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अयोध्या में जीत का फैसला करने वाले क्या 'नमकहराम' हैं?

अयोध्या में जीत का फैसला करने वाले क्या 'नमकहराम' हैं?

भाजपा अयोध्या में चुनाव हार गई। उसके समर्थक अयोध्या यानी फैजाबाद लोकसभा सीट के हिन्दुओं को नमकहराम और न जाने किन-किन विशेषणों से सुशोभित रहे हैं। लेकिन अयोध्या में टूटे हजारों मकानों-दुकानों से आते चीत्कार को राम को लाने वाले सुनने को तैयार नहीं। स्तंभकार और जाने-माने चिंतक अपूर्वानंद ने अयोध्या की हार-जीत पर विचारों का फौलादी हथौड़ा चलाया है। देशभक्तों के लिए एक जरूरी लेखः   

अयोध्या के लोगों से भारतीय जनता पार्टी के समर्थक ख़फ़ा हैं। 18वीं लोक सभा के चुनाव में अयोध्यावासियों ने भाजपा को अपना प्रतिनिधि मानने से इनकार कर दिया है। जो अयोध्यावासी नहीं हैं, वे हैरान हैं कि आख़िर अयोध्यावासी ऐसा कर ही कैसे सकते हैं। जिस अयोध्या को भाजपा ने ऐसा भव्य राम मंदिर दिया, वहाँ हवाई अड्डा बनाया, उसे आधुनिक पर्यटन स्थल में बदल दिया, उस अयोध्या के लोगों ने उस मेहरबान भाजपा को धता बता दी। इससे बड़ी कृतघ्नता और क्या हो सकती है? 

भाजपा के ये घृणा उत्पादक सिर्फ़ अयोध्यावासियों की भर्त्सना नहीं कर रहे, वे हिंदुओं पर लानत भेज रहे हैं। भारत का ऐसा हाल है क्योंकि वहाँ ऐसे गए गुजरे हिंदू  रहते हैं जो अपना धर्म नहीं पहचानते। वे परले दर्जे के नमकहराम हैं। 

यह आज की ही बात नहीं, अयोध्या के लोग हमेशा से ऐसे रहे हैं। क्या आपको याद नहीं कि उन्होंने बेचारे राम को अपनी पत्नी सीता को वनवास देने पर मजबूर कर दिया था? आज फिर भाजपा को 5 साल का वनवास देकर उन्होंने साबित कर दिया कि वे रामायण के समय से ज़रा भी नहीं बदले हैं।

यह कहना ज़रूरी है कि घृणा की फ़ैक्टरी ही इस नफ़रत का उत्पादन कर रही है। वह नफ़रत के इस धुएँ से आसमान इस कदर भर देना चाहती है कि ऐसा जान पड़े कि सारे हिंदू नफ़रत की साँस छोड़ रहे हैं। ऐसा है नहीं। फिर भी अयोध्यावासियों के ख़िलाफ़ इस घृणा अभियान को समझना ज़रूरी है।

भाजपा की अयोध्या में हार के बाद अयोध्यावासियों और भाजपा विरोधी हिंदुओं के ख़िलाफ़ घृणा अभियान ने हिंदुत्व और हिंदूपन का अंतर स्पष्ट कर दिया है। यह भी कि जो हिंदू हिंदुत्ववादी होने से इंकार करेगा उसे भाजपा इज़्ज़त से जीने नहीं देगी। 

कौन हिंदू हिंदुत्ववादी नहीं है? सरलतम परिभाषा है कि जो हिंदू भाजपा का है, वह हिंदुत्ववादी है। शेष सारे हिंदू हिंदुत्ववादी नहीं हैं। जैसे अयोध्या के हिंदुओं ने हिंदुत्ववादी होने से इंकार किया है, वैसे ही भारत के करोड़ों हिंदुओं ने भाजपा को ठुकराकर हिंदुत्ववाद को दुत्कार दिया है।


