कांग्रेस का चुनावी प्रदर्शन पार्टी के पुनरुत्थान का संकेत है?
2014 में 44 सीटें। 2019 में 52 सीटें। और अब 2024 में 99 सीटें। क्या कांग्रेस तेजी से अपनी खोयी जमीन पा रही है? इस लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के पास जिस तरह की मशीनरी, प्रशासन, धन बल, केंद्रीय एजेंसियाँ रहीं व जिस तरह से चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए गए, ऐसे माहौल में कांग्रेस के प्रदर्शन के क्या मायने हैं?
दरअसल, एक दशक के मुश्किल हालात से गुजरने के बाद फिर से कांग्रेस के नेताओं के चेहरे पर चमक है। इस बार की पार्टी की 99 सीटें पिछले दो लोकसभा चुनावों में 44 और 53 सीटों के जोड़ से भी अधिक हैं। हालाँकि, यह अभी भी इस पार्टी की तीसरी सबसे कम लोकसभा सीटें हैं, लेकिन मंगलवार के नतीजे राजनीतिक मनोबल बढ़ाने वाले हैं।
यह किस तरह का मनोबल बढ़ाने वाला है, पिछले तीन चुनाव के आँकड़ों से भी समझा जा सकता है। कांग्रेस को 2014 में 44 सीटें और 19.3% वोट मिले थे। इसके मुक़ाबले बीजेपी ने 282 सीटें जीती थीं और वह 31 फ़ीसदी वोट हासिल की थी। हालाँकि कांग्रेस की 2019 में स्थिति क़रीब-क़रीब वैसी ही रही और उसने 52 सीटें हासिल की थीं। पार्टी के वोट शेयर 19.49% रहे थे। लेकिन अब 2024 में पार्टी को 99 सीटें मिली हैं और वोट प्रतिशत भी बढ़कर 21.19% हो गया है।
2024 के चुनाव में कांग्रेस की सिर्फ़ सीटें ही नहीं बढ़ी हैं, बल्कि उसकी स्ट्राइक रेट भी काफी ज्यादा बढ़ गई है। स्ट्राइक रेट से मतलब है जीत के प्रतिशत का। कांग्रेस ने 2019 में कुल लड़ी गई सीटों में से 8.3% और 2014 में 9.4% जीती थी, लेकिन इस बार कुल लड़ी गई सीटों में से 30% जीती है। भाजपा के खिलाफ सीधे मुकाबलों में 29% की बेहतर स्ट्राइक रेट है, जबकि 2019 में यह 8% और 2014 में 12.2% थी।
इस बार कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन ने कड़ी टक्कर दी और यह सुनिश्चित किया कि भाजपा को अपने दम पर बहुमत न मिले। लेकिन कांग्रेस के लिए चुनावी प्रदर्शन का सबसे अहम पहलू यह है कि उसने उत्तर भारत के कई प्रमुख राज्यों और महाराष्ट्र में अपनी कुछ जमीन वापस पा ली है। इसने दक्षिण भारत पर भी अपनी पकड़ बनाए रखी है।
रायबरेली में राहुल गांधी की 3.9 लाख से अधिक वोटों से बड़ी जीत ने उत्तर प्रदेश में उनकी चुनावी साख को फिर से स्थापित किया है।
राहुल गांधी ने अपनी पारिवारिक सीट तो बरकरार रखी, लेकिन सबसे बड़ी बात यह रही कि परिवार के वफादार किशोरी लाल शर्मा ने अमेठी में स्मृति ईरानी का बदला ले लिया।
कांग्रेस ने यूपी में छह सीटें जीतीं, जो 2019 में एक थी। यादव-मुस्लिम एकीकरण के अलावा, मायावती की बीएसपी के दलित समर्थकों का एक वर्ग और कुछ अन्य लोग इस बार राज्य में एसपी-कांग्रेस की ओर मुड़ गए हैं।
कांग्रेस बिहार में तीन सीटें जीतने में सफल रही, जो पिछली बार से दो अधिक है। इसने पंजाब में सात सीटों के साथ अपने 2019 के बेहतर प्रदर्शन को बरकरार रखा। पार्टी ने राजस्थान में आठ सीटें जीतकर विधानसभा चुनाव के बाद शानदार वापसी की और हरियाणा में पांच सीटों के साथ अपनी स्थिति मजबूत की। इसने पिछले दो चुनावों में दोनों राज्यों में 'शून्य' रहने का सिलसिला खत्म किया।
दक्षिण में कांग्रेस ने कर्नाटक और तेलंगाना में 2019 की तुलना में अपने प्रदर्शन में सुधार किया। तमिलनाडु और केरल में अपनी स्थिति बरकरार रखी है। कांग्रेस महाराष्ट्र में 13 सीटों के साथ पहले स्थान पर रही। यह राज्य में पार्टी के पुनरुत्थान को दिखाता है।
तो ये आँकड़े क्या कहानी कहते हैं? क्या यह सब बीजेपी के कमजोर होने का नतीजा है या फिर कांग्रेस में नयी ऊर्जा आने का असर?
2019 और 2024 के चुनावों के बीच राहुल गांधी ने 10 हज़ार किलोमीटर से ज़्यादा की यात्रा की। इसमें से बड़ा हिस्सा पैदल यात्राएँ थीं। उन्होंने लोगों से संपर्क किया और जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन को फिर से खड़ा करने की कोशिश की। उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा ने अमेठी में लड़ने के बजाय पूरे भारत और ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश में प्रचार करने का विकल्प चुना। खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस संगठन एकजुट होकर उभरा। इसने सोशल मीडिया का अच्छे प्रभाव के लिए इस्तेमाल किया। पार्टी ने सामाजिक न्याय को केंद्रीय मुद्दा बनाया।
यह तो तय है कि लोकसभा में 99 सीटों के साथ कांग्रेस अभी भी भाजपा से बहुत पीछे है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बदलाव बहुत बड़ा है। तो क्या यह बदलाव आगे भी जारी रहेगा और पार्टी नये सिरे से फिर से खड़ा होगी?