हाल ही में हुए 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले ‘शक्ति’ ऐप का इस्तेमाल, लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के बारे में फ़ीडबैक लेने के लिए पार्टी नहीं करेगी। इसका मतलब यह है कि लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ‘शक्ति’ ऐप के जरिये चुनावी मुद्दों से संबंधित फ़ीडबैक तो पार्टी लेगी लेकिन उम्मीदवारों के बारे में रायशुमारी नहीं करेगी।
कांग्रेस के चुनावी वार रूम में हुई कोर ग्रुप की एक अहम बैठक में ‘शक्ति’ ऐप से उम्मीदवारों के बारे में रायशुमारी करने से पार्टी ने इनकार कर दिया है। दरअसल, हुआ यह था कि कोर ग्रुप की इस बैठक में कांग्रेस के डाटा एनालिसिस विभाग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती विभिन्न मुद्दों पर प्रजेंटेशन दे रहे थे। इस प्रजेंटेशन के जरिये वह बता रहे थे कि आगामी लोकसभा चुनाव में ‘शक्ति’ ऐप की क्या-क्या भूमिका हो सकती है।
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चक्रवर्ती नहीं दे सके जवाब
प्रजेंटेशन के दौरान उन्होंने बताया कि हर लोकसभा सीट पर वहाँ के बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं से उम्मीदवार के बारे में फ़ीडबैक लिया जा सकता है। इससे जीतने की क्षमता वाले उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारने में मदद मिलेगी। इस पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने एतराज़ जताया। वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने फौरन प्रवीण चक्रवर्ती से पूछा कि इस बात की क्या गारंटी है कि फ़ीडबैक देने वाले कांग्रेस कार्यकर्ता ही हैं। यह भी तो हो सकता है कि आरएसएस अपने लोगों को रजिस्टर्ड कराके पार्टी को गुमराह करने के लिए गलत फ़ीडबैक दे दे। उन्होंने और भी कई बिंदुओं पर बात रखी। इन सवालों का जवाब चक्रवर्ती के पास नहीं था।
जयराम रमेश की हाँ में हाँ मिलाते हुए कोर ग्रुप ने चक्रवर्ती को साफ़ तौर पर कह दिया कि वह उम्मीदवारों के चयन के मामले से ख़ुद को, अपने विभाग को और ‘शक्ति’ ऐप को पूरी तरह से अलग रखें। इस मामले में कार्यकर्ताओं से फ़ीडबैक लेने का विचार पूरी तरह से त्याग ही दें।
डाटा एनालिसिस विभाग की कार्य क्षमता को लेकर इस बैठक में और भी कई सवाल उठे। दरअसल, डाटा एनालिसिस विभाग तीन राज्यों में हुई कांग्रेस की जीत का श्रेय भी ख़ुद ही ले रहा है। प्रवीण चक्रवर्ती ने कोर ग्रुप को बताया कि बताया कि इन राज्यों में ‘शक्ति’ ऐप से लिए गए फ़ीडबैक की जीत में अहम भूमिका रही है।
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तेलंगाना में क्यों नहीं मिला फ़ीडबैक?
डाटा एनालिसिस विभाग के मुताबिक़, इन 5 राज्यों में कांग्रेस के 7,20,000 सदस्य हैं। इस पर जयराम रमेश ने ही चक्रवर्ती से पूछा कि अगर डाटा एनालिसिस विभाग तीन राज्यों में कांग्रेस को जीत दिला सकता है तो फिर तेलंगाना में उसे सही फ़ीडबैक क्यों नहीं मिला? इसका कोई जवाब चक्रवर्ती के पास नहीं था।
तेलंगाना में कांग्रेस को इस बार पिछली बार के मुक़ाबले भी कम सीटें मिली हैं। बताया जा रहा है कि डाटा एनालिसिस विभाग के सर्वे के बाद ही कांग्रेस ने वहाँ टीडीपी से गठबंधन किया था। इसका फ़ायदा पार्टी को नहीं मिला उल्टा उसे नुकसान हुआ।
पंजाब में कैसे मिली जीत?
