अर्थव्यवस्था को छोड़ दिया भगवान भरोसे और कहा 'एक्ट ऑफ़ गॉड'!
सबसे तेज़ वृद्धि दर वाली जीडीपी कुछ ही वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। विकासशील देशों पर या जी-7 देशों पर नज़र डाली जाए तो साफ दिखता है कि भारत -23.9 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ यह स्पेन से भी नीचे जा चुका है।
यह वही अर्थव्यवस्था है जो मौजूदा सरकार के कामकाज संभालते वक़्त दुनिया की सबसे तेज़ी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्था थी। इसकी विकास दर चीन के आसपास थी, वह चीन के बाद दूसरे नंबर पर थी और बाद में उसे पछाड़ कर सबसे ऊपर चला गयी।
सबसे तेज़ से सबसे धीमे
सबसे तेज़ वृद्धि दर वाली जीडीपी कुछ ही वर्षों में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है। विकासशील देशों पर या जी-7 देशों पर नज़र डाली जाए तो साफ दिखता है कि -23.9 प्रतिशत वृद्धि दर के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था यह स्पेन से भी नीचे जा चुकी है।एक नज़र डालते हैं कुछ देशों की अर्थव्यवस्था पर और उनकी जीडीपी वृद्धि दर पर तो स्थिति साफ़ हो जाती है।
अमेरिका
कोरोना की चपेट में आने के बाद जब अमेरिका में बड़े पैमाने पर सोशल डिस्टैंसिंग के नियम कायदे लागू किए गये तो आर्थिक गतिविधियाँ मोटे तर पर ठहर गईं। हर हफ़्ते बेरोज़गारी के नए और पहले से बढ़े हुए आँकड़े आने लगे। डोनल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक आर्थिक पैकेज का एलान किया, बेरोज़गारों को भत्ता देने का एलान किया और लोगों को कुछ दिनों के लिए कुछ पैसे देने की घोषणा भी की।ताज़ा आँकड़े बताते हैं कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था सिकुड़ी है और सकल घरेलू उत्पाद की दर -10.6 प्रतिशत रही है, यानी अमेरिकी अर्थव्यवस्था शून्य से नीचे -10.6 प्रतिशत पहुँच गई है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था में कामकाज पहले से 10.6 प्रतिशत कम हुआ है।
जर्मनी
यूरोप में जर्मनी की अर्थव्यवस्था को अच्छा इसलिए माना जाता रहा है कि निर्यात के अलावा उसकी अर्थव्यवस्था में घरेलू खपत बहुत ज्यादा है। इससे निर्यात कम होने और दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था के खराब होने का असर जर्मनी पर पड़ता तो है, पर घरेलू खपत उसे संभाल लेता है। यानी अर्थव्यवस्था एकदम मुँह के बल नहीं गिरती है। पर इस बार जर्मनी में सकल घरेलू उत्पाद ने -11.9 प्रतिशत की दर दर्ज की है।इटली
इटली पर भी कोरोना की मार पड़ी और वहां की सरकार ने भी लॉकडाउन का एलान किया, जिसे काफी समय तक बरक़रार रखा गया। उसकी अर्थव्यवस्था ने इस दौरान -17.1 प्रतिशत की वृद्धि दर दिखाई, यानी शून्य से नीचे गया।फ्रांस
फ्रांस की अर्थव्यवस्था भी इससे नहीं बच सकी और वहां भी आर्थिक मंदी आई, क्योंकि वहां भी लॉकडाउन की वजह से आर्थिक गतिविधियां काफी समय तक बंद रहीं। फ्रांस की जीडीपी -18.9 प्रतिशत दर्ज की गई।इन यूरोपीय देशों के साथ एक बड़ी दिक्क़त यह है कि ये सभी यूरोपीय संघ में हैं और संघ के 28 देशों की अर्थव्यवस्था से इस तरह गुंथी हुई हैं कि कोई एक देश चाह कर भी लॉकडाउन ख़त्म नहीं कर सकता था। इसके अलावा इनमें से ज़्यादातर शेनजेन के सदस्य हैं। शेनजेन यूरोप के देशों का एक संगठन है, जिसके तहत सीमाएं खुली हुई हैं। इसलिए एक देश अपनी सीमा खोल भी दे तो कुछ नहीं हो सकता। नतीजा यह हुआ कि सब पर एक साथ बुरा असर पड़ा।
ब्रिटेन
ब्रिटेन अब यूरोपीय संघ से निकल रहा है, लेकिन वह अभी तक उसमें ही है और उसकी अर्थव्यवस्था उसके दूसरे देशों से जुड़ी हुई है। हालांकि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था थोड़े समय से संकट में है और यूरोपीय संघ छोड़ने की वजह से इस संक्रमण काल में उसे असुविधा होगी। कोरोना का असर यह हुआ कि ब्रिटेन का सकल घरेलू उत्पाद -22.1 प्रतिशत पर आ गया।स्पेन
