दिग्विजय के ख़िलाफ़ क्या साध्वी प्रज्ञा होंगी बीजेपी उम्मीदवार?

07:28 am Apr 13, 2019 | संजीव श्रीवास्तव - सत्य हिन्दी

‘भगवा गढ़’ कहे जाने वाली भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ बीजेपी किसी कट्टर हिंदूवादी चेहरे को मैदान में उतारने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इस सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बाद मालेगाँव बम ब्लास्ट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम पर मंथन चल रहा है। बताया जा रहा है कि भोपाल लोकसभा सीट पर साध्वी प्रज्ञा का नाम आरएसएस की ओर से ही आगे बढ़ाया गया है ताकि अपने इस गढ़ को कांग्रेस द्वारा बचाया जा सके।

भोपाल लोकसभा सीट पर बीजेपी 1989 से काबिज़ है। बेहद मुश्किल इस सीट पर कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार घोषित किया है। सिंह को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद से बीजेपी इस बात को लेकर अपना सिर धुन रही है कि दिग्विजय के मुक़ाबले कौन सा चेहरा ज़्यादा मुफ़ीद साबित होगा?

भोपाल सीट को कांग्रेस ने आख़िरी बार 1984 में जीता था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की नृशंस हत्या के बाद हुए चुनाव में के.एन. प्रधान ने इस सीट को कांग्रेस के टिकट पर जीता था। इस आम चुनाव में मध्य प्रदेश (तब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन नहीं हुआ था) की सभी 40 सीटें कांग्रेस ने जीतीं थीं। 

कांग्रेस 1984 के बाद हुए हर लोकसभा चुनाव में भोपाल में बुरी तरह परास्त हुई है। अनेक प्रयोग कांग्रेस ने किये, लेकिन उसे 84 के बाद इस सीट पर कभी सफलता नहीं मिल सकी।

मोदी लहर में हुए 2014 के चुनाव में भोपाल में कांग्रेस को लगभग पौने चार लाख मतों के बड़े अंतर से हार का मुँह देखना पड़ा था। पार्षद से सीधे लोकसभा का टिकट पाने वाले आलोक संजर ने विधायक रहे कांग्रेस के प्रत्याशी पीसी शर्मा को इस बड़े मार्जिन से हराया था। 

कमलनाथ ने दिये थे संकेत

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दस दिन पहले यह कहकर दिग्विजय सिंह को भोपाल से उतारे जाने के साफ़ संकेत दे दिये थे कि, ‘दिग्विजय सिंह जैसे स्थापित नेताओं को प्रदेश की किसी बेहद मुश्किल सीट से चुनाव लड़ना चाहिये।’ नाथ के संकेतों के बाद दिग्विजय सिंह ने भी कह दिया था, ‘पार्टी जिस भी सीट से चुनाव लड़ने का आदेश देगी वे सहर्ष स्वीकार कर पूरी ताक़त से चुनाव लड़ेंगे।’

बीते शनिवार की दोपहर को मीडिया को दिये गये होली के भोज में सिंह को भोपाल से टिकट देने की बात कमलनाथ द्वारा कही गई थी, और उधर देर रात मध्य प्रदेश के उम्मीदवारों से जुड़ी पहली ही सूची में कांग्रेस ने भोपाल से दिग्विजय सिंह का नाम घोषित कर दिया। 

बीजेपी के दावेदारों में प्रदेश महामंत्री वी.डी. शर्मा का नाम ऊपरी पायदान पर था। ग्वालियर-चंबल संभाग के मूल निवासी शर्मा का विरोध पार्टी में हो रहा है। भोपाल सीट से टिकट के दावेदारों में शुमार रहे पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने तो शर्मा की दावेदारी का विरोध इस तंज के साथ किया था, ‘कौन वी.डी.शर्मा?’ 

