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4.65 करोड़ वोटों की हेराफेरी न होती तो केंद्र में I.N.D.I.A की सरकार होतीः रिपोर्ट

4.65 करोड़ वोटों की हेराफेरी न होती तो केंद्र में I.N.D.I.A की सरकार होतीः रिपोर्ट

लोकसभा चुनाव के नतीजे 4 जून को आए थे और भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। देश में बहुत सारे लोगों को चुनाव आयोग के नतीजों में हेराफेरा साफ नजर आई, क्योंकि देश में हर राज्य में भाजपा विरोधी माहौल था। यह आरोप अब सच साबित होता दिख रहा है। केंद्रीय चुनाव आयोग की विश्वसनीयता तो खैर पहले से ही दांव पर लगी हुई थी लेकिन इस रिपोर्ट के आने के बाद आयोग की सत्यता और ईमानदारी का जनाजा निकल गया है। करीब पांच करोड़ वोटों की हेराफेरी ने इस देश की राजनीति को बदलने से रोक दिया। 

एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए, कांग्रेस ने शनिवार को लोकसभा चुनाव की प्रारंभिक और अंतिम गिनती के बीच लगभग 5 करोड़ वोटों की विसंगति का आरोप लगाया, जिसके बारे में उसका दावा है कि अगर ये वोट इंडिया गठबंधन को मिले होते तो संसद में सबसे अधिक सीटें उसकी होतीं। कांग्रेस का यह दावा 'वोट फॉर डेमोक्रेसी' द्वारा जारी 'रिपोर्ट: लोकसभा चुनाव 2024 का संचालन' नामक रिपोर्ट पर आधारित है। यह रिपोर्ट कई दिनों से सार्वजनिक है लेकिन मुख्यधारा का मीडिया इस पर चुप्पी साधे हुए है। कहीं कोई डिबेट नहीं।

वोट फॉर डेमोक्रेसी की रिपोर्ट में लोकसभा 2024 के चुनावों की निष्पक्षता पर सवाल उठाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शुरुआती मतदान के आंकड़ों से लेकर अंतिम मतदान के आंकड़ों तक 4.65 करोड़ वोटों की हेराफेरी से देश के 15 राज्यों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए को 79 सीटें मिलीं। हेरफेर के कारण वोटों की बढ़ोतरी के जरिए महाराष्ट्र में 11 लोकसभा क्षेत्रों को एनडीए ने जीत लिया। यानी अगर वोटों की हेराफेरी न होती तो महाराष्ट्र में 9 लोकसभा सीट जीतने वाली भाजपा एक भी सीट नहीं जीत पाती। महाराष्ट्र में लोगों के गुस्से ने भाजपा और अजीत पवार की एनसीपी को ठिकाने लगा दिया।

कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने शनिवार को इस रिपोर्ट को संक्षेप में समझाया है-  *वोट फॉर डेमोक्रेसी* की रिपोर्ट ने कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए हैं जो हमारे लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को हिला सकते हैं। रिपोर्ट निम्नलिखित दावा करती है:

  • प्रारंभिक वोटों की गिनती और अंतिम वोटों की गिनती के बीच लगभग 5 करोड़ वोटों की विसंगति।
  •  रिपोर्ट में दावा किया गया है कि वोटों में बढ़ोतरी के माध्यम से 15 राज्यों में कम से कम 79 सीटें एनडीए/बीजेपी द्वारा जीती जा सकती थीं, जिसका अर्थ है कि यदि यह सच है, तो इंडिया गठबंधन के पास संसद में अधिकतम सीटें होंतीं।
  •  ईसीआई ने पूरे 7 चरणों में अंतिम मतदान प्रतिशत के प्रकाशन में देरी की, जो फिर से गंभीर चिंता पैदा करता है। यदि रिपोर्ट ग़लत है, तो  @ECISVEEP (केंद्रीय चुनाव आय़ोग)  को0 इस पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के डगमगाते विश्वास को बहाल करना चाहिए। लेकिन अगर रिपोर्ट में कही गई बात सच है तो भारतीय लोकतंत्र के राजनीतिक इतिहास में अहम मोड़ आ रहा है।

