पश्चिमी यूपी में जातीय समीकरण और सैनी-त्यागी भी बढ़ा रहे भाजपा की टेंशन
लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान में दो दिन से भी कम समय बचा है, भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में परेशान करने वाले संकेत दिख रहे हैं। हालांकि यह वही क्षेत्र है, जहां उसने पिछले दशक में हिंदू वोटों के कारण अधिकांश सीटें जीती थीं। क्षेत्र में स्थितियां अब तेजी से बदल रही हैं, कुछ प्रमुख जातियां खुले तौर पर अपनी असहमति दिखा रही हैं और अपने समुदायों से भाजपा का बहिष्कार करने का आह्वान कर रही हैं। हालांकि इसके आधार पर किसी पार्टी के हारने की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। ये सब संकेत मात्र हैं। लेकिन यह मानना होगा कि भाजपा की टेंशन बढ़ गई है।
राजपूतों के अलावा त्यागी और सैनी सहित कई प्रमुख जातियाँ छोटे-छोटे समूहों में पंचायतें कर रही हैं। इन पंचायतों में खुलकर कहा जा रहा है कि भाजपा ने उनके दम पर राजनीति चमकाई और उनके समाज को हासिल कुछ नहीं हुआ।पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वे लोग अपने "कम प्रतिनिधित्व" से असंतुष्ट हैं।
विरोध का सिलसिला 7 अप्रैल को राजपूतों ने सहारनपुर में एक विशाल महापंचायत से शुरू किया था। राजपूत समुदाय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगभग 10 प्रतिशत की बड़ी आबादी होने के बावजूद कम लोकसभा टिकटों सहित कई मुद्दों से नाराज है। गाजियाबाद में जनरल (रिटायर्ड) वीके सिंह की जगह अतुल कुमार गर्ग को लाने के भाजपा के फैसले से समुदाय में नाराजगी फैल गई क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 10 फीसदी मतदाताओं के बीच बस मुरादाबाद से ही राजपूत को एक टिकट मिला। गाजियाबाद में मतदान 26 अप्रैल को है। अतुल गर्ग का टिकट घोषित होने के बाद उनका राजपूत लगातार विरोध कर रहे हैं। जनसभा में मंच पर लड़ाई-झगड़े भी हुए और पुलिस तक शिकायतें पहुंचीं।
यही हालात त्यागी और सैनी समुदाय की भी है। सैनी ओबीसी में आते हैं। गौतमबुद्ध नगर से भाजपा प्रत्याशी डॉ महेश शर्मा के खिलाफ दादरी और आसपास के गांवों में त्यागियों ने पंचायतें की हैं। उनका आरोप है कि महेश शर्मा चुनाव जीतने के बाद गायब हो जाते हैं। अलीगढ़ में भाजपा प्रत्याशी के सामने ही ब्राह्मण समुदाय के युवकों ने रैली निकाली और भाजपा के खिलाफ नारेबाजी की। यहां पर कुछ सीटों के आधार पर आप पश्चिमी यूपी के हालात का अंदाजा लगा सकते हैं।
मेरठ के हालात
इंडिया टुडे ने मेरठ का जातीय समीकरण बताया है। यहां पर 26 अप्रैल को मतदान है।- मुस्लिम: 32%
- जाटव: 15%
- ब्राह्मण, बनिया, पंजाबी: 13%
- जाट: 7%
- गुज्जर: 4%
- राजपूत: 6%
- त्यागी: 6%
- वाल्मिकी और सभी गैर जाटव एससी: 5%
- सैनी: 3%
- अहीर: 1%
- कश्यप प्रजापति और सभी ओबीसी: 8%
मेरठ में बीजेपी ने रामायण टीवी सीरीज फेम अरुण गोविल को टिकट दिया है, जो खत्री/पंजाबी समुदाय से आते हैं। समाजवादी पार्टी ने ओबीसी समुदाय से सुनीता वर्मा को मैदान में उतारा था, जबकि बहुजन समाज पार्टी ने त्यागी समुदाय से देवव्रत त्यागी को मैदान में उतारा है। हालात ये भी है कि अरुण गोविल के समर्थन में किसी जमाने में रामायण सीरियल में सीता बनी कलाकार को मेरठ लाया गया। अब उनकी उम्र हो गई है। जनता सीता को पहचान नहीं सकी। कलाकार को खुद बताना पड़ रहा था कि - अरे भाइयों, मुझे पहचानों, मैं सीता हूं।