  • भोपाल जिले के बीजेपी के विधायक और जिला इकाई भी स्थानीय उम्मीदवार की वकालत कर रही है। मौजूदा सांसद आलोक संजर का टिकट काटे जाने की सुगबुगाहट पूरे उफान पर है। टिकट के लिए जो नाम चल रहे हैं, उनमें भोपाल के महापौर आलोक शर्मा का भी नाम शामिल है।

दिग्विजय के आने के बाद बदले समीकरण 

दिग्विजय सिंह को प्रत्याशी बनाये जाने के बाद बीजेपी अब इस उधेड़बुन में जुट गई है कि सिंह के कद का प्रत्याशी वह भी दे। भोपाल सीट बीजेपी के लिए बेहद सुरक्षित सीटों में शुमार है, लिहाज़ा इस सीट पर बीजेपी के अनेक नेताओं की निगाह टिकी हुई है। ग्वालियर से मुरैना शिफ़्ट किए गए केन्द्रीय मंत्री और मप्र बीजेपी के वरिष्ठ नेता नरेंद्र सिंह तोमर, दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ ताल ठोकने की तैयारी में हैं। 

बीजेपी में कई दौर की बैठक के बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम पर चर्चा हुई है। तमाम नामों में शिवराज का नाम पार्टी बेहद उपयुक्त मानकर चल रही है। लेकिन शिवराज ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

केंद्र में जाना चाहते हैं शिवराज

बार-बार मध्य प्रदेश की राजनीति का दामन नहीं छोड़ने की बात करने वाले शिवराज ने संक्षिप्त सी प्रतिक्रिया यही दी है कि, ‘पार्टी का आदेश उन्हें शिरोधार्य होगा।’ यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाये जाने के बाद से और पुलवामा हमले तथा बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद देश के बदले राजनीतिक हालातों में शिवराज सिंह स्वयं को केन्द्र की राजनीति के लिये तैयार किए हुए हैं। शिवराज विदिशा की अपनी पुरानी सीट से चुनाव लड़ने के इच्छुक बताये जा रहे थे। उनकी एक मंशा यह भी थी कि पार्टी अगर उन्हें टिकट ना दे तो पत्नी साधना सिंह को विदिशा से उम्मीदवार बना दे। लेकिन साधना सिंह के नाम का विदिशा में भारी विरोध हुआ। 

इस सबके बीच केन्द्रीय इकाई ने वंशवाद से बचने का नारा देकर ना केवल शिवराज बल्कि रिश्तेदारों के लिए टिकट की दावेदारी जताने वाले मप्र के कई नेताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। केन्द्र के निर्देश के बाद सभी अपने नातेदारों की उम्मीदवारी के प्रस्तावों को वापस ले चुके हैं।

साध्वी प्रज्ञा ने भी ठोकी है ताल

दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाये जाने के बाद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने भी भोपाल सीट से उम्मीदवार बनाये जाने को लेकर ताल ठोकी है। साध्वी प्रज्ञा मालेगाँव बम ब्लास्ट की आरोपी रहीं हैं। दिग्विजय सिंह ने मालेगाँव ब्लास्ट के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और प्रज्ञा ठाकुर को जमकर निशाने पर लिया था। लंबे समय तक साध्वी प्रज्ञा जेल में बंद भी रहीं। 

बताया जा रहा है कि बीजेपी के अभेद्य गढ़ भोपाल लोकसभा सीट के लिए साध्वी प्रज्ञा का नाम आरएसएस की ओर से आगे बढ़ाया गया। इसकी भनक लगने पर साध्वी प्रज्ञा ने कहा, ‘पार्टी मौक़ा देगी तो मैं दिग्विजय सिंह को भोपाल के चुनावी रण में अभूतपूर्व अंतर से धूल चटाऊँगी।’

विजयवर्गीय भी हैं टिकट के दावेदार

बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी भोपाल से चुनाव लड़ने की इच्छा जता दी है। उन्होंने इंदौर में रविवार को कहा कि पार्टी अवसर दे तो वह दिग्विजय सिंह के ख़िलाफ़ भोपाल से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।

भोपाल में साढ़े चार लाख से ज़्यादा मुसलिम वोटरों को देखते हुए बीजेपी ख़ेमे से शाहनवाज़ हुसैन का नाम भी उछला है। ग़ौरतलब है कि शाहनवाज़ हुसैन को बिहार में टिकट नहीं मिला है।