रिपोर्ट में मतदान और गिनती के दौरान वोट में हेरफेर और विसंगति का विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट में चुनाव आयोग (ईसीआई) द्वारा मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी के साथ-साथ चुनाव में डाले गए कुल वोटों और गिने गए कुल वोटों के बीच विसंगतियों के बारे में गंभीर चिंताएं जताई गईं।

वोट फॉर डेमोक्रेसी ने चुनाव परिणामों और मतदाता मतदान प्रतिशत का न्यूमेरिकल (संख्यात्मक) विश्लेषण किया। सात चरणों में प्रारंभिक मतदान आंकड़ों से लेकर अंतिम मतदान आंकड़ों तक 4,65,46,885 वोट चुनाव आयोग ने बढ़ाए। यह बढ़ोतरी दर करीब 3.2% से लेकर 6.32% तक सभी निर्वाचन क्षेत्रों में दर्ज की गई। इसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि वोट प्रतिशत का यह अंतर आंध्र प्रदेश में 12.54% और ओडिशा में 12.48% तक जा पहुंचा। दोनों राज्यों में सरकार बदली और भाजपा के घटक दल को सीटें मिलीं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मतदान प्रतिशत के बाद हुई बढ़ोतरी से सत्तारूढ़ सरकार यानी एनडीए को फायदा हुआ है।

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया कि वोट प्रतिशत में अभूतपूर्व वृद्धि के कारण पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए को 79 सीटें मिलीं। इसमें ओडिशा की 18, महाराष्ट्र की 11, पश्चिम बंगाल की 10, आंध्र प्रदेश की 7, कर्नाटक की 6, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की 5-5, बिहार, हरियाणा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना की 3-3, असम की 2 और अरुणाचल प्रदेश, गुजरात और केरल की एक सीट शामिल है।

आईआईएम अहमदाबाद के रिटायर्ड प्रोफेसर और भारत के चुनावों की निगरानी के लिए स्वतंत्र पैनल के सदस्य सेबेस्टियन मॉरिस ने कहा, “इन 79 लोकसभा क्षेत्रों में, वोटों में वृद्धि की तुलना में जीत का अंतर बहुत कम है। इन सीटों का पैटर्न कहता है कि अंतर बहुत बड़ा है, बदलाव लंबे समय के बाद आया है और यह उन निर्वाचन क्षेत्रों में देखा गया है जहां कड़ी लड़ाई थी। मुझे लगता है कि एक बहुत बड़ा पूर्वाग्रह है जो सामने आया है।''

रिपोर्ट जारी होने के बाद लगभग 25 सिविल सोसाइटी संगठनों ने भारत के चुनाव आयोग को एक नोटिस जारी कर कथित अनियमितताओं, वोटों में हेरफेर, आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की जांच की मांग की। नोटिस में चुनाव आयुक्त की नियुक्ति में पक्षपात, पंजीकरण और गिनती में हेराफेरी, चुनाव तारीखों का अतार्किक और अराजक समय-निर्धारण, वोटिंग एजेंटों को फॉर्म 17सी उपलब्ध नहीं कराने और वोटर टर्नआउट जारी करने में देरी की शिकायतों पर स्पष्टीकरण मांगा गया है।

वोट फॉर डेमोक्रेसी की तीस्ता सीतलवाड ने कहा, “महाराष्ट्र में सीटों की संख्या दूसरी सबसे अधिक है, जहां शुरुआती और अंतिम मतदान में भारी बढ़ोतरी देखी गई। मतदान के साथ-साथ मतगणना के दिन भी चुनाव आयोग का आचरण बेहद संदिग्ध रहा। हम मान रहे हैं कि यह बढ़ोतरी जानबूझकर की गई है क्योंकि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित कानून में बहुत आंशिक संशोधन किया गया था।'

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