जैसे ही भाजपा ने निवर्तमान सांसद की जगह गोविल का नाम घोषित किया, इस लोकसभा क्षेत्र में जाति-आधारित राजनीति तेज हो गई और विपक्षी दल अन्य समुदाय के मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करने में जुट गए। बहुजन समाज पार्टी की नजर मुस्लिम-दलित-राजपूत-त्यागी समुदायों के संयुक्त वोट पर है, जिन्होंने भाजपा के प्रति अपना असंतोष दिखाया है। समाजवादी पार्टी बीजेपी का विरोध करने वाले ओबीसी और अन्य समुदायों के साथ-साथ पारंपरिक मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। आंकड़े खुद ही बता रहे हैं कि चुनाव में किसका पलड़ा भारी हो सकता है।
बिजनौर के हालात
इंडिया टुडे ने बिजनौर का जातीय समीकरण बताया है। यहां पर 26 अप्रैल को मतदान है।- मुस्लिम: 41%
- जाटव: 15%
- जाट: 7%
- गुज्जर: 6%
- सैनी: 6%
- राजपूत: 5%
- ब्राह्मण + वैश्य + पंजाबी और अन्य: 6%
- सभी गैर जाटव एससी: 5%
- अन्य ओबीसी: 4%
- अन्य + शहरी: 5%
समाजवादी पार्टी ने सैनी समुदाय से दीपक सैनी को मैदान में उतारा है। बीजेपी की सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) ने चंदन चौहान को मैदान में उतारा है, जो गुज्जर समुदाय से हैं। बहुजन समाज पार्टी ने चौधरी बृजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है, जो जाट उम्मीदवार हैं।
अखिल भारतीय सैनी महासभा के अध्यक्ष ओमपाल सैनी ने कहा, "सैनी समुदाय भाजपा का पारंपरिक मतदाता रहा है, लेकिन प्रतिनिधित्व की लगातार कमी के कारण, समुदाय अन्य विकल्प भी तलाश रहा है। कुछ लोकसभा सीटों पर हमारी आबादी सबसे बड़ी है।" सैनी समाज की कुछ पंचायतों में खुलकर भाजपा के खिलाफ लोग बोले और वोट न देने का संकल्प लिया। हालांकि हिन्दी अखबारों ने इन पंचायतों को कवरेज नहीं दी। इस इलाके में ज्यादातर हिन्दी अखबार ही चलते हैं।
अमरोहा के हालात
इंडिया टुडे ने अमरोहा का जातीय समीकरण इस तरह बताया है। अमरोहा में 26 अप्रैल का चुनाव है।- मुस्लिम: 42%
- जाटव: 13%
- राजपूत: 8%
- जाट: 7%
- खागी: 7%
- सैनी: 5%
- गुज्जर: 4%
- अन्य: 4%
- वाल्मिकी और सभी गैर जाटव एससी: 4%
- यादव: 2%
- ब्राह्मण + बनिया: लगभग 2%
- अहीर: 2%
- अन्य ओबीसी: 2%
कांग्रेस ने वर्तमान सांसद कुंवर दानिश अली को मैदान में उतारा है, जो बहुजन समाज पार्टी से निष्कासित होने के बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे। भाजपा ने गुज्जर समुदाय से कंवर सिंह तंवर को दोबारा टिकट दिया है, जो पिछला चुनाव दानिश अली से हार गए थे। बहुजन समाज पार्टी ने मुजाहिद हुसैन को मैदान में उतारा है। जहां बीजेपी की नजर एकजुट हिंदू वोट पर है, वहीं इंडिया गठबंधन अनुसूचित जाति के वोटों को लुभाने की कोशिश कर रहा है और दानिश अली के राजपूत वंश का भी इस्तेमाल हो रहा है।
यहां पर दानिश अली एक पीड़ित के रूप में उभरे हैं। संसद में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने उनके खिलाफ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करके जो हरकत की, उसकी देश-विदेश में काफी आलोचना हुई। इसके बाद रही सही कसर बसपा सुप्रीमो मायावती ने पूरी कर दी। मायावती ने दानिश अली को पार्टी से निष्कासित कर दिया लेकिन यह आज तक नहीं बताया कि उन्होंने पार्टी विरोधी ऐसा क्या किया था। संसद में दानिश के साथ जो हुआ, राहुल गांधी फौरन उनके घर मिलने पहुंचे। उन्हें भरोसा