क्या रमज़ान में मतदान होने से बीजेपी को होगा फ़ायदा?
लोकसभा चुनाव के सात चरणों में से तीन चरणों का मतदान रमज़ान में कराए जाने को लेकर सियासी घमासान शुरू हो गया है। उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक एसपी-बीएसपी, आम आदमी पार्टी, राजद और तृणमूल कांग्रेस ने रमज़ान में चुनाव कराने का कड़ा विरोध किया है। इन तमाम पार्टियों का एक सुर में कहना है कि चुनाव आयोग रमज़ान में मतदान करा कर बीजेपी को फायदा पहुँचाना चाहता है। क्या वाकई ऐसा है इन पार्टियों के आरोपों में कितना दम है, इसकी पड़ताल के लिए हमें कई पहलुओं पर विचार करना होगा।
चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल
रविवार को चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया था कि मतदान की तारीख़ें तय करते समय सभी धर्मों के त्योहारों का ध्यान रखा गया है। लेकिन सात चरणों में होने वाले आगामी लोकसभा चुनाव के मतदान के आख़िरी तीन चरण रमज़ान के महीने में पड़ रहे हैं। इससे मुख्य चुनाव आयुक्त का दावा ग़लत साबित हो जाता है। इससे चुनाव आयोग की मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं।
कांग्रेस ने बनाया था दबाव
चुनाव देर से कराए जाने को लेकर पहले भी कई राजनीतिक दलों ने सवाल उठाए थे। ख़ासकर कांग्रेस ने बाक़ायदा प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वह चुनाव के एलान के लिए प्रधानमंत्री के चुनावी कार्यक्रम ख़त्म होने का इंतजार कर रहा है। कांग्रेस के इशारों पर चुनाव आयोग को सफ़ाई देनी पड़ी थी।ग़ौरतलब है कि 2014 में लोकसभा चुनावों का एलान 5 मार्च को हुआ था। इस बार 10 मार्च को चुनाव का एलान किया गया है। इसी हिसाब से पिछले चुनाव के मुक़ाबले चुनाव आयोग ने 5 दिन तो देर कर ही दी है। मतदान की तारीख 11 अप्रैल से 19 मई के बीच रखी गई है। आख़िरी तीन चरणों का मतदान 6, 12 और 19 मई को होना है। इन तीन चरणों में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में 169 सीटों पर मतदान होगा। इन राज्यों में मुसलिम मतदाताओं की अच्छी-ख़ासी तादाद है। इसलिए इन राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों को लगता है कि रमज़ान की वजह से मुसलिम वोटों का प्रतिशत कम रहेगा इससे उन्हें नुक़सान और बीजेपी को फ़ायदा होगा। इसलिए इन राज्यों में कुछ पार्टियाँ चुनाव आयोग पर तारीख़ बदलने का दबाव बना रही हैं।
क्या चुनाव आयोग जान-बूझकर चुनाव कराने में देर कर रहा है और क्या वह जानबूझकर बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाना चाहता है इसे समझने के लिए पिछले तीन लोक सभा चुनावों के कार्यक्रमों पर नज़र डालनी होगी।
लेकिन मुसलिम समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि रमज़ान के कारण वोट देने में कोई परेशानी होती है, ऐसा कहना ठीक नहीं है। उर्दू साप्ताहिक ‘नयी दुनिया’ के सम्पादक और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी का कहना है कि रमज़ान के दौरान वोटिंग होने से मुसलमानों को कोई परेशानी नहीं होगी और जिन्हें वोट डालना है वे तो वोट डालेंगे ही।
Muslims have no issue with Ramzan. Those that have to vote will vote. Muslim majority countries they run the country, fly planes, run trains do every job during Ramzan. Fasting is the test to curb your yearnings while allowing life to go on https://t.co/lRe7KU9YHg
— shahid siddiqui (@shahid_siddiqui) March 11, 2019
एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि रोज़े के दौरान मुसलमान रोजमर्रा के सभी काम करते हैं। यह कहना कि रमज़ान से मतदान में असर पड़ेगा, पूरी तरह ग़लत है।
Fasting is obligatory on Muslims. We cook, work, clean & take care of our families while fasting. It’s an insult to Muslims to say that Ramzan will affect our voting.
