देश के स्वास्थ्य के लिए किसी गारंटी की नहीं, ‘सही का चुनाव’ करें
जब सर्वोच्च न्यायालय की न्यायधीश जस्टिस हिमा कोहली ने सरकार को निशाने पर लेकर कहा कि “केंद्र को अब अपने आपको ऐक्टिवेट करना चाहिए”। तब इस टिप्पणी से आपको क्या लगा? मुझे तो इस टिप्पणी से लग रहा है, मानो केंद्र सरकार वर्षों से जंग लगी और धूल से ढकी एक मशीन बन गई है जिसे कहा जा रहा है कि अब इसे चालू करने का समय आ गया है। पर इस केन्द्रीय मशीनरी के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय तो चुनावों में व्यस्त हैं। वो तो इस बात से चिंतित हैं कि उन्हे बहुत गालियां दी गई हैं, उन्हे बहुत भला बुरा कहा गया है, उन्हे डराने की कोशिश की गई है आदि आदि। उन्हे इस बात की भी फिक्र है कि काँग्रेस का घोषणापत्र ‘मुस्लिम लीग की छाप’ लिए हुए है और यह भी कि भारतीय महिलाओं के ‘मंगलसूत्र’ को काँग्रेस बेच देने वाली है। कुल मिलाकर अर्थ यह है कि पीएम मोदी के दिमाग में जो भी आ रहा है वे बस उसे बोलने के लिए बोले जा रहे हैं। लेकिन जहां बात ‘जिम्मेदारी’ की आती है, नागरिकों के प्रति उनके कर्त्तव्य की आती है, महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है, देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की सुरक्षा की बात आती है, प्रधानमंत्री एक अंतहीन खामोशी और निद्रा में चले जाते हैं।
आखिरकार उनकी इस अंतहीन निद्रा को तोड़ने के लिए जस्टिस हिमा कोहली को कहना ही पड़ गया कि सो रही केंद्र सरकार अब जागे क्योंकि कंपनियां अपने उत्पादों की बिक्री की हवस में भारत के नागरिकों के स्वास्थ्य को भी खाए जा रही हैं। इन कंपनियों में से एक के मालिक और उद्योगपति रामकिसन यादव उर्फ बाबा रामदेव हैं। रामदेव वर्षों से योग सिखा रहे थे और योग सिखाते-सिखाते उन्होंने अपने उत्पाद बेचना शुरू कर दिया और कपड़ों से बाबा जैसे दिखने वाले रामदेव एक उद्योगपति के रूप में स्थापित हो गए। उनकी कंपनी का नाम दिव्य फार्मेसी है जिसे लोग पतंजलि आयुर्वेद के नाम से भी जानते हैं। रामदेव, नरेंद्र मोदी सरकार के घोर समर्थक हैं और इसका उन्हे खूब लाभ भी प्राप्त हुआ है। लेकिन अब यह लाभ भारत के नागरिकों के स्वास्थ्य की कीमत पर दिया जा रहा है। और नरेंद्र मोदी हमेशा की तरह खामोश हैं। लेकिन भारत का सर्वोच्च न्यायालय खामोश नहीं रह सकता चाहे केंद्र सरकार को अच्छा लगे या बुरा। रामदेव पर आरोप है कि उन्होंने Drugs and Magic Remedies Act, 1954 का लगातार उल्लंघन किया है।
रामदेव ने देश के लोगों के साथ तब खिलवाड़ किया जब इस देश के लोग पिछले 100 सालों की सबसे बड़ी आपदा, कोविड-19, से जूझ रहे थे। रामदेव एक झूठी दवा, कॉरोनिल बनाकर मार्केट में पेश करते हैं, और दावा कर देते हैं कि उनकी दवा से कोरोना ठीक हो जाता है। जिस दौर में नरेंद्र मोदी सरकार एक ऑक्सीजन सिलिन्डर तक मुहैया नहीं करवा पा रही थी, लोग एक-एक सांस लेने को मोहताज थे, हर दिन हजारों मौत की खबरें आ रही थीं, हम सब एक-एक करके अपने करीबियों को खो रहे थे तब रामदेव एक झूठी दवा को बेचकर करोड़ों कमा रहे थे। झूठा दावा कर रहे थे कि उनकी दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन का प्रमाणपत्र हासिल है। रामदेव के इस अवैज्ञानिक और झूठे दावे में मोदी सरकार के दो बड़े कैबिनेट मंत्री भी साथ खड़े थे, जो इस दवा के जारी होने के मौके पर मीडिया के सामने आए थे।
