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अंतिम दौर में बंगाली अस्मिता ही है मुख्य चुनावी मुद्दा

अंतिम दौर में बंगाली अस्मिता ही है मुख्य चुनावी मुद्दा

विद्यासागर की मूर्ति को खंडित करने की बात को ममता ने बंगाली अस्मिता से जोड़ दिया है। अब ममता अंतिम नौ सीटों को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

सातवें दौर के चुनाव में पश्चिम बंगाल में ईश्वरचंद्र विद्यासागर मुख्य विषय बन गए हैं। बंगाल के नागरिकों के जीवन में उनका बहुत ही बुलंद मुक़ाम है। बीते मंगलवार को उत्तर कोलकाता संसदीय क्षेत्र में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के रोड शो में बवाल हो गया था। रोड शो में सबसे पीछे चल रहे कुछ नौजवानों ने बिधान सरणी स्थित विद्यासागर कॉलेज के कैम्पस के अंदर से काले झंडे और प्लेकार्ड दिखा रहे लोगों पर हमला बोल दिया था। आरोप है कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने कॉलेज के अंदर क़ब्ज़ा कर रखा था और वे अमित शाह के विरोध में उन्हें काले झंडे दिखा रहे थे। उन लोगों को सबक सिखाने के लिए हमलावरों ने कॉलेज के अन्दर स्थापित ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ दिया। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति बंगाल में हर वह व्यक्ति पहचानता है जिसने शुरुआती शिक्षा इसी राज्य में पाई है।

बांग्ला अक्षर ज्ञान की पहली किताब का नाम है, वर्ण परिचय (बोर्नो पोरिचय) यह किताब ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने क़रीब एक सौ पैंसठ वर्ष पहले तैयार की थी। उसके बाद से बंगाल की पीढियाँ दर पीढियाँ इसी किताब से अक्षर ज्ञान की शुरुआत करती रही  हैं। विद्यासागर बंगाल के नवजागरण आन्दोलन के बहुत बड़े हस्ताक्षर हैं। भारत में आध्यात्मिकता को आधुनिक सोच देने वाले स्वामी रामकृष्ण परमहंस से उनके बहुत ही अच्छे सम्बन्ध थे। राजा राम मोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर को बंगाल के नवजागरण आन्दोलन का पुरोधा माना जाता है।

बंगाल के नवजागरण आन्दोलन के साथ ही देश  आधुनिक वैज्ञानिक सोच की दुनिया में प्रवेश करता है। उन्नीसवीं सदी के उस उत्थान युग में जिन मनीषियों का नाम लिया जाता है वे भारतीय इतिहास और मेधा की धरोहर हैं। बंगाल के नवजागरण के दौर में महिलाओं के प्रति समाज के प्रचलित रुख को हर मोड़ पर चुनौती दी गयी। विवाह, दहेज, जातिप्रथा और धर्म की रूढ़िगत मान्यताओं को नकारा गया। ऊँची जाति के हिन्दुओं में बौद्धिकता और नास्तिकता के प्रति सम्मान भी इसी दौर में शुरू हुआ। 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के बाद बंगाल के  साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया। राम मोहन राय और ईश्वरचंद्र विद्यासागर के अलावा उस दौर में बंकिम चन्द्र चटर्जी ने बहुत कुछ लिखा-पढ़ा।

बंगला साहित्य में बंकिम बाबू की रचनाओं के साथ ही राष्ट्रवाद और आज़ादी के संकेत मिलने लगते हैं। सामाजिक विषयों पर नवजागरण के बाद के लेखकों और चिंतकों ने ज़्यादा ध्यान दिया। इस वर्ग में शरद चन्द्र चटर्जी का नाम प्रमुख है। रबींद्रनाथ टैगोर के परिवार ने भी इस आन्दोलन में बड़ी भूमिका निभाई।

आधुनिक बंगाल के निर्माण में नवजागरण का बहुत ही निर्णायक योगदान है और उसके पुरोधा के रूप में ईश्वरचंद्र विद्यासागर बंगाली अस्मिता का हिस्सा हैं। उन्होंने 1850 के आसपास लगभग उसी समय बंगाल में लड़कियों के लिए दर्जनों स्कूल शुरू करवा दिए थे, जब पश्चिमी भारत में ज्योतिराव फुले ने पुणे में दलित लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला था।

