लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान बीतने के बाद देश का मुसलिम समाज चुनाव के केंद्र में आ गया है। जहाँ तमाम सेकुलर पार्टियाँ कोशिश कर रही हैं कि बीजेपी को हराने के लिए मुसलिम समुदाय एकजुट होकर उसके ख़िलाफ़ वोट करे तो वहीं, बीजेपी मुसलिम वोटों के बँटवारे की हरसंभव कोशिश कर रही है।
एक ओर जहाँ बीजेपी की कोशिश मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रचार करके अपने कट्टर हिंदू वोटरों को एकजुट करने की है, वहीं दूसरी तरफ वह तीन तलाक़ जैसे संवदेनशील मुद्दे उठा कर मुसलिम समाज की महिलाओं का वोट हासिल करने की भी फिराक में है।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने किसी भी जीतने लायक मुसलिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में नहीं उतार कर यह साफ़ संदेश दे दिया है कि उसे लोकसभा में मुसलमानों की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है।
कहने को तो बीजेपी ने इस बार 4 मुसलिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। इनमें से तीन कश्मीर घाटी में हैं और एक पश्चिम बंगाल की जंगीपुरा सीट पर। लेकिन सवाल यह है कि बीजेपी ने अपने उन मुसलिम नेताओं को चुनाव मैदान में नहीं उतारा जो जीतने का माद्दा रखते थे। इनमें बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन प्रमुख हैं। हुसैन एक बार बिहार के किशनगंज से चुनाव जीते हैं और दो बार बिहार के ही भागलपुर से। बिहार से बीजेपी के एक और बड़े मुसलिम नेता साबिर अली भी टिकट माँग रहे थे लेकिन उन्हें भी पार्टी ने टिकट देने से साफ़ इनकार कर दिया।
मुसलमानों को टिकट नहीं देने के बारे में जब एक निजी चैनल के इंटरव्यू में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जिस सीट पर हमारे राष्ट्रीय प्रवक्ता चुनाव लड़ते थे वह सीट बीजेपी की सहयोगी के खाते में चली गई है।
एक और निजी चैनल के कार्यक्रम में गृहमंत्री राजनाथ सिंह से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि अभी बीजेपी के पास ऐसे मुसलिम नेता नहीं हैं जो चुनाव जीतने की क्षमता रखते हों। जब ऐसे लोग पार्टी में होंगे तो पार्टी उन्हें निश्चित रूप से चुनाव लड़ने का मौक़ा देगी। ग़ौर करने वाली बात यह है कि इस सवाल का जवाब देते हुए बीजेपी के दोनों ही शीर्ष नेताओं के चेहरे की हवाईयाँ उड़ी हुईं थीं।
नफ़रत बढ़ाने की हो रही कोशिश
हाल ही में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पश्चिम बंगाल की एक चुनावी रैली में कहा कि केंद्र में यदि फिर से मोदी सरकार द्वारा बनती है तो देशभर में नागरिकता के क़ानून को लागू किया जाएगा। उनकी सरकार हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म को मानने वालों को छोड़कर बाक़ी सभी धर्म के घुसपैठियों को चुन-चुन कर देश से बाहर निकाल देगी।
यह कहकर अमित शाह बहुसंख्यक समाज में मुसलमान और ईसाइयों के ख़िलाफ़ बढ़ रही नफ़रत को मजबूत करके उनके एकजुट वोट बीजेपी के पक्ष में डलवाना चाहते हैं। इसी तरह बीजेपी की सांसद और मोदी सरकार में मंत्री मेनका गाँधी ने भी सुल्तानपुर के एक गाँव में जनसभा में मुसलमानों से साफ़-साफ़ कहा कि अगर वे उन्हें वोट नहीं देंगे तो चुनाव जीतने के बाद वह मुसलमानों के काम दिल से नहीं कर पाएंगी।
अमित शाह, मेनका गाँधी के अलावा बीजेपी के कई और नेता भी मुसलमानों को धमका चुके हैं। ऐसी घटनाओं से साफ़ है कि बीजेपी सीधे-सीधे मुसलमानों के तिरस्कार पर उतर आई है।