दिया। मायावती ने जब अगला कदम उठाया तो दानिश के पास कांग्रेस में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। मोदी और राहुल गांधी की यहां सभाएं हो चुकी हैं। मोदी ने यहां क्रिकेटर मोहम्मद शमी का नाम लेकर वोट मांगा तो दूसरी तरफ दानिश अली को सबक सिखाने की बात कही। इस पर मोदी ने शमी के नाम पर जो वोट मांगा, उस पर पानी फिर गया। बसपा प्रमुख मायावती ने आकर यहां रैली की। लेकिन उनकी रैली में भीड़ नहीं जुट पाई। अमरोहा में राजनीतिक समीकरण अब साफ है।
बागपत के हालात
बागपत में भी 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे। स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक यहां का जातीय समीकरण जानिएः- कुल मतदाताः 16,40,278
- त्यागीः 1.75 लाख
- मुस्लिमः 3.75 लाख
- जाटः 3.50 लाख
- दलितः 3.5 लाख
- यादव, गूर्जर और राजपूतः 2.10 लाख
- सैनीः 30 हजार
बागपत का जातीय आंकड़ा जो भी हो लेकिन इस सीट पर चौधरी परिवार यानी चौधरी चरण सिंह के परिवार का कब्जा अनगिनत वर्षों में रहा है। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के सत्यपाल सिंह मलिक ने आरएलडी प्रमुख और चौधरी चरण सिंह के पोते जयंत चौधरी को हराकर चौधरी परिवार का दबदबा खत्म कर दिया। जयंत चौधरी 2024 में एनडीए गठबंधन के साथ होने के बावजूद यहां से चुनाव लड़ने का साहस नहीं दिखा पाए। हालांकि समझौते में सीट आरएलडी को ही मिली है।
जयंत चौधरी के एनडीए खेमे के साथ जुड़ने से राजनीतिक समीकरण काफी बदल गए हैं। जयंत के लिए यह एक कठिन परीक्षा है। क्योंकि यहां से उनके प्रत्याशी के फिर हारने का मतलब होगा कि जयंत का भाजपा से हाथ मिलाना जाटों और बाकी समुदायों को पसंद नहीं आया। बागपत में त्रिकोणीय मुकाबले में आरएलडी से राजकुमार सांगवान, सपा से अमरपाल शर्मा और बसपा से प्रवीण बंसल मैदान में हैं। दिलचस्प बात यह है कि 1977 के बाद यह पहली बार है कि आरएलडी ने बागपत में चौधरी परिवार के बाहर से किसी उम्मीदवार को मैदान में उतारा है।
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से यह इलाका भी अछूता नहीं रहा। पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम गठजोड़ सब पर भारी पड़ता था। लेकिन उस दंगे ने हालात बदल दिए। दोनों समुदायों के बीच खाई बढ़ गई। हालांकि बीच में किसान आंदोलन फिर से शुरू हुआ तो मुस्लिम उसमें बड़े पैमाने पर शामिल हुए लेकिन वो किसानों के मुद्दों पर एकजुटता थी। दूसरी बात महेंद्र सिंह टिकैत परिवार का प्रभाव। लेकिन चुनाव आते ही दोनों ही समुदाय दो धुरी पर हैं। हालांकि जाट भी भाजपा से खुश नहीं हैं लेकिन वे इसे दिखा भी नहीं रहे हैं। बीच में जाटों और मुस्लिमों की एकता पंचायतें चुनाव के लिए हुईं। इसके लिए जयंत चौधरी ने ही कोशिश की थी। लेकिन जब उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया तो मुस्लिमों ने फिर खुद को ठगा महसूस किया। इसलिए कहा जा सकता है कि बागपत में चुनावी लड़ाई काफी उलझी हुई है। जाटों के वोट पर सारा दारोमदार है। मुस्लिम का नजरिया साफ है। वो गठबंधन के प्रत्याशी के साथ खड़े हुए हैं।
सहारनपुर के हालात
सहारनपुर में पहले चरण में ही 19 अप्रैल को वोट डाले जा चुके हैं। लेकिन 4 जून को नतीजे आने तक यहां के राजनीतिक समीकरणों पर बात होती रहेगी। इंडिया टुडे ने यहां का जातीय समीकरण बताया है-- मुस्लिम: 42%
- जाटव + अन्य एससी: 17%
- राजपूत: 8%