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 11, 2019
In Ramzan, Shaitan is enchained - inshallah one will use their vote to defeat his agents pic.twitter.com/HxfmhHvzML
शायर सलमान ज़फ़र ने कहा कि लोकसभा चुनाव हमेशा से अप्रैल-मई में होते रहे हैं। अब कोई यह कह रहा है कि रमज़ान में चुनाव आयोग ने जानबूझ कर चुनाव रख दिया है तो वह दूसरों को बेवकूफ़ बना रहा है।
आम लोकसभा चुनाव हमेशा से अप्रैल-मई में होता आया है.रमज़ान कभी सितंबर में आता है तो कभी जून-जुलाई में.कभी कड़ाके की ठंड में रोज़ा रखना होता है तो कभी भयानक गर्मी में.अब कोई यह कहे कि रमज़ान में चुनाव आयोग ने जानबूझ कर चुनाव रख दिया है तो वह आपको बेवकूफ बना रहा है। @anasinbox
— Salman Zafar (@ShayarSalman) March 11, 2019
फ़रहान अश्फाक नाम के ट्विटर यूज़र ने लिखा कि रमज़ान को अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल करना बंद करो।
Some Idiots have given one more topic to the #Hinduthwa brigade and a Hate Mongers for upcoming #LokSabhaElections2019
— Farhan Ashfaq (@farhanqaafa) March 11, 2019
We as far as #Muslim as far as #Indian will do both duties Proudly without any trouble. So please stop using #Ramzan for your political gain. #RamzanPollRow
मुहम्मद अज़हर हुसैन ट्वीट कर कहते हैं कि रमजान कभी सितंबर में आता है तो कभी मई में। चुनाव तो 5 साल में आता है। मुसलिम वोटों के ठेकेदार इस भरोसे में हैं कि उन्हें अपने काम से नहीं बल्कि मुसलिम वोटों के दम पर जीत मिलेगी।
रमजान कभी सितंबर में आता है तो कभी मई में। चुनाव तो हमेशा इसी समय वो भी 5 वर्षों में आता है। मुस्लिम वोटों के ठेकेदार ये कह रहे हैं कि मुस्लिम रमजान में कम ही वोट दे पाएंगे। इसका मतलब है कि उनको अपने काम से नहीं बल्कि मुस्लिम वोटों से जीत मिलेगी। @TheSamirAbbas @DrKumarVishwas
— Md. Azhar Husain (@AzharHusain_14) March 11, 2019
कुछ लोगों ने यह भी कहा कि रमज़ान में मुसलमान अमूमन सभी काम करते हैं। वे दुकानें खोलते हैं, दफ़्तर जाते हैं तो फिर वोट देने जाने में क्या परेशानी है और इसे बेवजह ही मुद्दा बनाया जा रहा है।
2004 से शुरू हुआ सिलसिला
दरअसल, अप्रैल-मई में चुनाव कराने का सिलसिला 2004 के चुनाव से शुरू हुआ था। तब लोकसभा चुनाव होने तो अक्टूबर में थे लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने क़रीब 6 महीना पहले ही लोकसभा भंग करने की सिफ़ारिश करके लोकसभा चुनाव जल्दी करा लिए थे। तब से हर 5 साल बाद लोकसभा चुनाव अप्रैल-मई के महीने में हो रहे हैं।
साल 2004 में चार चरणों में चुनाव हुए थे, 20 अप्रैल को 143 सीटों पर, 26 अप्रैल को 137 सीटों, पर 5 मई को 83 सीटों पर और 10 मई को 182 सीटों पर मतदान हुआ था। वोटों की ग़िनती 13 मई को हुई थी। डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई को प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
साल 2009 में पांच चरणों में लोकसभा चुनाव हुए थे। 16 अप्रैल, 22 अप्रैल, 30 अप्रैल, 7 मई और 13 मई को मतदान हुआ था। वोटों की ग़िनती 16 मई को हुई थी। साल 2009 में भी डॉक्टर मनमोहन सिंह ने 22 मई को ही प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी।
साल 2014 में चुनाव आयोग ने पूरे देश में 9 चरणों में चुनाव कराए। तब 7 अप्रैल, 9 अप्रैल, 10 अप्रैल, 12 अप्रैल, 17 अप्रैल, 24 अप्रैल, 30 अप्रैल, 7 मई और 12 मई को मतदान हुआ था। वोटों की ग़िनती 16 मई को हुई थी। बीजेपी की जीत के बाद नरेंद्र मोदी ने 26 मई को बतौर प्रधानमंत्री शपथ ली थी।