बंगाली समाज में विधवा विवाह, सती प्रथा और बहुविवाह जैसी संस्थाओं के ख़िलाफ़ विद्यासागर ने राजा राम मोहन राय की तर्ज पर हमला बोला और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को अपने साथ कर लिया।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर के बारे में इतना सब बताने का उद्देश्य यह है कि यह बताया जा सके कि 14 मई को उत्तर कोलकाता में जो हुआ वह कोई मामूली तोड़फोड़ की घटना नहीं थी। बंगाली अस्मिता और गौरव के एक अति महत्वपूर्ण पहचान के रूप में स्थापित हो चुके महापुरुष की मूर्ति को तोड़ने वालों को बंगाल के लोग कभी भी माफ़ करने वाले नहीं हैं। अमित शाह के रोड शो के दौरान हुई तोड़फोड़ को इसी सन्दर्भ में देखे जाने की ज़रूरत है।

ममता ने बनाया चुनावी मुद्दा

विद्यासागर की मूर्ति के विध्वंस के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वहाँ पहुँच गयी थीं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सारी कारस्तानी बीजेपी के समर्थकों की है। ममता ने इस घटना के साथ ही बीजेपी को एक बाहरी पार्टी और बंगाली गौरव की शत्रु के रूप में स्थापित करने की अपनी योजना को धार देना भी शुरू कर दिया। ममता ने दावा किया कि बीजेपी एक ऐसा संगठन है जो बंगाल के  महापुरुषों का सम्मान कर ही नहीं सकता। इसी के साथ बंगाल में चुनाव के अंतिम दौर की नौ सीटों - जयनगर, दमदम, बारासात, बशीरहाट, डायमंड हार्बर, मथुरापुर, कोलकाता दक्षिण, कोलकाता उत्तर और जाधवपुर में  ममता बनर्जी ने बीजेपी विरोधी लहर बनाने की कोशिश शुरू कर दी है। मूर्ति तोड़े जाने के अगले दिन उन्होंने कोलकाता में पैदल चल कर नागरिकों को साथ लेने की कोशिश की। बहुत लोग साथ आये भी। शहर और पूरे राज्य में बीजेपी के कथित बाहरी ‘गुंडों’ के ख़िलाफ़ अभियान को और मज़बूत करने की कोशिश की गयी।

अभी मूर्ति तोड़ने के मामले की कोई जाँच नहीं हुई है, लेकिन ममता बनर्जी ने बीजेपी को विद्यासागर की मूर्ति के विनाश के लिए गुनहगार साबित करने का प्रचार शुरू कर दिया है। उन्होंने हर जगह ईश्वरचंद्र विद्यासागर की तसवीरें लगा दीं हैं।

फ़ेसबुक, वॉट्सएप और दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर ममता की पार्टी के कार्यकर्ता और नेता विद्यासागर की तसवीरें लगा रहे हैं और इस तरह से आचरण कर रहे हैं जैसे केवल वे ही उनके असली वारिस हैं।

बैकफ़ुट पर आई बीजेपी

बंगाल में बीजेपी का उफान बहुत ही तेज़ी पर है। कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों को धकियाकर बीजेपी ने वहाँ अपने आपको मुख्य विपक्षी पार्टी के रूप में स्थापित कर लिया है और ममता बनर्जी को सत्ता से बेदख़ल करने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। लेकिन विद्यासागर की मूर्ति पर हुए हमले ने बीजेपी को बैकफ़ुट पर ला दिया है। जब यह घटना हुई, उस वक़्त ममता टालीगंज में एक चुनावी सभा में भाषण कर  रही थीं। उन्होंने तुरंत अपने श्रोताओं को सूचित किया और बताया कि, ‘नरेंद्र मोदी गुंडा है’। उन्होंने अमित शाह को भी इसी अपशब्द से संबोधित किया और कहा कि वे लोग उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और झारखण्ड से गुंडे लाए हैं और उन्हें बंगाल की विरासत को नष्ट करने के काम में लगा दिया गया है। उस सभा में ममता का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वहाँ से वह सीधे विद्यासागर कॉलेज गईं और वहाँ हुई तोड़फोड़ का जायज़ा लिया। 

इस घटना के बाद बीजेपी की राज्य इकाई के नेता परेशान थे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे डैमेज कंट्रोल किया जाए लेकिन दिल्ली वाले नेताओं को यह बात अगले दिन तब समझ में आई जब उन्होंने देखा कि बंगाल के अख़बारों ने उस ख़बर को किस तरह से छापा था।