दुखद है कि देश के प्रधानमंत्री जिसे, संविधान ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद(CSIR) का मुखिया बनाया वो इस घोर अवैज्ञानिक कृत्य को होते देखते रहे। लोग मरते रहे और रामदेव पैसे बनाते रहे। रामदेव ने यह काम सिर्फ कोविड-19 के मामले में ही नहीं किया बल्कि उन्होंने डायबिटीज़, हाइपरटेंशन, कैंसर जैसी बीमारियों के मामले में भी इसी तरह का झूठ बोला उन्होंने इन बीमारियों के इलाज के झूठे दावे भी किए।
मेरी माँ के इलाज का मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी मेरे सामने है, रामदेव की पतंजलि के सारे आयुर्वेदाचार्य यह बताने में फेल रहे कि उनके हार्ट में 90% ब्लोकेज है उनका हृदय 5 ब्लोकेज से जूझ रहा है? यदि PGI न होता आधुनिक शिक्षा पद्धति न होती तो न जाने आज क्या होता? रामदेव अपने यहाँ ऐसे मरीजों का मेला लगाकर उनके स्पा से ढेरों पैसे कमाते हैं और लोग भक्ति में अपने पैसे गँवाते हैं। वहाँ आस्था और भक्ति के नाम पर एक रिश्तेदार दूसरे रिश्तेदार को भेजता है और मौत के करीब पहुंचाता है, सरकार सब जानती है पर वह खामोश बनी रहती है।
मोदी 13 साल एक राज्य के मुख्यमंत्री और 10 साल देश के प्रधानमंत्री बने रहने के बाद भी अभी भी चुनावों में विक्टिम कार्ड खेल रहे हैं और उनकी नाक के नीचे बैठे रामदेव जैसे लोग भारत के मासूम नागरिकों के स्वास्थ्य के साथ खेल रहे हैं, उनकी जेबों से पैसा निकाल रहे हैं और बदले में दे रहे हैं बीमारियाँ और वो दवाएं जिनकी वैज्ञानिकता पर सिर्फ प्रश्न ही प्रश्न है।
अब रामदेव सुप्रीम कोर्ट के सामने पिछले कई दिनों से चक्कर लगा रहे हैं, कोर्ट के कहने पर हाथ जोड़कर माफी मांग रहे हैं, देश के सभी अखबारों में छपवा रहे हैं कि उन्होंने अपनी दवाओं को लेकर गलत दावे किए, लेकिन भारत सरकार का क्या, नरेंद्र मोदी सरकार का क्या? वो कब भारत के नागरिकों से इस बात के लिए माफी मांगने वाले हैं कि उनकी लापरवाही के चलते उन्होंने कभी रामदेव को यह नहीं बताया कि इस देश में कानून नाम की भी एक चीज है जिसके ऊपर कुछ और नहीं है, कोई और नहीं है।
रोजगार और महंगाई के मुद्दे पर तो मोदी सरकार चारों खाने चित्त है ही, लोकतंत्र और पर्यावरण के मामले में उनकी दशा और भी खराब है, प्रेस स्वतंत्रता के नाम पर भारत दुनिया के सबसे खराब देशों के साथ कंधे से कंधा मिला रहा है, प्रधानमंत्री कम से कम देश के अंदर लोगों के स्वास्थ्य के मामले में तो कोई कदम उठाते? जिन करोड़ों लोगों ने मोदी जी को वोट दिया उनके, बच्चों और उनके अपनों के स्वास्थ्य की चिंता तो कम से कम मोदी जी को होनी ही चाहिए थी, लेकिन शायद उन्हे इसका एहसास ही नहीं है। मोदी जी को सिर्फ मोदी जी ही दिख रहे हैं, जो हर चुनावी रैली में सिर्फ मोदी जी की ही तारीफ करते हैं और बिना मांगे ‘मोदी की गारंटी’ बांटते घूम रहे हैं। लोग जानना चाहते हैं कि उनके स्वास्थ्य की गारंटी कौन देगा? संभवतया इसका उत्तर है- ‘कोई नहीं’!
