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क्यों रहती है जीडीपी पर सबकी नज़र?

क्यों रहती है जीडीपी पर सबकी नज़र?

जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पर आम जनता ही नहीं, बैंक व वित्तीय संस्थाएं, उद्योग जगत, पूंजी बाज़ार, विदेश निवेशक, विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी सबकी नज़र रहती है। क्यों? आख़िर क्या होता है जीडीपी?

जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद पर आम जनता ही नहीं, बैंक व वित्तीय संस्थाएं, उद्योग जगत, पूंजी बाज़ार, विदेश निवेशक, विदेशी क्रेडिट रेटिंग एजेन्सी सबकी नज़र रहती है। क्यों आख़िर क्या होती है जीडीपी

क्या है जीडीपी

किसी एक साल में देश में पैदा होने वाले सभी सामानों और सेवाओं की कुल वैल्यू को ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट यानी सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)  कहते हैं। इसमें तमाम तरह के उद्योग, कृषि, वित्तीय क्षेत्र, सेवा यानी सबकी साल भर की कुल कमाई जोड़ी जाती है।

इससे पता चलता है कि सालभर में अर्थव्यवस्था ने कैसा काम किया, यानी कितना अच्छा या ख़राब प्रदर्शन किया।

जीडीपी का आँकड़ा कम हुआ तो इसका मतलब है कि देश की अर्थव्यवस्था सुस्त हो रही है और देश ने इससे पिछले साल के मुक़ाबले कामकाज कम हुआ है, उत्पादन कम हुआ है और सेवा क्षेत्र में भी गिरावट रही।

जीडीपी का आकलन कैसे

भारत में सरकारी संस्था सेंट्रल स्टैटिस्टिक्स ऑफ़िस (सीएसओ) साल में चार बार जीडीपी का आकलन करता है, यानी हर तिमाही में जीडीपी का आकलन होता है।  

अर्थशास्त्रिों की राय है कि भारत जैसे विकासशील लेकिन कम आमदनी वाले देश के लिए साल दर साल अधिक जीडीपी वृद्धि हासिल करना ज़रूरी है ताकि बढ़ती आबादी की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। जीडीपी से एक तय अवधि में देश के आर्थिक विकास और उसकी सालाना वृद्धि का पता चलता है।

चार घटक

जीडीपी का आकलन करने के लिए चार घटकों का इस्तेमाल किया जाता है।
  • पहला घटक 'कंजम्पशन एक्सपेंडिचर' यानी खपत पर होने वाला खर्च है। यह सामानों और सेवाओं पर होने वाला  कुल ख़र्च होता है।
  • दूसरा, सरकारी खर्च।
  • तीसरा, निवेश पर होने वाला खर्च
  • चौथा कुल निर्यात। कुल निर्यात का मतलब है कि निर्यात से आयात घटाने के बाद क्या बचता है।  जीडीपी का आकलन नोमिनल और रीयल टर्म में होता है। नॉमिनल टर्म्स में यह सभी वस्तुओं और सेवाओं की मौजूदा क़ीमतों पर वैल्यू है।

वास्तविक जीडीपी

एक मूल आधार साल होता है जिस पर बाद के सारे आकलन किए जाते हैं, इसे बेस ईयर कहते हैं। जब इस बेस ईयर के साथ महंगाई को एडजस्ट किया जाता है, तो हमें रीयल जीडीपी मिलती है। रीयल जीडीपी का मतलब होता है वास्तविक विकास, क्योंकि यह विकास से महंगाई को घटाने के बाद मिलता है।  

जीडीपी के आँकड़े आठ सेक्टरों के कामकाज से इकट्ठा किया जाता है। 

ये 8 कोर सेक्टर हैं- कृषि, उत्पादन, गैस, बिजली, खनन व क्वैरीइंग यानी पत्थर वगैरह की कटाई, वानिकी और मत्स्य, निर्माण व रियल एस्टेट और बीमा व बिजनेस सर्विसेज़।

क्यों है अहम जीडीपी

आम जनता के लिए यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार अपने तमाम वित्तीय व वाणिज्यिक फ़ैसले इसी आधार पर लेती है और तमाम नीतियाँ इसी पर बनाती है। अगर जीडीपी बढ़ रही है, तो इसका मतलब यह है कि देश की आर्थिक गतिविधियाँ पहले से बेहतर रहीं यानी देश में आर्थिक तरक्की हो रही है। 

अगर जीडीपी सुस्त हो रही है या निगेटिव दायरे में जा रही है, तो इसका मतलब है कि आर्थिक गतिविधियाँ पहले से बदतर हुई हैं, सरकार की नीतियोें में कुछ गड़बड़ है और उसे उन पर विचार कर उन्हें ठीक करना चाहिए। 

उद्योग जगत, व्यापारियों, पूंजी बाज़ार के लोगों, बैंक व वित्तीय संस्थानों और घरेलू व विदेशी निवेशकों, सब पर इसका असर पड़ता है और इसलिए ये सभी जीडीपी पर नज़र टिकाए रहते हैं। 

जीडीपी बढ़ने पर ही विदेश निवेशक आते हैं, या नया कामकाज शुरू करते हैं। इसी आधार पर सरकार या निजी कंपनियों को किसी तरह का बाहरी क़र्ज़ या वित्तीय सहायता मिलती है। 

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