इस बार क्यों देर हुई
पिछले तीन लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम से साफ़ है कि हर बार चुनावी प्रक्रिया पिछली बार के मुक़ाबले कुछ दिन पहले शुरू हुई है। साल 2014 में तो 2009 के मुक़ाबले क़रीब 9 दिन पहले चुनावी प्रक्रिया शुरू हो गई थी। ऐसे में यह सवाल उठता है कि जब चुनाव आयोग का पुराना रिकॉर्ड चुनाव वक़्त पर कराने का रहा है तो इस बार आख़िर क्यों चुनाव आयोग ने चुनाव कराने में जल्दबाज़ी नहीं दिखाई।
क्या और आगे जाते चुनाव
क़रीब महीना भर पहले चुनाव आयोग के सूत्रों ने बताया था कि इस बार चुनाव की तारीख़ों का एलान मार्च के पहले हफ़्ते के बजाय दूसरे या आख़िरी हफ़्ते में होगा। यानी चुनाव आयोग की तैयारी चुनावी कार्यक्रम को और आगे ले जाने की थी। ऐसी सूरत में हो सकता था कि तीन के बजाय 5 चरण रमज़ान के महीने में पड़ते। लगता है कि कांग्रेस के दबाव बनाए जाने के बाद चुनाव आयोग ने चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा थोड़ा जल्दी कर दी है।
रमज़ान में मतदान पर होता है असर
रमज़ान के महीने में मतदान होने पर मुसलिम समुदाय का मतदान प्रतिशत कम होने की आशंकाएँ निर्मूल नहीं हैं। पिछले साल उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा समेत देशभर की क़रीब 10 सीटों पर रमज़ान के महीने में हुए उपचुनाव में मुसलिम बहुल इलाक़ों में काफ़ी कम वोट पड़े थे। तब भी रमज़ान के दौरान चुनाव कराए जाने पर चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठे थे। लेकिन तमाम विरोध के बावजूद चुनाव आयोग ने मतदान की तारीख़ें नहीं बदली थीं। तब 28 मई को मतदान हुआ था और 31 मई को वोटों की ग़िनती हुई थी।
इस उपचुनाव में कैराना लोकसभा सीट पर महज़ 54% वोट पड़े थे। जबकि 2014 में हुए आम चुनाव में यहाँ 73% वोट पड़े थे। इसी तरह नूरपुर विधानसभा सीट पर 61% वोट पड़े थे, जबकि 2017 के आम चुनाव में 66.82% वोट पड़े थे। अलग बात है कि तब मुसलिम बहुल इलाक़ों में कम वोटिंग के बावजूद बीजेपी दोनों ही सीटों पर हार गई थी। लेकिन रमज़ान में चुनाव कराए जाने का समाजवादी पार्टी, बीएसपी और राष्ट्रीय लोक दल ने विरोध किया था।
चुनाव आयोग एक स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था है। इसकी ज़िम्मेदारी देश में निष्पक्ष चुनाव कराने की है। यह निष्पक्षता साफ़ तौर पर दिखनी भी चाहिए। अगर कुछ राजनीतिक दल चुनाव आयोग की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं तो उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह उन आशंकाओं का समाधान करे।
चुनाव आयोग से यह सवाल तो बनता ही है कि जब पिछले 3 लोकसभा चुनाव 13 मई तक कराए जा सकते हैं तो फिर क्या इस बार चुनाव एक हफ़्ता पहले घोषित करके रमज़ान शुरू होने से पहले क्यों नहीं कराए जा सकते थे
निष्पक्षता और साख़ पर संदेह
अगर चुनाव आयोग अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहता है कि मतदान की तारीख़ें तय करने से पहले त्योहारों का ध्यान रखा गया है तो उसकी झलक चुनावी कार्यक्रम में भी दिखनी चाहिए। चुनाव आयोग ने 2009 में 2 या 3 दिन के अंतराल से 9 चरणों में 41 दिनों में चुनाव कराए थे। इस बार 9 चरणों की जगह 7 चरणों में 39 दिन का कार्यक्रम है। दो चरणों के बीच 5 से 7 दिन का अंतराल रखने का क्या तुक है यह सवाल चुनाव आयोग की निष्पक्षता और साख़ पर संदेह पैदा कर रहे हैं। संदेह के ये बादल तभी छटेंगे जब चुनाव आयोग इन सवालों के जवाब देगा।