एक तरफ़ तो बीजेपी मुसलमानों के तिरस्कार की नीति पर चल रही है, वहींं उसके मातृ संगठन आरएसएस ने कुछ ऐसे संगठन बना रखे हैं जिनका मक़सद मुसलमानों के बीच आरएसएस की विचारधारा को प्रचारित करना है। इनमें सबसे बड़ा संगठन राष्ट्रीय मुसलिम मंच और दूसरा अखिल भारतीय मुसलिम परिषद है।
राष्ट्रीय मुसलिम मंच के अध्यक्ष इंद्रेश कुमार मुसलमानों को इस बात का एहसास दिलाते हैं कि उनके पूर्वज भी कभी हिंदू थे, इसलिए वे भी हिंदू तौर-तरीक़े अपनाएँ। इससे देश में उनका सम्मान बढ़ेगा और उन्हें बराबरी का हक़ मिलेगा।
मुसलिम वोटों को बाँटना ही मक़सद
इंंद्रेश कुमार पिछले कई साल से ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर मुसलिम समाज के बीच काम कर रहे हैं। अब उनके संगठन से जुड़े लोग मुसलिम इलाक़ों में ट्रिपल तलाक़ क़ानून को मोदी सरकार का क्रांतिकारी क़दम बताते हुए मुसलमानों से बीजेपी को वोट देने की अपील कर रहे हैं। ज़ाहिर है अगर इन संगठनों से जुड़े मुसलिम कार्यकर्ता बीजेपी को वोट देते हैं तो कहीं ना कहीं बीजेपी मुसलिम वोटों के बँटवारे में कामयाब होती दिखेगी।
आगरा और उसके आसपास के इलाक़ों से ख़बरें आ रही हैं कि आरएसएस, राष्ट्रीय मुसलिम मंच और मुसलिम परिषद से जुड़े लोग सीधे-सीधे मुसलिम इलाक़ों में न जाकर मिली-जुली आबादी में रहने वाले मुसलमानों को बीजेपी के हक़ में वोट डालने के लिए तैयार करने में जुटे हैं।
बीजेपी के लिए वोट डलवाने के लिए ये संगठन इस बात का सहारा लेते हैं कि उनकी पार्टी मुसलिम समाज में औरतों की स्थिति को सुधारना चाहती है। इसीलिए ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं और वह इसके ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून लाए हैं।
ट्रिपल तलाक़ को भुनाने का प्रयास
बजरंग बली और हजरत अली विवाद में फँसने के बाद यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी आँवला की रैली में यही मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि मुसलिम महिलाएँ अपने हिंदू भाइयों पर ज़्यादा भरोसा करें। क्योंकि वे ही ट्रिपल तलाक़ के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई लड़ रहे हैं। ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे को चुनाव के दौरान उठाने से साफ़ ज़ाहिर है कि बीजेपी मुसलिम समाज की महिलाओं में सहानुभूति पैदा करके उनके वोट झटकना चाहती है।
इस तरह देखें तो बीजेपी मुसलिम समाज पर ‘दोधारी तलवार’ से वार कर रही है। एक तरफ़ तो वह यह सुनिश्चित करना चाहती है कि लोकसभा में कम से कम मुसलमान जीतें। वहींं वह किसी ना किसी बहाने मुसलमानों के कुछ वोट भी हासिल करना चाहती है। इसके लिए वह मुसलिम समाज के बीच ट्रिपल तलाक़ जैसे मुद्दे पर भी बँटवारा करने की कोशिश कर रही है।
बीजेपी शासित प्रदेशों पर नज़र डालें तो 25 साल से ज़्यादा समय तक गुजरात में राज करने के बावजूद बीजेपी ने कभी भी विधानसभा चुनाव में किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया।
मध्य प्रदेश में भी 15 साल राज करने के बावजूद बीजेपी ने एक भी मुसलिम को विधानसभा का टिकट नहीं दिया। राजस्थान में ज़रूर मोहम्मद यूनुस को 2013 के चुनाव में टिकट दिया था और 2018 में भी उन्हें चुनाव लड़ाया।
उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में एक भी सीट पर मुसलमानों को टिकट नहीं दिया गया था। ऐसे में मुसलिम समाज बीजेपी पर भरोसा करने को तैयार नहीं है कि वह उनके साथ इंसाफ़ करेगी। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'सबका साथ, सबका विकास' का नारा देते हों लेकिन ऐसा ज़रूर लगता है कि उनके इस ‘सबका’ में मुसलमान शामिल नहीं हैं।