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दाग़दार नेताः भाजपा की वाशिंग मशीन में तो धुले लेकिन जनता ने ठुकरा दिया

दाग़दार नेताः भाजपा की वाशिंग मशीन में तो धुले लेकिन जनता ने ठुकरा दिया

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस, टीएमसी आदि छोड़कर भाजपा में गए दाग़दार नेताओं को मतदाताओं ने भी उनके लोकसभा क्षेत्रों में ठुकरा दिया। ये ऐसे नेता थे, जिनके खिलाफ किसी न किसी मामले में केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स, एनआईए जांच कर रही थीं। ऐसे लोगों के लिए ही शायद यह मुहावरा गढ़ा गया था- न खुदा ही मिला न विसाले सनम। जानिए ऐसे चेहरों कोः

लोकसभा चुनाव से पहले देश में माहौल था कि जैसे कांग्रेस और टीएमसी ही सबसे भ्रष्ट पार्टी हैं और इन पार्टियों के नेता केंद्रीय एजेंसियों की जांच से बचने के लिए भाजपा में जा रहे हैं। उस समय एक जुमला मशहूर हुआ था- भाजपा की वाशिंग मशीन। लेकिन ऐसे नेता जो इस मशीन में धुलने के लिए गए थे, उन्हें जमीनी लड़ाई जनता ने अपने वोट का इस्तेमाल कर हरा दिया। इनमें कई नेता तो ऐसे थे, जिनकी पिछली पीढ़ी कांग्रेस में रही और जब मुश्किल समय आया तो भाग खड़े हुए। 

चाहे वो महाराष्ट्र में शिव सेना शिंदे गुट की यामिनी जाधव हों, पश्चिम बंगाल में भाजपा के तापस रॉय हों, झारखंड में कांग्रेस के प्रदीप यादव हों या फिर राजस्थान में भाजपा की ज्योति मिर्धा हों, इन सभी को जनता ने सबक सिखा दिया है। ऐसे 13 दलबदलू उम्मीदवारों या उनके परिजनों में से 9 के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियां ​​जांच कर रही थीं। इनमें से अधिकांश भाजपा या उसके सहयोगी दलों के हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक लोकसभा और दो राज्यों (आंध्र प्रदेश-उड़ीसा) चुनावों में 150 से अधिक दलबदलू मैदान में थे। इनमें से 13 उम्मीदवार या उनके परिवार के सदस्य सीबीआई, आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच का सामना कर रहे हैं।

13 दलबदलुओं में से आठ तो भाजपा में चले गए थे। जिनमें सात कांग्रेस से और एक तृणमूल कांग्रेस से, दो लोग शिवसेना (उद्धव) से शिंदे गुट में चले गए, एक वाईएसआरसीपी से टीडीपी में चला गया। दो कांग्रेस से झारखंड विकास पार्टी और पीईपी में चले गए थे।

इनमें से भाजपा में शामिल होने वाले आठ लोगों में से छह चुनाव हार गए। उद्धव का साथ छोड़कर शिंदे गुट में शामिल होने वाले दो लोगों में से एक हार गया, कांग्रेस से झारखंड विकास पार्टी और पीईपी में गए दोनों उम्मीदवार भी चुनाव हार गए।

हारने वाले दलबदलुओं में राजस्थान के नागौर से ज्योति मिर्धा, यूपी के जौनपुर से कृपाशंकर सिंह, कोलकाता उत्तर से तापस रॉय, आंध्र प्रदेश के अराकू से कोथापल्ली गीता, पटियाला से परणीत कौर और झारखंड के सिंहभूम से गीता कोड़ा।

शिवसेना शिंदे गुट से यामिनी जाधव मुंबई दक्षिण से चुनाव हार गईं, जबकि कांग्रेस से प्रदीप यादव झारखंड के गोड्डा से चुनाव हार गए। पूर्व कांग्रेस नेता ज्योति मिर्धा लोकसभा चुनाव से लगभग छह महीने पहले सितंबर, 2023 में भाजपा में शामिल हो गई थीं। कुछ महीने पहले, ईडी ने शिप्रा समूह की शिकायत के आधार पर इंडियाबुल्स के खिलाफ जांच शुरू की थी। इंडियाबुल्स को मिर्धा के ससुराल वाले चलाते हैं - इंडियाबुल्स के प्रमोटर समीर गहलौत मिर्धा के पति नरेंद्र गहलौत के भाई हैं।

इसी तरह मुंबई कांग्रेस के पूर्व प्रमुख कृपाशंकर सिंह 2012 में महाराष्ट्र एसीबी द्वारा आय से अधिक संपत्ति के मामले में जांच का सामना कर रहे थे। ईडी ने एसीबी मामले के आधार पर जांच शुरू की थी। 2019 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 2021 में बीजेपी में शामिल हो गए। 2024 में भाजपा ने उन्हें यूपी के जौनपुर से लोकसभा लड़ने भेज दिया।

इसी तरह की कहानियां बाकी राज्यों की भी है, जहां तमाम कांग्रेस नेता, टीएमसी नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों का सामना कर रहे थे। उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली लेकिन नाकामी मिली।

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