मोदी के ख़िलाफ़ प्रचार में उतरेंगे बीएसएफ़ के रिटायर्ड जवान

05:07 pm Apr 11, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

सीमा सुरक्षा बल से रिटायर्ड हो चुके या नौकरी से निकाले गए सैकड़ों जवान नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव प्रचार करने बनास पहुँच रहे हैं। वे अपने पूर्व सहकर्मी तेज़ बहादुर यादव की मदद करने वहाँ जा रहे हैं। यादव ने बनारस सीट से संसदीय चुनाव लड़ने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का फ़ैसला किया है। वे निर्दलीय चुनाव लड़ेंगे।

याद दिला दें कि तेज बहादुर यादव वही हैं, जिन्होंने बीएसएफ़ के मेस में खाने की गुणवत्ता की शिकायत करते हुए एक वीडियो फ़ेसबुक पर डाला था।

वे चर्चा में आ गए। बीएसएफ़ ने मामले की जाँच कराई और खाने की क्वालिटी ख़राब होने से साफ़ इनकार कर दिया। 

बीएसएफ़ ने इसके बाद कोर्ट ऑफ़ इक्वायरी बैठाई और यादव को नौकरी से निकाल दिया गया।

यह वीडियो हमने अर्शद ख़ान के फ़ेसबुक वॉल से साभार लिया है। हमने इसकी जाँच नहीं की है। 

बीजेपी की नई मुसीबत

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर ज़बरदस्त बहस छिड़ गई है। लोग भारतीय जनता पार्टी से पूछ रहे हैं कि यादव या उनका समर्थन करने वाले सैकड़ों रिटायर्ड बीएसएफ़ जवान क्या राष्ट्रद्रोही हैं दरअसल बीजेपी ने जिस तरह राष्ट्रवाद को चुनावी मुद्दा बना लिया और मोदी ख़ुद हर चुनावी सभा में सेना, सैनिकों और राष्ट्रवाद की बात करते रहे हैं, उससे यह सवाल उठना लाज़िमी है।

बीजेपी के सबसे बड़े नेता और उसके आइकॉन को चुनौती देकर तेज़बहादुर यादव ने बीजेपी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। वह बीजेपी के राष्ट्रवाद को भी चुनौती दे रहे हैं।

इस वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि बीएसएफ़ का यह रिटायर्ड जवान फ़ोर्स के लोगों और नौकरी छोड़ चुके लोगों की स्थिति के बारे में बता रहा है। उनका कहना है कि तेज बहादुर ने तो बीएसएफ़ में व्याप्त भ्रष्टाचार की ओर ध्यान दिलाने की कोशिश की थी, पर व्यवस्था दुरुस्त करने के बजाय उन्हें ही निकाल दिया गया। यह जवान यह भी कह रहा है कि किस तरह लोगों को 2014 में मोदी से उम्मीदें थी, लेकिन वह उन उम्मीदों को पूरी करने में नाकाम रहे। 

बीजेपी के 'राष्ट्र्वाद' को चुनौती

यह साफ़ है कि बनारस में मोदी की स्थिति बहुत ही मजबूत है और उन्हें हराना तेज़ बहादुर यादव के बूते की बात नहीं है। पर उनका चुनाव लड़ना सांकेतिक है और यह बीजेपी के ख़िलाफ़ ही जाता है। यादव के बहाने यह सवाल पूछा जा सकता है कि बीजेपी जिन सैनिकों और अर्द्धसैनिक बलों की बातें करती है और उनके नाम पर वोट माँगती है, उनकी स्थिति सुधारने के लिए इस सरकार ने क्या किया है। यह सवाल भी उठता है कि मोदी क्या सिर्फ़ कहते हैं, कुछ करते नहीं है। यदि करते होते तो बीएसएफ़ के इस जवान की शिकायत के बाद स्थिति सुधारने की कोशिश की गई होती। इतना तो साफ़ है कि तेज बहादुर यादव की चुनौती सांकेतिक रूप से ही सही, बीजेपी और ख़ास कर मोदी के राष्ट्रवाद के नैरेटिव में छेद करने के लिए काफ़ी है।