बंगाल के अख़बारों में अमित शाह की रैली और रोड शो तो कोने में चला  गया था। मुख्य ख़बर विद्यासागर की मूर्ति के हवाले से थी। आनन-फानन में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ़्रेंस बुलाई और आरोप  लगाया कि उनके ऊपर हमला हुआ था और अगर सीआरपीएफ़ के लोगों ने उनको बचाया न होता तो वहाँ से बच कर आना मुश्किल था। शाह ने कुछ तसवीरें दिखाईं और साबित करने की कोशिश की कि विद्यासागर कॉलेज में तोड़फोड़ करने वाले बीजेपी के कार्यकर्ता नहीं थे। दिल्ली की मीडिया में उनकी बात को गंभीरता से लिया गया और शाम को टीवी चैनलों की बहस में बंगाल में हिंसा और उसमें ममता बनर्जी की भूमिका मुख्य विषय के रूप में चली।

लेकिन बंगाल में तसवीर दूसरी थी। वहाँ के मीडिया में ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को तोड़ने को पहले पृष्ठ पर बैनर हेडलाइन के साथ छापा गया।  समाज के हर वर्ग की ओर से मूर्ति तोड़ने की निंदा की गयी और ‘बंगाली राष्ट्रवाद’ को हवा देने के प्रोजेक्ट की कमान ममता बनर्जी ने स्वयं संभाल ली। ममता ने सारी चुनावी सभाएँ रद्द कर दीं और वह कोलकाता की सड़कों पर जन आक्रोश की अगली कतार में देखी गयीं। ममता ने बंगाल की जनता के दिमाग में यह बात भरने की पूरी कोशिश की कि मूर्ति तोड़ने का काम न केवल बीजेपी के कार्यकर्ताओं और कथित गुंडों ने किया बल्कि उनको ऊपर से ऐसा करने के आदेश भी मिले हुए थे। नतीजा यह हुआ कि  बंगाल के राजनीतिक क्षितिज पर उन्होंने सफलतापूर्वक परस्पर विरोधी दो तसवीरें चस्पा कर दीं।एक तसवीर तो उन लोगों की थी जिसके नेता नरेंद्र मोदी थे और बकौल ममता बनर्जी, वे लोग बंगाल की छवि को धूमिल करने पर आमादा हैं और दूसरी तसवीर ऐसे लोगों की है जो बंगाल की विरासत को बचाने की कोशिश कर रहे हैं और उसकी अगुवाई ममता बनर्जी ख़ुद कर रही हैं।  उन्होने इस बात को भी रेखांकित कर दिया कि बीजेपी एक बाहरी पार्टी हैं जो बंगाल की संवेदनशीलता को कभी नहीं समझेगी।

अमित शाह कोलकाता में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का प्रचार करने गए थे लेकिन ममता ने उनको उस भीड़ के नेता के रूप में पेश करने की कोशिश शुरू कर दी जिसके मन में बंगाल की शिक्षण संस्थाओं और महापुरुषों के प्रति आदर नहीं है।

पहले भी ममता का मुख्य चुनावी नारा था कि भगवा पार्टी के लोग बंगाल के विरोधी हैं। इस बवाल ने उनको अपने आपको सही ठहराने का मौक़ा दे दिया है। ममता बनर्जी ने अपने लोकतंत्र विरोधी रवैये के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश को बहुत ही सुनियोजित ढंग से चलाया। उन्होंने कई बार अमित शाह को सभा करने की अनुमति नहीं दी, चुनाव प्रचार के उनके अधिकार में अड़चन डाली, पूरे देश में आमतौर पर लोग मानने लगे हैं कि पश्चिम बंगाल में हिंसा की वारदातों की सूत्रधार ममता ही हैं। बंगाल से आने वाली आवाजें भी इन बातों को पुष्टि करती थीं लेकिन ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति को कथित रूप से बीजेपी की रैली में आये लोगों द्वारा खंडित करने की बात को उन्होंने इतना तूल दे दिया है कि बाक़ी घटनाएँ अब परदे के पीछे चली गयी हैं और अब ममता बनर्जी बंगाल की अंतिम नौ सीटों को अपने पक्ष में करने की पूरी कोशिश कर रही हैं।

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