लव जिहाद: आंकड़े ही नहीं तो कैसे बनेगा क़ानून?
मध्य प्रदेश पहला राज्य बनने जा रहा है जो कि लव जिहाद को रोकने के लिए क़ानून ला रहा है। नये क़ानून में 5 साल के कठोर कारावास की सजा का प्रावधान किए जाने की खबर है, साथ ही पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तार भी कर सकती है। लेकिन क़ानून के जानकार मान रहे हैं कि राज्यों के अलग-अलग क़ानून बनाने से बेहतर होगा कि केन्द्र की मोदी सरकार संसद से एक ऐसा क़ानून बनाये जो देशभर में लव जिहाद के मामलों के लिए कारगर हो।
क़ानून के जानकार यहां तक कहते हैं कि लव जिहाद को लेकर अलग से किसी क़ानून की ज़रूरत नहीं है, भारतीय दंड संहिता में इस तरह के मामलों के लिए पहले से ही प्रावधान हैं, जहां 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने लव जिहाद पर क़ानून बनाकर 5 से 7 साल तक के कारावास के प्रावधान की बात कही है।
लव जिहाद को लेकर सबसे पहले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने क़ानून बनाने की बात कही थी, अब बीजेपी शासित राज्य हरियाणा, असम, कर्नाटक भी इसी श्रेणी में शामिल हो गए हैं।
अलग क़ानून की ज़रूरत नहीं
सुप्रीम कोर्ट में जनहित के करीब 100 मामलों में पीआईएल दायर कर चुके वकील अश्विनी उपाध्याय कहते हैं, ‘जहां तक राज्यों का सवाल है तो वो एक कमजोर क़ानून ला रहे हैं। भारतीय दंड संहिता 493 में पहले से ही इस तरह के मामलों के लिए क़ानून बना हुआ है जिसमें 10 साल की सजा का प्रावधान है। धारा 493 कहती है कि हर पुरुष जो किसी स्त्री को, जो विधिपूर्वक उससे विवाहित न हो, धोखे से यह विश्वास कारित करेगा कि वह विधिपूर्वक उससे विवाहित है और इस विश्वास में उस स्त्री के साथ सहवास या मैथुन कारित करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास से दण्डित किया जाएगा जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही वह आर्थिक दण्ड के लिए भी उत्तरदायी होगा।’
केंद्र सरकार बनाए क़ानून
उपाध्याय कहते हैं कि आईपीसी की धारा 493 में एक उपधारा को जोड़ा जा सकता है जिससे लव जिहाद जैसे अपराध को रोका जा सकता है। हालांकि राज्यों की अपेक्षा अगर केंद्र सरकार आगे बढ़कर संसद के जरिये मजबूत क़ानून बनाती है तो ये जम्मू-कश्मीर से कन्याकुमारी तक लागू होगा और तब लव जिहाद जैसी घटनाओं पर रोक लगाई जा सकती है।
अश्विनी उपाध्याय कहते हैं कि लव जिहाद को लेकर राजनीतिक विचार अलग-अलग हैं, बीजेपी शासित कुछ राज्य इस पर क़ानून बनाने का प्रस्ताव सामने लाये हैं लेकिन कुछ राज्य इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसे देखते हुए केंद्र सरकार को ही क़ानून बनाना चाहिए जो कि देशभर में लागू हो।
उनका मानना है कि सबसे ज्यादा लव जिहाद के मामले केरल, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हो रहे हैं लेकिन किसी खास धर्म के साथ अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता के चलते ये राज्य लव जिहाद पर क़ानून नहीं बना रहे हैं।
उपाध्याय कहते हैं, ‘भारत ही एक ऐसा मुल्क है जहां बहुसंख्यक लव जिहाद जैसे क़ानून की मांग कर रहे हैं जबकि दुनिया के तमाम देशों में ये मांग अल्पसंख्यक करते हैं। राज्यों से उम्मीद है कि वो कम से कम ऐसा क़ानून बनायेंगे जिसमें 10 साल तक की सजा का प्रावधान हो।’
हालांकि जब अश्विनी उपाध्याय से ये प्रश्न पूछा गया कि क्या राज्यों के पास ऐसे कोई आंकड़े हैं जो ये बताते हैं कि अमुक राज्य में लव जिहाद के कितने मामले हुए हैं, तो इस पर उनका जवाब है कि ये बताना इसलिए मुमकिन नहीं होगा क्योंकि लव जिहाद के मामलों के लिए नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) जैसी बड़ी संस्था काम नहीं कर रही, इसलिए आंकड़ों की सही-सही जानकारी होना फिलहाल संभव नहीं है।
विशेष क़ानून की ज़रूरत
