लोकसभा में गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक पर चर्चा शुरू हुई। इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से जुड़े किसी भी मुद्दे पर क़ानून बनाने का अधिकार संसद को है। लोकसभा में चर्चा के लिए स्पीकर ओम बिड़ला वापस कुर्सी पर बैठे, जबकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में जवाब दिया। इससे पहले सूत्रों से ख़बर आई थी कि लोकसभा में गतिरोध बने रहने से नाराज़ ओम बिड़ला ने कह दिया था कि जबतक यह गतिरोध नहीं ख़त्म होता है तब तक वह सदन में नहीं आएँगे।
गुरुवार को राज्यसभा में मणिपुर पर चर्चा के लिए विपक्ष और सरकार सहमत हो गए। इसके साथ ही ओम बिड़सा भी सदन में नज़र आए। रिपोर्ट के अनुसार विपक्ष किसी भी नियम के तहत व्यापक चर्चा के लिए सहमत हो गया है बशर्ते कि सभी दलों को अपनी बात रखने के लिए पर्याप्त समय दिया जाए।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष को दिल्ली के बारे में चिंतित होना चाहिए, न कि उनके नवनिर्मित गठबंधन I.N.D.I.A. के बारे में। उन्होंने देश की राजधानी में नौकरशाहों को नियंत्रित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलटने के लिए सरकार के विधेयक का जोरदार बचाव किया।
गृहमंत्री ने कहा, 'यह अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के आदेश को संदर्भित करता है, जो कहता है कि संसद को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से संबंधित किसी भी मुद्दे पर कानून बनाने का अधिकार है। संविधान में ऐसे प्रावधान हैं जो केंद्र को दिल्ली के लिए कानून बनाने की अनुमति देते हैं।'
अमित शाह ने आम आदमी पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा, 'मैं पार्टियों से अपील करता हूं कि वे दिल्ली में हो रहे सभी भ्रष्टाचारों का समर्थन सिर्फ इसलिए न करें क्योंकि आप गठबंधन में हैं। क्योंकि गठबंधन के बावजूद, प्रधानमंत्री मोदी पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीतेंगे।' आम आदमी पार्टी दिल्ली में सत्ता में है और अब 'इंडिया' गठबंधन का हिस्सा है।
अमित शाह ने कहा, 'वर्ष 2015 में दिल्ली में एक ऐसी पार्टी सत्ता में आई जिसका एकमात्र उद्देश्य सेवा करना नहीं, बल्कि लड़ना था। समस्या ट्रांसफर-पोस्टिंग करने का अधिकार प्राप्त करना नहीं है, बल्कि अपने बंगले बनाने जैसे भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए सतर्कता विभाग पर नियंत्रण प्राप्त करना है।'
उन्होंने दावा किया कि जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, सी राजगोपालाचारी, राजेंद्र प्रसाद और बीआर आंबेडकर जैसे भारत के संस्थापक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के विचार के खिलाफ थे।