इसका कारण जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट की उस बहस में चलते हैं, जहां जस्टिस हिमा कोहली सरकार से पूछती हैं कि रामदेव की कंपनी समेत तमाम अन्य FMCG कंपनियां जब अपने झूठे दावों को लेकर अखबारों और अन्य माध्यमों में प्रचार प्रसार कर रहे थे तब सरकार क्या कर रही थी? कोर्ट ने पूछा आयुष मंत्रालय उस समय क्या कर रहा था जब भारत में इश्तेहार की वैधता और गुणवत्ता को जाँचने वाली संस्था ‘एड्वरटाइजिंग स्टैन्डर्डस काउन्सिल ऑफ इंडिया’(ASCI) ने शिकायतें भेजीं? ASCI ने आयुष मंत्रालय को 948 ऐसी ही शिकायतें भेजी तब केंद्र सरकार ने इसके खिलाफ कोई कदम क्यों नहीं उठाया? आप जानते हैं सरकार ने क्या जवाब दिया? सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं था। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का आयुष मंत्रालय ऐतिहासिक लापरवाही का मोनुमेन्ट बन गया है।
गैर-संचारी रोग अर्थात नॉन कम्यूनिकेबल डिसीजेज(NCDs) ऐसे रोग होते हैं जो शरीर के अंगों को एक लंबे समय के बाद प्रभावित करते हैं। ये अपना प्रभाव तत्काल न दिखाकर कई वर्षों के बाद दिखाते हैं। ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में स्पर्श या अन्य माध्यमों से नहीं फैलते हैं। जैसे- डायबिटीज़, हृदय रोग, कैंसर आदि। इन बीमारियों का खतरा मुख्यतया आनुवांशिक, पर्यावरण और खानपान की समस्याओं के कारण बढ़ता है। मधुमेह और अन्य गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के नए राष्ट्रीय अनुमान से पता चलता है कि चार वर्षों (2019-2021) में 3.1 करोड़ से अधिक भारतीय मधुमेह का शिकार हो गए। एक दशक तक चले राष्ट्रव्यापी अध्ययन को समन्वित करके 2021 में एक अध्ययन प्रकाशित किया गया। इस अध्ययन को भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद(ICMR) और स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग(DHR), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था। इस अध्ययन में पाया गया कि भारत में 10.1 करोड़ लोग डायबिटीज़ से और 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटीज से पीड़ित हैं। इसके अतिरिक्त, 31.5 करोड़ लोगों को उच्च रक्तचाप था; 25.4 करोड़ को सामान्यीकृत मोटापा था, और 35.1 करोड़ को पेट का मोटापा था। 21.3 करोड़ लोगों को हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया था (जिसमें वसा धमनियों में जमा हो जाती है और लोगों को दिल के दौरे और स्ट्रोक के खतरे में डाल देती है) और 18.5 करोड़ लोगों को उच्च LDL कोलेस्ट्रॉल की समस्या थी। आँकड़े बता रहे हैं कि विश्वगुरु की चाहत रखने वाला भारत NCDs से बुरी तरह ग्रस्त है, बीमार है। ये बीमारियाँ मुख्यरूप से खानपान और जीवनशैली की अनियमितताओं से पैदा हो रही हैं।
बाजार में उपलब्ध खराब गुणवत्ता के खाद्य पदार्थ और विनियामक एजेंसियों की लापरवाही से NCDs का खतरा और भी बढ़ता जा रहा है। सरकार सो रही है और एजेंसियां पूरी तन्मयता से लापरवाही में जुटी हुई हैं। रामदेव के अतिरिक्त एक और मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया जो नेस्ले कंपनी पर, स्विस NGO, पब्लिक आई, की एक रिपोर्ट पर आधारित था। रिपोर्ट के मुताबिक, नेस्ले द्वारा भारत में बेचे जाने वाले सेरेलैक उत्पादों में प्रति सर्विंग 2.7 ग्राम अतिरिक्त चीनी होती है। इसमें आरोप लगाया गया है कि पैकेज्ड फूड कंपनी, नेस्ले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में अतिरिक्त चीनी के साथ बेबी फूड उत्पाद बेचता है, जबकि ये उत्पाद