- सैनी: 5%
- गुज्जर: 5%
- कश्यप/कहार: 4
- ब्राह्मण: 2.5%
- पंजाबी + बनिया: 8%
- त्यागी: 2.5%
- जाट: 1.5%
- रोर + अहीर + सिख + कम्बोज: 2%
- विश्वकर्मा+प्रजापति+पाल और सभी ओबीसी: 2.5%
बसपा ने मुस्लिम गाड़ा समुदाय से आने वाले माजिद अली को सहारनपुर से मैदान में उतारा है। विपक्षी इंडिया गठबंधन ने इमरान मसूद को टिकट दिया है, जो हाल ही में असंतुष्ट राजपूत समुदाय के साथ बैठकें कर रहे थे। बीजेपी के लिए शर्मा-ब्राह्मण समुदाय से आने वाले राघव लखनपाल लगातार तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं। 7 अप्रैल को सहारनपुर में ही सबसे पहले राजपूत समुदाय की विशाल रैली ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाति-आधारित राजनीतिक गठबंधन के नए रास्ते खोल थे। इमरान मसूद की स्थानीय राजपूत नेताओं से मुलाकात से बाकी पार्टियों ने भी इस समुदाय को लुभाने की कोशिश की थी। उस पंचायत में राजपूतों ने कहा था- "कोई भी नेता समुदाय से बड़ा नहीं है। इसलिए इस बार, राजपूत केवल उन लोगों का समर्थन करेंगे जो भाजपा को हरा सकते हैं। पश्चिमी यूपी में 10 प्रतिशत वोट शेयर के बावजूद, पार्टी ने समुदाय को केवल एक टिकट दिया है, जबकि अन्य समुदायों को संख्या में कम होने के बावजूद राज्य सरकार में कई टिकट दिए, मंत्री बनाए। पारंपरिक भाजपा मतदाता होने के बहाने राजपूतों को धोखा दिया जा रहा है, लेकिन अब और नहीं।''
मुजफ्फरनगर के हालात
मुजफ्फरनगर में भी पहले चरण में 19 अप्रैल को चुनाव हो चुके हैं। इसे यूपी में हिन्दुत्व की प्रयोगशाला 2013 के दंगों के बाद कहा गया था। लेकिन इस बार हवा भाजपा के पक्ष में उतनी नहीं थी, जितनी पहले हुआ करती थी। इंडिया टुडे ने यहां का जो जातीय समीकरण बताया है-
- मुस्लिम: 36%
- जाटव: 10%
- जाट: 8%%
- राजपूत: 8%
- त्यागी: 5-6%
- सैनी: 4%
- कश्यप/कहार: 5%
- गुज्जर: 3%
- ब्राह्मण: 3%
- वैश्य: 4%
- कोरी वाल्मिकी और सभी गैर जाटव एससी: 4%
- प्रजापति एवं पाल: 6%
- शहरी + अन्य: 4%
भाजपा ने मौजूदा सांसद संजीव बालियान को फिर आजमाया है, जिन्हें क्षेत्र में लगातार विरोध का सामना करना पड़ा। समाजवादी पार्टी ने हरेंद्र मलिक को मुकाबले में उतारा, जबकि बहुजन समाज पार्टी वेदपाल प्रजापति को लेकर आई। त्यागी, राजपूत, सैनी और कश्यप समुदाय के नेताओं का कहना है कि अच्छी खासी आबादी होने के बावजूद उन्हें बीजेपी से चुनाव टिकट नहीं मिला। संजीव बालियान को कथित तौर पर उनकी अनदेखी करने और एक विशेष समुदाय के तुष्टिकरण के लिए प्रमुख जातियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
अखिल भारतीय ब्राह्मण भूमिहार महासभा के अध्यक्ष माने राम त्यागी ने कहा, "पश्चिमी यूपी में त्यागी समुदाय की आबादी बहुत अधिक है। इसके बावजूद, भाजपा ने पिछले कई चुनावों से हमें लगातार नजरअंदाज किया। राज्य विधानसभा में हमारा प्रतिनिधित्व बहुत कम है। राज्यसभा और अब लोकसभा में शून्य। हम भाजपा को यह बताने के लिए पूरे पश्चिमी यूपी में पंचायतें कर रहे हैं कि त्यागी के भाजपा के पारंपरिक मतदाता होने की गलतफहमी इस बार नहीं दोहराई जाएगी। अगर हमें समान प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो हम दिखा देंगे उनके नतीजे क्या होते हैं।"
