सामान्य प्रक्रिया है। अहम निर्णयों पर राजभवन की दख़लअंदाजी उचित नहीं है।


विवेक तनखा, राज्यसभा सांसद

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी मीडिया सेल के तत्कालीन चेयरमेन और वरिष्ठ नेता माणक अग्रवाल ने तो यहां तक कह डाला था कि राज्यपाल लालजी टंडन भाजपा के दबाव में काम कर रहे हैं। उन्हें बिना देर किये अध्यादेश पर साईन करना चाहिए।’

आल इंडिया कांउसिल ऑफ मेयर्स के महासचिव और शिवराज सरकार में मंत्री रहे उमाशंकर गुप्ता ने कहा, 'विवेक तनखा का ट्वीट राज्यपाल के अधिकारों को चुनौती देने वाला है। उन्हें इस तरह का ट्वीट नहीं करना चाहिए। संवैधानिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए हम अपना विरोध जारी रखेंगे।'

राजभवन, सरकार, कांग्रेस और भाजपा के बीच पूरे मामले को लेकर ‘दाँव-पेच’ के चलते बीते दिनों मुख्य मंत्री कमलनाथ राजभवन पहुंचे थे। क़रीब एक घंटा बैठक चली थी। बैठक में हुई बातचीत का अधिकारिक ब्यौरा सामने नहीं आया था। बताया गया था, मुख्यमंत्री 'सौजन्य मुलाकात' के लिए राजभवन पहुंचे थे। प्रेक्षकों ने माना था महामहिम के साथ हुई लंबी बातचीत में यह मसला (महापौर के चुनाव पार्षदों के माध्यम से कराये जाने वाले अध्यादेश को लेकर भी दोनों के मध्य वार्तालाप) अवश्य चर्चा का विषय रहा होगा। सोमवार शाम को भी कमलनाथ ने राजभवन में महामहिम से मुलाकात की। 

इधर सोमवार को राज्यपाल द्वारा विधिवेत्ताओं के साथ मशविरा करने के पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान भी राजभवन पहुँचे। दोनों ने राज्यपाल टंडन से बंद कमरे में बातचीत की। माना जा रहा है कि महापौर चुनाव जनता के वोट की बजाय पार्षदों के मत से होने वाले अध्यादेश पर भी चर्चा ज़रूर हुई होगी।