स्विट्जरलैंड, जर्मनी, यूके और फ्रांस जैसे विकसित बाजारों में बिना अतिरिक्त चीनी के बेचे जाते हैं। जब रिपोर्ट सामने आई और मामला सुप्रीम कोर्ट में भी जा पहुँचा तब उपभोक्ता मंत्रालय की नींद खुली और मंत्रालय की सचिव निधि खरे ने FSSAI को पत्र लिखकर जांच करने को कहा। सरकार के इतने ढीले-ढाले रवैये से भारतीय बच्चों के स्वास्थ्य की सुरक्षा कैसे होगी? इससे क्या फ़र्क पड़ता है कि मोदी सरकार ‘घर में घुसकर मारती है’? जब देश में चुपचाप कोई कंपनी आपके घर में घुसकर आपके बच्चों को मारने पर तुली हुई है। पहले अपना घर अपना किला सुरक्षित करना होगा वरना वह सबकुछ जो बोला जाएगा वह कोई दावा या गारंटी नहीं बल्कि ‘डींग’ ही कहलाएगा।
भारतीय कंपनियां और भारत सरकार पूरी दुनिया को अपने जैसा ही लापरवाह और स्वास्थ्य से खिलवाड़ को आम बात समझने की भूल कर बैठी है। उनकी इसी भूल की वजह से भारत का नाम पूरी दुनिया में खराब हो रहा है। हाल ही में हांगकांग ने MDH के तीन और एवरेस्ट के एक मसाले को प्रतिबंधित कर दिया। इसके बाद सिंगापुर ने एवरेस्ट के एक मसाले को यह आदेश देते हुए प्रतिबंधित कर दिया कि इसमें एथिलीन ऑक्साइड का उच्च स्तर मौजूद है, जो मानव उपभोग के लिए अनुपयुक्त है और लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से कैंसर का खतरा है।
एथिलीन ऑक्साइड एक केमिकल है जो एक कार्सिनोजेन है इसलिए इसका सीधा उपयोग खाद्य पदार्थों में किया जाना वर्जित है। लेकिन यह एक पेस्टिसाइड भी है इसलिए इसके धुएं का इस्तेमाल करके मसालों को कीटाणुमुक्त रखा जाता है। तमाम खाद्य विनियामकों द्वारा इस धुएं की सीमा को निर्धारित कर दिया गया है लेकिन भारतीय कंपनियां MDH और एवरेस्ट द्वारा इस सीमा का उल्लंघन किया गया जिसे हाँगकाँग और सिंगापुर जैसे देशों ने पकड़ लिया और मसालों को प्रतिबंधित कर दिया। अब USA की विनियामक एजेंसी FDA द्वारा भी इसका संज्ञान लिया गया है और जांच शुरू कर दी गई है। यह कितनी अच्छी बात है कि इन देशों में ऐसी एजेंसियां हैं जो अपने नागरिकों के स्वास्थ्य का ख्याल स्वतंत्रता पूर्वक, अधिकारपूर्वक करती हैं।
लेकिन जरा सोचिए भारत की सरकार कितनी लापरवाह, कमजोर और लचर है कि एक आदमी यहाँ सालों तक झूठे प्रचार से दवाएं बेचता रहे और सरकार कुछ भी न करे, जरा सोचिए नेस्ले अफ्रीकन, लैटिन अमेरिकन और भारत में ही खराब गुणवत्ता के उत्पाद क्यों बेच रही है? वह इसलिए, क्योंकि भारत समेत यहाँ सभी जगह विनियामकों को नागरिकों के स्वास्थ्य से ज्यादा कंपनियों के व्यापार में दिलचस्पी है। कभी सोचा है कि जिन सिंगापुर, हाँगकाँग और USA जैसे देशों में जहां नियामक संस्थाएं बहुत मजबूत है जब वहाँ ये भारतीय कंपनियां गुणवत्ताहीन उत्पाद भेज सकती हैं तब भारत जैसे देशों में इनके कैसे और कितनी बुरी हालात वाले उत्पाद बिक रहे होंगे, इस दुस्साहस की कल्पना की जा सकती है।
मैं तो बस इतना कहूँगी कि ‘गारंटियों’ और ‘संकल्पों’ के इस देश में 56 इंच का इस्तेमाल करके देश के नागरिकों को मजबूत किया जाना चाहिए, नागरिकों को सुरक्षित रखने के लिए अब कुछ ‘सही का चुनाव’ किया जाना चाहिए जिससे भारत का भविष्य मजबूत बन सके। उन्हें स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए जो देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने में दिन रात जुटे हैं, क्योंकि उन नेताओं और उनकी पार्टियों के पास नागरिकों के स्वास्थ्य को सँवारने के लिए फुरसत ही कहाँ है?
(वंदिता मिश्रा जानी-मानी पत्रकार हैं। सत्य हिन्दी वेबसाइट पर उनका कालम हर रविवार को प्रकाशित होता है)