कब तक बची रहेगी मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार?
कहावत है, ‘यूं ही धुंआ नहीं उठ रहा है - कहीं ना कहीं आग तो अवश्य लगी हुई है।’ मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर इस वक़्त यह मुहावरा सटीक बैठ रहा है। दरअसल लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से मध्य प्रदेश में इस बात की सुगबुगाहट जोरों पर है कि नाथ सरकार अब बहुत दिनों तक नहीं चल पायेगी। हालांकि भाजपा कह रही है कि - ‘वह मध्य प्रदेश में कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने और सरकार गिराने का प्रयास नहीं करेगी, यह सरकार अपने ‘कर्मों’ से गिर जायेगी।’ हालांकि नंबरों के मान से सरकार को गिराना भाजपा के लिए आसान भी नहीं है।
छह महीने पहले मध्य प्रदेश में सरकार बनाने वाली कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजे बेहद चिंतनीय और शर्मनाक हैं। पन्द्रह सालों से सत्ता से बाहर कांग्रेस ने कमलनाथ की अगुवाई में 114 सीटें हासिल करके सरकार बनाई थी। कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद की शपथ 17 दिसंबर को ली थी। भाजपा को 109 सीटें मिलीं थीं। विधानसभा की कुल 230 सीटों के मान से बहुमत के लिए 116 का आंकड़ा दोनों ही दल नहीं छू सके थे। कांग्रेस ने बीएसपी के दो, सपा के एक और चार निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाने में सफलता पायी थी।
तार-तार कांग्रेस की लाज
लोकसभा चुनाव 2019 के चुनाव नतीजों ने विधानसभा चुनाव में मिली छह महीने पुरानी मध्य प्रदेश कांग्रेस की जीत को तार-तार कर दिया है। दरअसल कांग्रेस विधानसभा में मिली 114 सीटों की जीत में से 95 सीटों की जीत को इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बचा नहीं पायी। महज 19 विधायक ही अपनी-अपनी सीटें बचा पाए।
शर्मनाक हार का आलम यह रहा है कि कमलनाथ सरकार के 22 मंत्री अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव हार गये। विधानसभा का चुनाव जीत कर मंत्री बनने वाले कई मंत्रियों की हार का फ़ासला (विधानसभा चुनाव में मिले वोटों की तुलना में) दोगुने से लेकर 11 गुना तक बढ़ गया है।
राहुल बिग्रेड का चेहरा 11 गुना अंतर से पिछड़ा
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी बिग्रेड के चेहरों में मध्य प्रदेश से शुमार किए जाने वाले जीतू पटवारी इंदौर ज़िले की अपनी राऊ सीट 67 हज़ार वोट से हार गये। वह कमलनाथ सरकार में मंत्री हैं। उन्होंने यह सीट विधानसभा चुनाव में 5.700 वोट से जीती थी। यह वही पटवारी हैं जो राहुल गाँधी को मोटर साईकिल पर बिठा कर पुलिस को चकमा देकर मंदसौर लेकर पहुंचे थे। मंदसौर में शिवराज सरकार में हुए किसान गोली कांड के बाद राजनीति तेज़ होने के दरमियान इस तरह (राहुल के मोटर साईकिल से मंदसौर पहुंचने) का दृश्य पैदा हुआ था।कांग्रेस के 28.56 लाख वोट घटे
मोदी की सुनामी ने देश भर में कांग्रेस को तिनके की तरह उड़ा दिया। कांग्रेस 17 राज्यों में खाता भी नहीं खोल सकी। मध्य प्रदेश में कुल 29 में महज एक सीट छिंदवाड़ा जीतकर कांग्रेस ने अपनी इज्जत बचाई है। दिग्विजय सिंह भोपाल में तो ज्योतिरादित्य सिंधिया गुना-शिवपुरी की अपनी अविजित सीट सवा लाख वोटों से हार गये। कांग्रेस को जनता ने इस बुरी तरह नकारा कि छह महीने पहले विधानसभा में मिले कुल 1.56 करोड़ से कुछ ज्यादा वोट लोकसभा चुनाव में घटकर 1.27 करोड़ से कुछ ज्यादा रहे।
कर्ज़माफ़ी का दाँव खेलकर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की कुल 63 ग्रामीण सीटों को जीता था। लोकसभा में इन सीटों में महज 13 सीटें ही कांग्रेस जीत पायी।