त्यागी ने कहा- "कुछ समुदायों से इतने सारे प्रतिनिधि और अन्य से बहुत कम प्रतिनिधि क्यों हैं? भाजपा की इस पक्षपातपूर्ण कार्रवाई से उन्हें आगामी चुनावों में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी, और हम इसके लिए तैयारी कर रहे थे। मुजफ्फरनगर उम्मीदवार (संजीव बालियान) ने सभी समुदायों की अनदेखी की, लेकिन भाजपा ने उन्हें फिर भी दोहराया है।"
कैराना के हालात
कैराना में पहले चरण में 19 अप्रैल को वोट पड़े थे। इंडिया टुडे ने यहां का जातीय समीकरण बताया है-- मुस्लिम: 36%
- जाटव: 11%
- जाट: 7%
- गुज्जर: 7%
- सैनी: 7%
- कश्यप: 7%
- राजपूत: 6%
- ब्राह्मण: 2%
- वैश्य + पंजाबी: 4%
- रोर + सिख + कम्बोज + पुरबिया: 3%
- कोरी और सभी गैर-जाटव और एससी: 4%
- शहरी और ओबीसी (विश्वकर्मा+जोगी+प्रजापति आदि): 6%
बीजेपी ने निवर्तमान सांसद प्रदीप चौधरी को टिकट दिया है, जो गुर्जर समुदाय से आते हैं। बहुजन समाज पार्टी ने राजपूत समुदाय से श्रीपाल राणा को टिकट दिया है, जबकि समाजवादी पार्टी ने इकरा हसन को मैदान में उतारा है। कश्यप, सैनी, जाट और राजपूत समुदाय राज्य विधानसभा या संसद में समान प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं, लेकिन भाजपा ने गुर्जर समुदाय से उम्मीदवारों को दोहराया है। इससे बाकी समुदाय खुलकर बोल रहे हैं।
पश्चिमी यूपी के कुछ हिस्सों में अच्छी खासी आबादी रखने वाले सैनी इस सीट से टिकट की मांग कर रहे थे। मिहिर भोज विवाद के दौरान प्रदीप चौधरी और नकुड़ विधायक मुकेश चौधरी की कथित विवादास्पद और 'पक्षपाती' भूमिका से राजपूत समाज नाराज हो गया है। नकुड विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ी आबादी वाले कश्यप समुदाय भी असंतोष दिखा रहे हैं क्योंकि उन्हें भी पूरे पश्चिमी यूपी में पार्टी द्वारा प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है।
एकमात्र राजपूत विधायक, सुरेश राणा, पिछले विधानसभा चुनाव में थाना भवन से हार गए थे, जिससे राजपूत समुदाय में असंतोष पहले से ही चल रहा था। सैनी समुदाय ने नकुड, गंगोह और थाना भवन से विधानसभा टिकट की मांग की, लेकिन उन्हें इनकार कर दिया गया, इसलिए वे पश्चिमी यूपी में समुदाय के नेता के लिए कम से कम एक टिकट की उम्मीद कर रहे थे, जो व्यर्थ निकला। इन सब वजहों ने भाजपा के लिए स्थितियां विपरीत कर दी हैं।
नगीना के हालात
नगीना में पहले चरण में 19 अप्रैल को वोट पड़ चुके हैं। इंडिया टुडे ने यहां का जातीय समीकरण कुछ इस तरह बताया है-मुस्लिम: 46%जाटव: 20%राजपूत: 12%जाट: 5%ब्राह्मण + वैश्य: 4%धोबी और सभी गैर जाटव एससी: 5%सैनी: 5%अन्य एवं सभी एमबीसी: 3%
नगीना एक आरक्षित सीट है। यहां से दलित नेता चन्द्रशेखर आजाद अपनी आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) से मैदान में उतरे। चंद्रशेखर में काफी संभावनाएं हैं। उन्होंने कांग्रेस और सपा दोनों से टिकट मांगा लेकिन किसी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। बसपा ने भी चंद्रशेखर की कोई मदद नहीं की बल्कि बसपा ने सुरेंद्र पाल को मैदान में उतार दिया। इसके बावजूद चंद्रशेखर आज़ाद पारंपरिक अनुसूचित जाति के वोटों के अलावा मुसलमानों और राजपूतों के वोट हासिल करने की भरपूर कोशिश की। बीजेपी ने ओम कुमार को मैदान में उतारा, जबकि समाजवादी पार्टी ने मनोज कुमार को टिकट दिया। पिछले चुनाव में यह सीट बीजेपी से खिसक कर बहुजन समाज पार्टी के पास चली गयी थी। नगीना अगर चंद्रशेखर आजाद को चुनता है तो यह वहां के वोटरों की समझदारी कही जाएगी।