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नगालैंड फ़ायरिंग आत्मरक्षा नहीं, हत्या के समान है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा

नगालैंड फ़ायरिंग आत्मरक्षा नहीं, हत्या के समान है, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ने कहा

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन लोकुर ने क्यों कहा कि नगालैंड की वारदात हत्या के समान है? क्या है मामला?

सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मदन लोकुर ने नगालैंड फ़ायरिंग को 'हत्या के समान' माना है और कहा है कि यह 'आत्मरक्षा के लिए की गई कार्रवाई' बिल्कुल नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि अफ़्सपा का मतलब यह कतई नहीं है कि सुरक्षा बल किसी की हत्या कर दे।  

क्या हुआ था?

बता दें कि शनिवार को नगालैंड के मोन ज़िले में केंद्रीय सुरक्षा बलों ने एक गाड़ी में लौट रहे लोगों पर गोलियाँ चला दीं। इसमें छह लोग मारे गए। इसके बाद हथियारों से लैस स्थानीय लोगों ने जवानों को घेर लिया तो सुरक्षा बलों ने फिर गोलीबारी कर दी। कुल मिला कर एक सैनिक समेत 14 लोग मारे गए। 

केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा है कि गलत पहचान से यह गोलीबारी हुई। 

क्या कहा पूर्व जज ने?

जस्टिस मदन लोकुर ने 'एनडीटीवी' से बात करते हुए कहा कि आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल प्रोविज़न एक्ट (अफ़्सपा) का मतलब यह कतई नहीं है कि सुरक्षा बलों के जवान किसी की हत्या कर दें।  

उन्होंने यह भी कहा कि अफ़्सपा को ग़लत ढंग से लागू किया गया है, जिसके तहत सुरक्षा बलों को यह हक़ दे दिया गया है कि वे कहीं भी कार्रवाई कर सकते हैं और किसी को भी कभी भी बग़ैर वारंट के गिरफ़्तार कर सकते हैं। 

नगालैंड की वारदात पर उन्होंने कहा,

सुरक्षा बलों ने जो कुछ भी किया, वह ज़्यादा सक्रियता दिखाते हुए किया, लिहाज़ा, हत्या की मंशा साफ है।


जस्टिस मदन लोकुर, रिटायर्ड जज, सुप्रीम कोर्ट

'पुलिस जाँच क्यों?'

जस्टिस लोकुर ने पुलिस जाँच से भी असहमति जताई। उन्होंने कहा, "मशहूर लोगों द्वारा इस मामले की स्वतंत्र व निष्पक्ष जाँच की जानी चाहिए।"

उन्होंने कहा,

इसकी काफी गुंजाइश है कि सुरक्षा बल खुद जाँच करें तो इस मामले को किसी तरह रफ़ादफ़ा कर दें।


जस्टिस मदन लोकुर, रिटायर्ड जज, सुप्रीम कोर्ट

उन्होंने कहा कि वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि नगालैंड की पुलिस इस मामले की जाँच कर ही क्यों रही है। 

मामला छिपाने की कोशिश?

बता दें कि नगालैंड पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट में कहा गया है कि गाँव के लोगों ने 21 वें पैरा सिक्योरिटी फ़ोर्स के कमान्डो को शवों को तिरपाल में लपेट कर ले जाते हुए देखा था और उसका विरोध किया था। 

इससे मामले को छिपाने और रफादफा करने की कोशिश माना जा रहा है, हालांकि सेना का कहना है कि उसने इस मामले को छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। 

संसद में सरकार का बयान

लेकिन गृह मंत्री ने लोकसभा में इस पर सरकार का पक्ष रखते हुए कहा, "4 दिसंबर की शाम को 21 पैरा कमांडो का एक दस्ता संदिग्ध क्षेत्र में तैनात था। इस दौरान एक वाहन उस जगह पहुंचा, इस वाहन को रुकने का इशारा किया गया। लेकिन यह वाहन रुकने के बजाय तेज़ी से निकल गया। इस आशंका पर कि वाहन में संदिग्ध विद्रोही जा रहे थे, वाहन पर गोली चलाई गई जिससे वाहन में सवार 8 में से 6 लोगों की मौत हो गई, बाद में यह ग़लत पहचान का मामला पाया गया, जो 2 लोग घायल हुए थे, उन्हें सेना ने स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया।"

मणिपुर में अफ़्सपा था और सेना व पुलिस ने कुछ नागरिकों की ग़ैरक़ानूनी हत्या कर दी थी, जो सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में इस मामले की सीबीआई जाँच का आदेश दिया था। जस्टिस लोकुर उस बेंच के सदस्य थे। 

बता दें कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने शनिवार को नगालैंड में आम नागरिकों पर हुई फायरिंग का स्वत: संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस दिया है और छह हफ़्ते के अंदर इस वारदात पर विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है। 

आयोग ने केंद्रीय रक्षा सचिव, केंद्रीय गृह सचिव, नगालैंड के मुख्य सचिव और डीजीपी को नोटिस भेजा है। 

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