उधर बीजेपी को विधानसभा चुनाव की तुलना में 24 फ़ीसदी वोट ज़्यादा मिले। यही वजह है कि बीजेपी के 26 उम्मीदवार एक लाख से साढ़े पांच लाख वोटों के विशाल अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे। तीन उम्मीदवारों ने पाँच लाख के ऊपर, चार ने चार लाख से ज्यादा, नौ ने तीन लाख के ऊपर, पाँच ने दो लाख से ज्यादा और पाँच ने एक लाख से ज्यादा के अंतर से कांग्रेस के अपने प्रतिद्वंद्वियों को शिकस्त दी। भाजपा के दो उम्मीदवारों की जीत का आंकड़ा भर 90 हजार के ऊपर रहा है।
नंबर गेम में कमलनाथ सरकार मजबूत
मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत के लिए कुल 116 नंबरों की आवश्यकता है। फ़िलहाल कांग्रेस के पास 114 सीटें हैं। बसपा के दो और सपा के एक विधायक के अलावा चार निर्दलीय विधायकों में एक (कांग्रेस से बग़ावत कर चुनाव लड़ा था) को कमलनाथ ने मंत्री बना रखा है। जो तीन निर्दलीय विधायक हैं, वे भी कांग्रेस के ही बाग़ी हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ये सभी कमलनाथ को ब्लैकमेल करने में गुरेज़ नहीं कर रहे हैं। तीन में से दो निर्दलीय विधायकों को कमलनाथ मंत्री बनाने की तैयारी में बताये जा रहे हैं। यदि दो निर्दलीय विधायक मंत्री बना दिये जाते हैं तो कमलनाथ सरकार के पास बहुमत के 116 के आंकड़े के मुकाबले 117 का ‘सुस्पष्ट अंतर’ सदन में हो जायेगा।इधर कुंआ उधर खाई
नंबर गेम में कांग्रेस भले ही आगे नज़र रही है, लेकिन मंत्री पद के लिए ‘एक-अनार सौ बीमार’ वाले हालातों से निबटना नाथ के लिए बेहद गंभीर चुनौती है।
विधानसभा सदस्यों की संख्या 230 के मान से अधिकतम 15 प्रतिशत मंत्री बनाये जाने की तय सीमा के मद्देनज़र कैबिनेट में कुल 35 सदस्य लिये जा सकते हैं। कमलनाथ समेत मंत्रिमंडल सदस्यों की संख्या अभी 29 है। इस दृष्टि से छह पद खाली हैं। सरकार का सहयोग कर रहे बीएसपी और सपा के अलावा तीनों निर्दलीय विधायक मंत्री बनना चाहते हैं। इनके अलावा कांग्रेस में आधा दर्जन से ज़्यादा वरिष्ठ विधायक ऐसे हैं, जो कैबिनेट में ना लिये जाने से पहले से ही बुरी तरह ख़फ़ा हैं। क़रारी हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए मौजूदा मंत्रियों में किसी की छुट्टी करते हैं तो हटाए जाने वालों का रूठना तय है।
अपनों से धोखा
मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र जून में है। बजट पास कराने के लिए हर दिन सदन में कांग्रेस को नंबर गेम से जूझना पड़ेगा। कांग्रेस व्हिप जारी करेगी। सदन में कौन कब धोखा दे जाये यह चिंता कांग्रेस के रणनीतिकारों से लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ को सता रही है।
कांग्रेस के जानकार तर्क दे रहे हैं, ‘15 सालों के बाद सत्ता का वनवास ख़त्म हुआ है। यदि अपने धोखा देंगे तो ज़्यादा नुक़सान उनका भी होगा।’ तर्क अपनी जगह है, लेकिन मध्य प्रदेश में विधानसभा और चुनाव में अपनों से मिले धोखे के कई हालिया उदाहरण हैं।
शिवराज सरकार के ख़िलाफ़ चौदहवीं (2008 से 2013) विधानसभा के अंतिम सत्र के पहले वाले सेशन में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आयी थी। अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा आरंभ होने के ठीक पहले सदन में कांग्रेस के उपनेता चौधरी राकेश सिंह ने पाला बदलकर बीजेपी का दामन थाम लिया था। कांग्रेस का अविश्वास प्रस्ताव धरा रह गया था। उसकी थू-थू भी जम कर हुई थी। हालांकि भाजपा में फ़जीहत होने की दलील के साथ लोकसभा चुनाव 2019 में राकेश सिंह पुन: कांग्रेस में लौट आये। राकेश सिंह की तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में भिंड लोकसभा सीट से टिकट मिल जाने के बाद आखिर क्षणों में डॉक्टर भागीरथ प्रसाद कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गये थे। कांग्रेस से धोखे पर भाजपा ने उन्हें टिकट से नवाजा था और वह भिंड सीट पर भाजपा के झंडे तले लोकसभा पहुंचे थे।