सुप्रीम कोर्ट में आपराधिक मामलों में पिछले 2 दशक से ज्यादा वक्त से वकालत करने वाले अरविंद शुक्ला कहते हैं कि जहां तक लव जिहाद का सवाल है कि कोई व्यक्ति अपनी जानकारी छुपा रहा हो यानी कि वो अपना धर्म ही छुपा रहा है, तो उस मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 419 लागू होगी।
शुक्ला के मुताबिक़, ‘धारा 419 कहती है कि जो भी कोई प्रतिरूपण द्वारा छल करेगा, तो उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से दण्डित किया जाएगा। इसलिए किसी दूसरे क़ानून की कोई ज़रूरत नहीं है।’
देखिए, इस विषय पर वीडियो-
इसके साथ ही अरविंद शुक्ला कहते हैं कि इसे समझना बहुत ज़रूरी होगा कि राज्यों ने क्यों अलग क़ानून की बात कही।
जहां शादी हिंदू विवाह अधिनियम, मुसलिम विवाह अधिनियम या विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत हुई है और शादी मान्य है, वहां कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन जहां शादी ही पुरुष या महिला द्वारा अपनी असली पहचान छुपाकर की गयी है, वहां इसके लिए अलग और विशेष क़ानून की ज़रूरत है।
कहीं से शुरुआत तो होनी ही थी, मध्य प्रदेश अगर पहला राज्य है जिसने इस तरह के विशेष क़ानून को लागू करने की बात कही है तो इसमें कुछ गलत नहीं है, इसको बेहतर शुरुआत कह सकते हैं। अगर कोई भी पुरुष या महिला अपनी असली पहचान छुपाकर शादी कर लेते हैं तो उन्हें इस बात का डर होना चाहिए कि वो इसके लिए जेल भी जा सकते हैं, जबकि अभी तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं बना है।
इसी साल फरवरी में गृह मंत्रालय ने संसद में अपने लिखित जवाब में कहा था कि लव जिहाद जैसे शब्द की कोई लिखित मान्यता नहीं है, न ही किसी क़ानून या संविधान में इसका कोई जिक्र किया गया है।
क्या है लव जिहाद
लव जिहाद या रोमियो जिहाद कथित रूप से मुसलिम पुरुषों द्वारा गैर-मुसलिम समुदायों से जुड़ी महिलाओं को इसलाम में धर्म परिवर्तन कराने के लिए टारगेट करके प्रेम का ढोंग रचाना है। लव जिहाद की अवधारणा 2009 में पहली बार केरल और उसके बाद कर्नाटक में सामने आई और राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी। लव जिहाद शब्द भारत के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है किन्तु कथित रूप से इसी तरह की गतिविधियाँ यूके आदि देशों में भी हुई हैं।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
केरल हाई कोर्ट के द्वारा दिए एक फ़ैसले में लव जिहाद को सत्य पाया है। नवंबर, 2009 में पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नोज ने कहा था कि कोई भी ऐसा संगठन नहीं है जिसके सदस्य केरल में लड़कियों को मुसलिम बनाने के इरादे से प्यार करते थे। दिसंबर 2009 में, न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने पुन्नोज की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और निष्कर्ष निकाला कि जबरदस्ती धर्मांतरण के संकेत हैं।
अदालत ने लव जिहाद के मामलों में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा था कि पिछले चार वर्षों में इस तरह के 3,000-4,000 मामले सामने आये थे।
साजिश के सबूत नहीं
कर्नाटक सरकार ने 2010 में कहा था कि हालांकि कई महिलाओं ने इसलाम में धर्म परिवर्तन किया है लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें मनाने का कोई संगठित प्रयास नहीं किया गया। उत्तर प्रदेश पुलिस ने सितंबर, 2014 में पिछले तीन महीनों में लव जिहाद के छह मामलों में से पांच में धर्म परिवर्तन के प्रयास का कोई सबूत नहीं पाया। पुलिस ने कहा कि बेईमान पुरुषों द्वारा छल के छिटपुट मामले एक व्यापक साजिश के सबूत नहीं हैं।
2017 में, केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में लव जिहाद के आधार पर एक मुसलिम पुरुष से हिंदू महिला के विवाह को अमान्य घोषित किया। तब मुसलिम पति द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी, जहां अदालत ने लव जिहाद के पैटर्न की स्थापना के लिए सभी समान मामलों की जांच करने के संबंध में एनआईए को निर्देश दिए थे।