राष्ट्रवाद या बेरोज़गारी के मुद्दे पर हुई वोटिंग, नेता बेचैन क्यों?
पहले चरण के मतदान के बाद सियासी दलों की धड़कनें बढ़ गई हैं। मतदाताओं की खामोशी से सियासी दल और चुनाव में किस्मत आजमा रहे उम्मीदवार पहले ही परेशान थे, अब मतदान के बाद अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो रहा है कि सत्ता की चाबी किसके हाथ लगेगी। ऐसे में सभी दल पहले चरण में बढ़त के अपने-अपने दावे करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। जहाँ बीजेपी के नेता यह दावा कर रहे हैं कि पहले चरण में जनता ने राष्ट्र की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर वोट दिया है वहीं कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों का दावा है कि जनता ने बेरोज़गारी और किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार की नाकामियों के ख़िलाफ़ वोट दिया है।
20 राज्यों की 91 लोकसभा सीटों पर 1279 उम्मीदवारों का भाग्य इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में बंद हो गया है। चुनाव आयोग के मुताबिक़ पहले चरण में औसतन 66% मतदान हुआ है। हालाँकि अभी अंतिम आंकड़े आना बाक़ी है। 2014 के चुनाव से अगर तुलना करें तो इन 91 सीटों पर 74% मतदान हुआ था। यानी पहले चरण में पिछले चुनाव के मुक़ाबले कम मत मतदान हुआ है। बंगाल और त्रिपुरा में सबसे ज़्यादा 81% वोटिंग हुई है, जबकि उत्तर प्रदेश में 63.69, उत्तराखंड में 57.85 और बिहार में सिर्फ़ 50% मतदान हुआ है। वहीं तेलंगाना में 60% और उड़ीसा में 68% मतदान हुआ है, जबकि 2014 के चुनाव में तेलंगाना में 71.17% और उड़ीसा में 74.6% मतदान हुआ था।
91 में से 32 सीटें थी बीजेपी के पास
पहले चरण में मतदान वाली 91 लोकसभा सीटों में 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा 32 सीटें बीजेपी ने जीती थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर मतदान हुआ है और ये सभी सीटें बीजेपी के पास थी। हालाँकि इनमें से एक कैराना सीट पर पिछले साल हुए उप-चुनाव में सपा-बसपा के समर्थन से रालोद ने जीत दर्ज की थी। इसी उप-चुनाव में 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की नींव पड़ी थी।
पहले चरण में 8 सीटों पर बीजेपी और इस गठबंधन के बीच सीधी टक्कर मानी जा रही है। हालाँकि सहारनपुर सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद, गाज़ियाबाद में कांग्रेस की डौली शर्मा और नोएडा में कांग्रेस के ही अरविंद सिंह ने मुक़ाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है।
बिज़नौर में कांग्रेस के टिकट पर उतरे बीएसपी के पूर्व कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी मुक़ाबले को त्रिकोणीय बनाने में नाकाम रहे हैं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में सबसे ज़्यादा मतदान सहारनपुर में 70.68 % हुआ तो सबसे कम गाज़ियाबाद में 57.6% हुआ। सहारनपुर में जहाँ 2014 के मुक़ाबले मतदान का प्रतिशत कम रहा तो गाज़ियाबाद में यह हल्का-सा ज़्यादा रहा।
उत्तर प्रदेश के अलावा बीजेपी के पास उत्तराखंड की सभी 5 सीटें, महाराष्ट्र की 7 में से 5, असम की 5 में से 4, बिहार की 4 में से 3 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। लेकिन इस बार बिहार में इन चारों में से महज एक सीट पर बीजेपी चुनाव मैदान में है। बाक़ी 3 सीटों पर उसके सहयोगी दल चुनाव लड़ रहे हैं। दो सीटों पर लोक जनशक्ति पार्टी है तो वहीं एक सीट पर जनता दल यूनाइटेड चुनाव मैदान में हैं। बिहार में कम मतदान होने की वजह से यहाँ बीजेपी और जनता दल यूनाइटेड को नुक़सान होने की आशंका जताई जा रही है। जनता दल यूनाइटेड के एक नेता ने 'सत्य हिंदी' के साथ फ़ोन पर हुई बातचीत में एनडीए को इन चारों सीटों पर नुक़सान होने का अंदेशा जताया है। उनका कहना था कि जमुई में पासवान के चिराग़ की रोशनी लालू की लालटेन के सामने हल्की पड़ती दिख रही है। वहीं बीजेपी का जादू भी नहीं चल रहा। लेकिन जनता दल यूनाइटेड कड़ी टक्कर में अपनी सीट बचा सकती है।