स्पेन उन देशों में है जहां कोरोना का असर सबसे पहले और सबसे तीखा दिखा था। कोरोना प्रभावित लोगों के मामले मे एक समय वह अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरे नंबर पर था। स्पेन की जीडीपी -22.7 प्रतिशत पर आ गई।भारत
जहां तक भारत की बात है, यह सवाल उठना लाजिमी है कि केंद्र सरकार ने इस अर्थव्यवस्था को सुधारने या संकट को रोकने के लिए क्या किया। यह सवाल इसलिए भी अहम है कि 2019 में जिस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही, उस समय तक भारतीय अर्थव्यवस्था की सुस्ती साफ़ दिखने लगी थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे यह संकेत मिलता हो कि यह काम 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था की दिशा में बढ़ा हुआ कदम है।उस समय तक विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और मूडीज़ जैसी कई रेटिंग एजेन्सियां कहने लगी थीं कि आने वाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था फिसल सकती है, उन्होंने यह भी कहा था कि सुस्ती शुरू हो चुकी है।
नरेंद्र मोदी सरकार इन सबसे बेखबर रही। उसने अर्थव्यवस्था सुधारने की दिशा में कुछ नहीं किया, कोई कदम नहीं उठाया। मोदी सरकार अटल बिहारी वाजपेयी या मनमोहन सिंह सरकार की तरह किसी पर निर्भर सरकार नहीं है।
गठजोड़ होने के वाबजूद बीजेपी के पास पूरा बहुमत है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद लोकप्रिय नेता हैं। सरकार अप्रिय फ़ैसले भी ले सकती थी और उन्हें लागू कर सकती थी। पर ऐसा नहीं हुआ। इसकी एक वजह यह भी थी कि अर्थव्यवस्था उसकी प्राथमिकता में नहीं थी।
कोरोना की रोकथाम के लिए जिस तरह लॉकडाउन का एलान हुआ, वैसा दुनिया में कहीं नहीं हुआ है। प्रधानमंत्री ने टेलीविज़न पर राष्ट्र को संबोधित किया और उसके चार घंटे बाद लॉकाडाउन लागू हो गया, सब कुछ ठप हो गया, बग़ैर किसी पूर्व तैयारी या जानकारी के।
लॉकडाउन और उस वजह से ठप पड़ी अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार की योजना का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में देशवासियों से सिर्फ 21 दिनों का समय मांगा था और महाभारत के 18 दिनों की याद दिलाई थी। यानी प्रधानमंत्री यह मानते थे कि 21 दिनों में सबकुछ नियंत्रित कर लेंगे और लॉकडाउन हटा लेंगे, अर्थव्यवस्था एक बार फिर चलने लगेगी। नतीजा सबके सामने है।
ऐसी स्थिति में यदि भारत की जीडीपी विकासशील देशों में सबसे नीचे है तो आश्चर्य क्यों
आर्थिक पैकेज
सरकार ने अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर जिस 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज का एलान किया, उसमें से बहुत बड़ा हिस्सा यानी लगभग 18 लाख करोड़ रुपए तो सिर्फ बैंक गारंटी के रूप में है।
बैंक गारंटी की ज़रूरत तो तब हो जब कोई बैंक से कर्ज़ ले और बैंक से कर्ज़ कोई तब ले जब उसे लगे कि उसका कारोबार बढ़ेगा, उसकी कमाई बढेगी। यानी, माँग और खपत बढ़ेगी। लेकिन सरकार ने मांग और खपत बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया।
ऐेसे में क्या होना था जो होना था, वही हुआ है। जीडीपी ऐतिहासिक रूप से न्यूनतम स्तर पर है। कोरोना की वजह से लॉकडाउन दूसरे देशों में भी हुआ है, दूसरी अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर पड़ा है, पर वहां उसे रोकने की कोशिशें भी हुई हैं और उसका असर भी दिखा है।
भारत में अर्थव्यवस्था की गिरावट को रोकने की कोई कोशिश नहीं हुई, उसे पटरी पर लाने का प्रयास नहीं हुआ। इसके लिए जो उपाय किए गए, वे बेमानी थे, उसका कोई मतलब नहीं था। इन उपायों का असर न होना था, न हुआ। हुआ यह कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद शून्य से 23.9 प्रतिशत पर पहुँच गया। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की बात मानें तो यह 'एक्ट ऑफ गॉड' है। फिर तो भगवान के भरोसा सबकुछ है।