मुजफ्फरनगर, कैराना, सहारनपुर में भाजपा के खिलाफ क्यों नहीं थमा राजपूतों का गुस्सा
टिकट देने में राजपूत समुदाय की कथित उपेक्षा भाजपा को महंगी पड़ने जा रही है। तीन जिलों में राजपूतों ने भाजपा प्रत्याशियों के बहिष्कार का फैसला किया है। ये तीन लोकसभा क्षेत्र हैं- मुजफ्फरनगर, कैराना और सहारनपुर। पीटीआई के मुताबिक किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और इलाके के प्रमुख राजपूत नेता ठाकुर पूरन सिंह ने मंगलवार को खेड़ा इलाके में 'महापंचायत' बुलाई थी. इसमें मुज़फ़्फ़रनाग में फैले चौबीसा राजपूत समुदाय ने भाग लिया। पीटीआई के मुताबिक सिंह ने कहा, "यह बहिष्कार भारतीय जनता पार्टी द्वारा टिकट वितरण में राजपूत समुदाय की उपेक्षा करके उनका अपमान करने के विरोध में किया जा रहा है।"
राजपूतों ने हालांकि पहली पंचायत सहारनपुर के ननौता कस्बे में 6 अप्रैल को थी लेकिन उसके बाद उनकी पंचायतों का सिलसिला रुका नहीं। बताते हैं कि बीच में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन राजपूतों ने समझौते की पेशकश ठुकरा दी।
उन्होंने कहा, "इन क्षेत्रों में राजपूत समुदाय के लोग भाजपा उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे बल्कि उनके स्थान पर अन्य दलों के किसी अन्य मजबूत दावेदार को चुनेंगे।"
बीजेपी ने मुजफ्फरनगर से संजीव बालियान और कैराना लोकसभा सीट से प्रदीप चौधरी को मैदान में उतारा है। बालियान और चौधरी दोनों ही जाट समुदाय से आते हैं और मौजूदा सांसद हैं। सहारनपुर में बीजेपी ने राघव लखनपाल शर्मा को मैदान में उतारा है। 'महापंचायत' ने दावा किया कि उनके द्वारा लिए गए फैसले पश्चिमी यूपी में बीजेपी के पतन का कारण बनेंगे।
राजपूतों की नाराजगी की शुरुआत गुजरात से हुई। पटेल समुदाय से आने वाले बीजेपी नेता व केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने क्षत्रियों पर टिप्पणी कर दी। राजकोट में दलित समुदाय में भजन समारोह में भाग लेने के दौरान रूपाला ने टिप्पणी की कि दलित डटे रहे हैं, लेकिन राजपूत/क्षत्रियों का 'रोटी-बेटी संबंध' कहां था। यहाँ तक कि राजाओं और राजघरानों ने भी अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए, उनके साथ पारिवारिक संबंध बनाए, उनके साथ रोटी बाँटी और यहां तक कि अपनी बेटियों की शादी भी उनसे की। लेकिन हमारे रुखी समाज (एक दलित समुदाय) ने न तो अपना धर्म बदला और न ही ऐसे संबंध स्थापित किए। हालाँकि उन्हें सबसे अधिक सताया गया।' इस टिप्पणी ने गुजरात के क्षत्रियों को आंदोलित कर दिया।
क्षत्रियों ने मोर्चा खोल दिया। रूपाला के समर्थन में जब पाटीदार समुदाय का संगठन आया और पोस्टर चिपकाए तो चुनाव आयोग के अधिकारियों ने यह कहते हुए पोस्टर हटा दिए कि यह चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है। राजपूत समुदाय के लोग अब रूपाला को उम्मीदवारी से हटाने की मांग कर रहे हैं। इस चुनाव में राजकोट से बीजेपी के उम्मीदवार बनाए गए रूपाला द्वारा कई बार माफी मांगने के बावजूद विरोध कम नहीं हो पा रहा है।
ननौता, उत्तरप्रदेश में ठाकुर पूरण सिंह के नेतृत्व में ‘क्षत्रिय स्वाभिमान महाकुंभ– 2’ में लाखों की संख्या में राजपूत एक जाजम पर बैठे। अब इस मिथक को पूरी तरह खारिज मानना चाहिए कि राजपूतों में एकता नहीं है। जब जब आह्वाहन हुआ है हम एक हुए है और अब हम राजनीतिक रूप से भी परिपक्व हो… pic.twitter.com/pFKVVHoiRG
— Mahendra Singh Taratra (@Tharshree) April 8, 2024
गुजरात से उठी चिंगारी पश्चिमी यूपी में पहुंची लेकिन इसमें राजपूतों ने यह मांग भी जोड़ दी कि भाजपा लगातार राजपूतों की राजनीतिक रूप से उपेक्षा कर रही है। नानौता कस्बे में आयोजित पंचायत में हरियाणा, राजस्थान और गुजरात सहित राज्य और देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में क्षत्रिय समुदाय के नेताओं ने भाग लिया। यानी यह पंचायत यूपी स्तर की न होकर अखिल भारतीय बन गई।
ननौता की पंचायत में किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष और क्षत्रिय समुदाय के नेता ठाकुर पूरन सिंह ने कहा कि समुदाय के सदस्य उस पार्टी का समर्थन करेंगे, जो भाजपा उम्मीदवारों को हराने के लिए बेहतर स्थिति में होगी। सिंह ने कहा, ''हमने हमेशा भाजपा का समर्थन किया है, लेकिन भाजपा राजपूत नेताओं को दरकिनार कर रही है... लोकसभा चुनाव के लिए टिकटों के वितरण में हमारे समुदाय को नजरअंदाज किया गया है।'' बता दें कि गाजियाबाद से जब वीके सिंह का टिकट काटकर अतुल गर्ग को भाजपा ने खड़ा किया तो उसका भी राजपूतों ने विरोध किया था। यह सिलसिला उसी समय से चल रहा है।