उत्तराखंड में चुनौती
उत्तराखंड में बीजेपी के सामने पाँचों सीटों पर अपना कब्ज़ा बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है। हालाँकि कांग्रेस ने बीजेपी को टक्कर देने की पूरी कोशिश की है। कांग्रेस ने बीजेपी के कद्दावर नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मेजर बीसी खंडूरी के बेटे मनीष खंडूरी को चुनाव मैदान में उतारकर बीजेपी के वोट बैंक में सेंंध लगाने की कोशिश की है। उत्तराखंड से लौटे राजनीतिक पर्यवेक्षकों की मानें तो इस बार बीजेपी पाँचों सीट पर कब्ज़ा बरकरार नहीं रख पाएगी। वो एक या दो सीटें खो सकती है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के मुताबिक़ उत्तराखंड में बीजेपी की सरकार बनने के बाद मोदी सरकार और राज्य सरकार दोनों के ख़िलाफ़ सत्ता विरोधी लहर के चलते बीजेपी को नुक़सान हो सकता है।
राहुल के सामने चुनौती क्या
पहले चरण में कांग्रेस की साख भी दाँव पर है। इन 91 सीटों में अभी कांग्रेस के पास 7 सीटें हैं। पहली बार राहुल गाँधी की अगुवाई में लोकसभा चुनाव में उतरी कांग्रेस के सामने ख़ुद को सत्ता की दहलीज पर खड़ा करने की बड़ी चुनौती है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने जो 7 सीटें जीती थीं उनमें से दो तेलंगाना, एक-एक अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मिज़ोरम और मणिपुर की सीटें शामिल हैं। कांग्रेस के सामने इन सभी सीटों पर अपना कब्ज़ा बरकरार रखते हुए बाक़ी 83 सीटों में से अच्छी ख़ासी सीटें जीतने की चुनौती है।
33 सीटों पर सीधी टक्कर एनडीए-यूपीए में
पहले चरण में जिन 91 सीटों पर मतदान हुआ है उनमें से 33 लोकसभा की ऐसी सीटें हैं जहाँ सीधा मुक़ाबला बीजेपी-कांग्रेस या एनडीए और यूपीए के बीच है। इनमें सबसे ज़्यादा 7 सीटें महाराष्ट्र की हैं, 5-5 असम और उत्तराखंड में हैंं। चार सीटें बिहार की हैं। वहीं 35 ऐसी सीटों पर भी वोट डाले गए हैं जहाँ तीन से चार मुख्य दलों के प्रत्याशी आमने-सामने हैं। इनमें से सबसे ज़्यादा 25 सीटें आंध्र प्रदेश की हैं। वहाँ तेलुगू देशम, वाईएसआर कांग्रेस, बीजेपी, और कांग्रेस के बीच मुक़ाबला है। इसी तरह उड़ीसा की 4 सीटों पर बीजेडी, कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुक़ाबला है।
वहीं पश्चिम बंगाल की दो सीटों पर तृणमूल कांग्रेस, युवा मोर्चा बीजेपी और कांग्रेस के बीच मुक़ाबला है। उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर बीजेपी, कांग्रेस और सपा-बसपा-रालोद गठबंधन के बीच मुक़ाबला है।
क्षेत्रीय दल बनेंगे किंग मेकर
पहले चरण के मतदान के बाद जहाँ कांग्रेस और बीजेपी दोनों की साँसें थमी हुई हैं वहीं ग़ैर-कांग्रेस और ग़ैर-बीजेपी दलों के नेताओं के चेहरे पर मुस्कान है। ये दल चुनाव के बाद एकजुट होकर तीसरा मोर्चा बनाकर कांग्रेस और बीजेपी से सत्ता के लिए सौदेबाज़ी करने की फ़िराक़ में हैं। तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कवायद में जुटी मायावती अखिलेश की समाजवादी पार्टी का साथ पाकर पहले चरण की 8 में से कम से कम 5 सीटों पर गठबंधन की जीत की उम्मीद पाले हुए हैं। वहीं पिछले चुनाव में क्षेत्रीय दलों में सबसे ज़्यादा 16 सीटें टीडीपी के पास हैं और 11 टीआरएस के पास हैं। 9 सीट वाईएसआर कांग्रेस के पास, 4 सीटें बीजेडी और 12 अन्य दलों के पास हैं। पहले चरण के मतदान को देखते हुए क्षेत्रीय दलों को अपनी सीटों पर कब्ज़ा बरकरार रखने की उम्मीद है। ऐसे में ये दल किंग मेकर की भूमिका में आने का सपना देख रहे हैं।