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लोकसभा चुनावः पहले चरण की 102 सीटों पर कौन मजबूत, कौन कमजोर

लोकसभा चुनावः पहले चरण की 102 सीटों पर कौन मजबूत, कौन कमजोर

लोकसभा चुनाव का पहला चरण 19 अप्रैल को पूरा होगा। 102 सीटों पर असली लड़ाई भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले इंडिया गठबंधन के बीच है। यूपी-बिहार से लेकर तमिलनाडु तक दोनों ही गठबंधन बहुत मजबूती से लड़ते नजर आ रहे हैं। लेकिन पिछले आंकड़े कुछ और गवाही देते हैं। जानिएः

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा। इसमें 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 102 सीटों पर वोट डाले जाएंगे। 2019 के चुनावों में इन 102 सीटों में से भाजपा ने 40 सीटें, डीएमके ने 24 और कांग्रेस ने 15 सीटें जीतीं थीं। इंडिया टुडे ने इन 102 सीटों का आकलन किया है।  

कौन कहां मजबूत

  पहले चरण-1 की सीटों में भाजपा और कांग्रेस के बीच नौ किले शामिल हैं, जहां एक ही पार्टी ने 2009 के बाद से सभी तीन लोकसभा चुनाव जीते हैं। भाजपा ने जबलपुर, चुरू, बीकानेर, सीधी, पीलीभीत और बालाघाट में जीत हासिल की, जबकि कांग्रेस ने कलियाबोर, छिंदवाड़ा और शिलांग में जीत हासिल की। 

इसके विपरीत, 102 लोकसभा क्षेत्रों में से 21 स्विंग सीटें हैं जहां 2009 और 2019 के चुनावों में विजेता एक ही था लेकिन 2014 में अलग था। 2009 और 2019 के चुनावों में डीएमके ने 13 सीटें जीतीं। हालांकि इनमें से 12 वो सीटों हैं, जिन पर एआईएडीएके ने 2014 के चुनावों में जीत हासिल की थी। पट्टाली मक्कल काची यानी पीएमके ने एक सीट  धर्मपुरी जीती थी।

2009 और 2019 के चुनावों में कांग्रेस ने चार सीटें - शिवगंगा, पुडुचेरी, अरानी और विरुधुनगर जीतीं थीं। लेकिन 2014 के चुनाव में एआईएडीएमके और ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस ने यह सीट छीन ली थी। इससे क्या पता चलता है, इससे यह पता चलता है कि इन 21 सीटों पर मतदाता के फैसले बदलते रहे हैं। बड़ा सवाल यही है कि क्या 2024 में उसका फैसला बदलेगा या फिर डीएमके-कांग्रेस गठबंधन को तमिलनाडु के मतदाता अपना समर्थन देंगे। तमाम सर्वे में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन या इंडिया गठबंधन को बहुत मजबूत बताया गया है।   

मजबूती का आधारः  इंडिया टुडे के विश्लेषण के मुताबिक 2009, 2014 और 2019 में पहले चरण की 102 सीटों में से जीत के हिसाब से मजबूती तय होगी। अगर किसी पार्टी ने दो बार जीत हासिल की है तो अपेक्षाकृत ज्यादा मजबूत मानी जाएगी। लेकिन अगर वो सिर्फ एक बार जीती है तो अपेक्षाकृत कमजोर मानी जाएगी। अगर कोई पार्टी एक भी बार नहीं जीती तो फिर उसकी हालत एक तरह से पतली ही मानी जाएगी। इस हिसाब से छह सीटों पर बीजेपी और तीन पर कांग्रेस मजबूत है। हालाँकि, डीएमके ने लगातार तीन बार एक ही सीट नहीं जीती। भाजपा 32 सीटों पर, डीएमके 12 सीटों पर और कांग्रेस आठ सीटों पर अपेक्षाकृत मजबूत रही है। इसके विपरीत, कांग्रेस 38 सीटों पर, डीएमके 16 पर और भाजपा 13 सीटों पर अपेक्षाकृत कमजोर रही है। अगर सारे आंकड़े को मिलाकर देखें तो उस हिसाब से भाजपा 102 सीटों में से 51 पर और कांग्रेस 53 सीटों पर कमजोर रही है। 

वोट शेयर का हिसाब   

2019 में भाजपा ने पहले चरण की 102 सीटों में से 60 पर चुनाव लड़ा, पार्टी ने 34 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक, 19 सीटों पर 30-50 प्रतिशत और सात सीटों पर 30 प्रतिशत से कम वोट शेयर हासिल किए। दूसरी ओर, डीएमके ने पिछले चुनाव में जिन 24 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से उसने सभी पर जीत हासिल की, 19 सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट शेयर और शेष पांच में 30 से 50 प्रतिशत के बीच वोट शेयर हासिल किया। कांग्रेस ने 102 में से 65 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसका वोट शेयर 10 सीटों पर 50 प्रतिशत से ऊपर, 36 सीटों पर 30 से 50 प्रतिशत के बीच, नौ सीटों पर 10 से 30 प्रतिशत के बीच और 10 सीटों पर 10 प्रतिशत से नीचे था। 

इनमें से पहले चरण में बाहरी मणिपुर सीट ऐसी सीट है जिस पर दो चरणों में वोट डाले जाएंगे। यानी कुछ हिस्सों में पहले और कुछ में दूसरे चरण-2 में लोग वोट डालेंगे। इससे यह पता चलता है कि मणिपुर को चुनाव आयोग हिंसा के कारण अति संवेदनशील मान रहा है।  

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