लेकिन इस पर बात करने के पहले हम याद कर लें कि अयोध्या फ़ैज़ाबाद लोक सभा का हिस्सा है। लोक सभा क्षेत्र का नाम अभी भी फ़ैज़ाबाद है हालाँकि 2018 में फ़ैज़ाबाद ज़िले का नाम बदल कर अयोध्या कर दिया गया था। फ़ैज़ाबाद में अयोध्या के अलावा उसके पहले इलाहाबाद का नाम बादल कर प्रयागराज कर दिया गया था। यह हिंदुस्तान का शुद्धीकरण करके विशुद्ध भारत बनाने का अभियान है। लेकिन अयोध्यावासियों की तरह ही प्रयागराज वालों ने धोखा दिया। उन्होंने भी भाजपा को हरा दिया। तो क्या उन्होंने भी इलाहाबाद के हिंदूकरण का महत्त्व नहीं समझा? 

भाजपा के जो लोग अपनी हार के लिए अयोध्या के हिंदुओं को खरी खोटी सुना रहे हैं, वे भूल जाते हैं कि अयोध्या में सिर्फ़ हिंदू मतदाता नहीं बसते। और भारत के सारे मतदाताओं को तय करने का अधिकार है कि कौन सा राजनीतिक दल उनके लिए अच्छा है और कौन नहीं।

लेकिन यह भी सच है कि अगर हिंदू न चाहते तो भाजपा न हारती। सिर्फ़ अयोध्या में ही क्यों, अगर भारत भर में हिंदू न चाहते तो भाजपा बहुमत से वंचित न रहती। इस बात को समझना भाजपा और आर एस एस वालों के लिए बहुत मुश्किल है। वे अपने ही शोर से समझ बैठे थे कि सारे हिंदुओं का हिंदुत्वकरण किया जा चुका है। भाजपा ने शोर का कारख़ाना खड़ा किया है। उससे भयानक शोर पैदा करके यह भ्रम पैदा किया जा रहा है कि यह आवाज़ सारे हिंदुओं के गलों से निकल रही है। यहाँ तक कि जो हिंदू चुप हैं, वे भी समझ बैठे हैं कि यह हिंदुओं की आवाज़ें हैं।

चुनाव के समय वे सब जो इस शोर के बीच जो चुप थे वे वोट के ज़रिए बोलते हैं। भाजपा या हिन्दुत्व के इनकार की उनकी यह सामूहिक आवाज़ सुनकर भाजपा के लोग सुन्न पड़ गए हैं। यह आवाज़ है, यह वे अपनी चीख चिल्लाहट में सुन नहीं पाए थे।

भाजपा के लोगों को अयोध्यावासियों ने याद दिलाया है कि अयोध्या में भाजपा के जन्म के पहले से या भाजपा के जनक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जन्म के भी पहले से हिंदू रह रहे हैं। वे 22 जनवरी वाले राम मंदिर के बनने के पहले भी राम को जानते थे।अयोध्या में एक नहीं अनेक राम मंदिर थे और सबका महत्त्व था। एक विशाल राम मंदिर बनाकर  उन सारे मंदिरों को अपदस्थ करना, उन्हें महत्त्वहीन करना साधारण हिंदुओं को अपमानजनक मालूम पड़ा। भाजपा का यह दावा कि उसके मोदी राम को लाए हैं, उसे दंभ मालूम पड़ा। 

अयोध्या के बाहर के लोगों को नहीं, अयोध्यावालों को साफ़ दिखलाई पड़ा कि यह मंदिर धार्मिक श्रद्धा के कारण नहीं, राजनीतिक और सांसारिक लोभ के कारण बनाया गया है।


उन्होंने यह भी देखा कि उनसे कहा जा रहा है कि वे इस हिंदुत्व के लिए अपना बलिदान दें। जिस तरह बनारस में काशी विश्वनाथ वीथी बनाने के लिए सैकड़ों सालों पुराने मंदिरों को और घरों को ध्वस्त कर दिया गया, वैसे ही अयोध्या में भी नए राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए घरों, मंदिरों और मस्जिदों को ध्वस्त कर दिया गया। 