मप्र बीजेपी से जुड़े एक उच्च पदस्थ सूत्र ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘कांग्रेस द्वारा दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार घोषित किये जाने के बाद कुछ बड़े नेता बेवजह पैनिक क्रिऐट कर रहे हैं। दिग्विजय हौव्वा नहीं हैं। भोपाल सरीखी सुरक्षित सीट पर बीजेपी का आम कार्यकर्ता भी उन्हें हराने में सक्षम है।’ 

इस सूत्र ने मौजूदा सांसद आलोक संजर के टिकट की पैरवी करते हुए कहा, ‘पौने चार लाख वोटों से पिछला चुनाव जीतने वाले कायस्थ वोटर बहुल (तीन लाख के लगभग कायस्थ वोट) क्षेत्र से एक कायस्थ (संजर) का टिकट काटना मेरे तो गले नहीं उतर रहा है, आलोक संजर भी दिग्विजय सिंह को बुरी तरह हराने का माद्दा रखते हैं।’ 

सूत्र ने कहा, ‘बड़बोले दिग्विजय सिंह के मुक़ाबले कम पापुलर या कमजोर माने जाने वाला चेहरा उतारकर बीजेपी किला फतह करेगी तो इसका देश भर में एक अलग संदेश जायेगा कि दिग्विजय को तो बीजेपी का आम कार्यकर्ता भी यूँ ही हरा सकता है।’ वह (सूत्र) कहते हैं, ‘बीजेपी को इसी रणनीति को अपनाना चाहिये।’

दिग्विजय सिंह को भोपाल से उम्मीदवार बनाया जाना, कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई का परिणाम है। सरकार में उनका बढ़ता हस्तक्षेप और पार्टी पर हावी होना पीसीसी चीफ़ कमलनाथ को रास नहीं आ रहा था।


गिरिजाशंकर, वरिष्ठ पत्रकार

गिरिजाशंकर कहते हैं, ‘इंदौर के उम्मीदवार को लेकर दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से पीसीसी चीफ़ से स्पीकर ऑन करके बात की थी, उसके बाद से ही कमलनाथ बेहद अनमने नज़र आने लगे थे। इस घटना के ठीक बाद कमलनाथ ने बयान दिया था कि दिग्विजय सिंह जैसे नेता को प्रदेश की किसी कठिन सीट से चुनाव लड़ना चाहिए।’ गिरिजाशंकर ने कहा, ‘अंतत: दिग्विजय सिंह को भोपाल से टिकट दिलवाकर नाथ अपने ‘इरादे’ में कामयाब हो गए।’ उन्होंने कहा, ‘बीजेपी किसे टिकट देती है, भोपाल में चेहरे को लेकर बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। महज, टेकन फ़ॉर ग्राटेंड वाले भाव को छोड़कर बीजेपी को दिग्विजय को हराने के लिए कुछ ज़्यादा मेहनत करना पड़ेगी - बस।’

सरकार में हस्तक्षेप करने वाले बड़े नेताओं को कमलनाथ किनारे लगाना चाहते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी यूपी का प्रभारी बनाये जाने से अत्याधिक राहत महसूस करने वाले नाथ ने अब दिग्विजय सिंह को कठिनाई में डाल दिया है।


महेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ पत्रकार

श्रीवास्तव कहते हैं, ‘दिग्विजय सिंह अपनी पारंपरिक राजगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, मगर कमलनाथ ने उन्हें भोपाल का टिकट थमवा दिया। दिग्विजय सिंह के लिए यह चुनाव उनका राजनीतिक भविष्य तय करने वाला साबित होगा। तिकड़मबाज - सिंह किसी तरह का चमत्कार करने में कामयाब हुए तो उनकी जय-जयकार सुनिश्चित है और हार गए तो दूसरे अर्जुन सिंह बन जायेंगे (होशंगाबाद सीट हारने के बाद अर्जुन सिंह अपनी पुरानी राजनीतिक ऊंचाईयाँ दोबारा हासिल नहीं कर सके थे)।’