कांग्रेस के एक और नेता ने इस बैठक में सवाल उठाया कि अगर डाटा एनालिसिस विभाग की वजह से कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जीती है तो फिर उसे पंजाब में नहीं जीतना चाहिए था। क्योंकि उस समय यह विभाग था ही नहीं। जब चक्रवर्ती से पंजाब में रजिस्टर्ड कांग्रेस कार्यकर्ताओं का डाटा माँगा गया तो यह देख कर सब सन्न रह गए कि पंजाब में एक भी कार्यकर्ता ने ख़ुद को ‘शक्ति’ ऐप' पर रजिस्टर्ड नहीं करवाया है।
ऐप की क्षमता पर उठाए सवाल
कई नेताओं ने डाटा एनालिसिस विभाग की प्रासंगिकता और ‘शक्ति’ ऐप की क्षमता और विश्वसनीयता पर सवाल उठाए। डाटा एनालिसिस विभाग दावा करता है कि ‘शक्ति’ ऐप' पर क़रीब 68 लाख कांग्रेस कार्यकर्ता रजिस्टर्ड हैं। ये सभी कार्यकर्ता वेरिफ़ाइड हैं। यानी सभी का वोटर आईडी कार्ड नंबर और मोबाइल नंबर विभाग के पास मौजूद है।
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उत्तर प्रदेश में पिछला लोकसभा चुनाव हारे और इस बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे एक नेता ने अपने बूथ का रिकॉर्ड जानना चाहा तो पता चला कि उनके ख़ुद के ब्लॉक में एक भी कार्यकर्ता रजिस्टर्ड नहीं है। ब्लॉक अध्यक्ष से बात करने के बाद पता चला कि उन्होंने 100 लोगों को इस ऐप पर रजिस्टर कराया है। अब यह नेता विभाग से पूछ रहे हैं कि अगर मेरे संसदीय क्षेत्र के कार्यकर्ताओं ने ख़ुद को रजिस्टर कराया है तो फिर आपके पास उसका रिकॉर्ड क्यों नहीं है?
डाटा एनालिसिस विभाग को लेकर और भी कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। कई नेताओं का मानना है कि यह पार्टी के लिए एक सफेद हाथी की तरह है। इस पर पैसा तो पानी की तरह ख़ूब बहाया जा रहा है लेकिन इसका फ़ायदा बहुत कम हो रहा है।
पार्टी के कई नेताओं का मानना है डाटा एनालिसिस विभाग से जुड़ी पूरी टीम हाई-फ़ाई तकनीक का इस्तेमाल करके ख़ुद को राहुल गाँधी की नजरों में चमका रही है। जबकि ज़मीन पर इसका असर बहुत ही कम है।
बग़ैर पूछे क्यों लिया फ़ीडबैक?
डाटा एनालिसिस विभाग को इसके लिए भी बड़े नेताओं की फटकार पड़ी कि उन्होंने दिल्ली में नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर बग़ैर आलाकमान से पूछे कार्यकर्ताओं से फ़ीडबैक क्यों लिया। ग़ौरतलब है कि दिल्ली में 'शक्ति' ऐप के जरिए क़रीब 24000 कार्यकर्ताओं से नए अध्यक्ष के बारे में फ़ीडबैक लिया गया था। इनमें से 80% लोगों ने शीला दीक्षित का नाम लिया था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि इसमें कौन सी रॉकेट साइंस है। सब जानते हैं कि दिल्ली में शीला दीक्षित से बेहतर कोई और नाम कांग्रेस के पास नहीं है। कांग्रेस के तमाम नेता और कार्यकर्ता इस बात को मानते हैं कि दिल्ली में कांग्रेस के पास शीला दीक्षित के नाम और बतौर मुख्यमंत्री 15 साल तक किए गए उनके काम के अलावा भुनाने को कुछ नहीं है। वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ऐसे मुद्दों पर फ़ीडबैक लेना पैसे और संसाधनों की बर्बादी है।यह भी पढ़ें : चुनाव अकेले लड़ने के फ़ैसले से यूपी कांग्रेस में बेचैनी
राहुल गाँधी ने बनाया था विभाग
ग़ौरतलब है कि पिछले साल फ़रवरी में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने डाटा एनालिसिस विभाग का गठन किया था और जाने-माने डाटा एनालिस्ट प्रवीण चक्रवर्ती को इसकी ज़िम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने विभाग का काम संभालने के बाद 'शक्ति' ऐप बनाकर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को उस पर रजिस्टर किया। ताकि पार्टी संगठन और चुनाव से जुड़े मुद्दों पर उनसे सीधे फ़ीडबैक लिया जा सके। साथ ही पार्टी की तरफ़ से कार्यकर्ताओं को संदेश भेज कर उनसे सीधा संवाद स्थापित किया जा सके। हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस ने इस ऐप का इस्तेमाल किया था।
वरिष्ठ नेताओं ने उठाए सवाल
डाटा एनालिसिस विभाग के चेयरमैन प्रवीण चक्रवर्ती ने अपनी भूमिका को बढ़ा-चढ़ाकर भी दिखाया। लेकिन अब उनके विभाग और उनकी ख़ुद की कार्य क्षमता पर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की तरफ़ से सवाल उठने लगे हैं।
कुछ नेताओं को लगता है कि जैसे उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान प्रशांत किशोर ने पार्टी को ठगा, ठीक उसी तरह का काम प्रवीण चक्रवर्ती डाटा एनालिसिस विभाग के जरिए कर रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी को भी इस बारे में आगाह कर चुके हैं। शायद यही वजह है कि अब इस विभाग के पर कतरे जा रहे हैं।