अयोध्या के लोगों ने देखा कि भाजपा प्राचीन संस्कृति की दुहाई तो देती है लेकिन वह प्राचीनता का सम्मान नहीं करती। वह एक नई और नक़ली प्राचीनता का उत्पादन कर रही है।


उसे स्थापित करने के लिए अस्तित्वमान प्राचीनताओं को मिटाना होगा। इसीलिए इलाहाबाद का नाम बदल कर प्रयागराज करना होगा और अयोध्या में पुराने मंदिरों को ध्वस्त करके नया राम मंदिर स्थापित करना होगा।

यह सब कुछ प्रतीकात्मक है। अगर हिंदुत्व को स्थापित होना है तो उसे पारंपरिक हिंदूपन को भी ध्वस्त करना होगा। सारी परिपाटियाँ बदलनी होंगी।


 गंगा आरती हो या दीवाली में 5 लाख दिए जलाना हो, ये हिंदू परंपराएँ नहीं।अलग अलग प्रदेशों में हिंदुओं की अलग अलग परंपराएँ हैं। बंगाल में राम नवमी महत्वपूर्ण नहीं। उसी तरह मालूम हुआ कि मिथिला और बंगाल में भाजपा और आर एस एस के लोगों ने मंगलवार के दिन मांस और मछली की बिक्री बंद करने की कोशिश हुई। बंगालियों और मैथिलों ने इसे  स्वीकार नहीं किया। 

लेकिन भाजपा उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह ही राम नवमी को बंगाल का मुख्य त्योहार बनाने पर जुटी हुई है। केरल में  हिंदू ओणम में उदार, प्रजावत्सल बाली की वार्षिक वापसी का उत्सव मनाते हैं। परंपरा को उसके सर के बल खड़ा करके भाजपा ने ओणम को बाली से छलपूर्वक उसका राज्य छीन लेनेवाले वामन की जयंती के रूप में मनाने की शुरुआत की। जब केरल के लोगों ने इसका तीव्र विरोध किया तब जाकर भाजपा ने पाँव पीछे खींचे। मुझे जबलपुर के एक बंगाली मित्र ने बतलाया कि आर एस एस के एक बंगाली प्रचारक ने बंगालियों की एक सभा को हिंदी में संबोधित किया। उन्होंने सबको कहा कि उन्हें ख़ुद को बंगाली नहीं, हिंदू कहना चाहिए। उन सबको याद रखना चाहिए कि बंगाल के कुलीन हिंदू उत्तर प्रदेश के कन्नौज से बंगाल गए थे इसलिए उन सबको हिंदी बोलनी चाहिए।  

यह हिंदुत्व द्वारा हिंदू परंपरा को बदलने की कोशिश है।


बाबरी मस्जिद गिराने के अभियान के दौरान जय सियाराम या राम राम की जगह जय श्रीराम को प्रचारित किया गया। राम सीता की छवि के बदले आक्रामक राम की तस्वीर, कोमल मुख हनुमान की जगह क्रुद्ध हनुमान की तस्वीर प्रचलित की गई।परशुराम जयंती के जुलूस को यह सब हिंदू भाषा को चालाकी से हिंदुत्व की शब्दावली में बदलने की कोशिश है।

जिसने राम जन्मभूमि अभियान में ईंट नहीं भेजी, वह हिंदू है या नहीं? जिसने 6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के ध्वंस का जश्न नहीं मनाया, वह हिंदू है या नहीं? जो जय श्रीराम नहीं बोलता, वह हिंदू है या नहीं? जो धार्मिक जुलूस में मुसलमानों का अपमान करनेवाला गाना नहीं गाता, वह हिंदू है या नहीं? जो मुसलमान से घृणा नहीं करता, वह हिंदू है या नहीं? जो भाजपा को वोट नहीं देता, वह हिंदू है या नहीं? 

सिर्फ़ अयोध्या के नहीं, पूरे भारत के अधिकतर हिंदुओं ने इस बार भाजपा को वोट न देकर उसे कहा है कि वे हिंदू तो हैं, हिंदुत्ववादी नहीं हैं। उसे इसका यक़ीन नहीं आ रहा लेकिन सच यही है। 

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