बंगाल : धनखड़ के ख़िलाफ़ खुल कर आया वाम मोर्चा, कहा, राज्यपाल ऐसे नहीं होते
पश्चिम बंगाल में राज्यपाल जगदीप धनखड़ का विरोध बढ़ता ही जा रहा है और अब तक चुप रहने वाले लोग भी उनके ख़िलाफ़ मुखर हो रहे हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस के साथ उनकी तनातनी तो चल ही रही थी, विपक्षी वाम मोर्चा ने भी उनका खुल कर विरोध किया है और राज्यपाल के रूप में उनकी भूमिका पर गंभीप सवाल उठाए हैं।
पश्चिम बंगाल में सीपीआईएम की अगुवाई वाले वामपंथी दलों के गठबंधन वाम मोर्चा ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। वाम मोर्चा अध्यक्ष विमान बोस ने कहा,
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राज्यपाल बीजेपी के आदमी नहीं हैं, पर उनका व्यवहार वैसा ही है। राज्यपाल का यह काम नहीं हो सकता है। वे अपनी पहचान बीजेपी के आदमी के रूप में कर रहे हैं। यह ठीक नहीं है। राज्यपाल की यह भूमिका, ख़ास कर, पश्चिम बंगाल में ऐसी नहीं हो सकती है।
विमान बोस, अध्यक्ष, वाम मोर्चा
ममता-धनखड़
विमान बोस का यह बयान ऐसे समय आया है जब तृणमूल कांग्रेस और राज्यपाल के बीच ठनी हुई है। एक दिन पहले ही राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखी अपनी चिट्ठी को ट्वीट कर सार्वजनिक कर दिया। उन्होंने उसमें खुले आम कहा कि जिन लोगों ने सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं दिया, उन्हें मजा चखाने के लिए हिंसा हुई, उन्हें मारा पीटा गया, हत्या हुई। राज्यपाल ने यह भी कहा कि यह लोकतंत्र के ख़िलाफ है। ऐसे में मुख्यमंत्री ने कोई कदम नहीं उठाया, जिससे लगता है कि राज्य की सहमति से यह सबकुछ हुआ।
वाम मोर्चा प्रमुख का यह बयान इसलिए अहम है कि राज्यपाल की भूमिका पर वह अब चक चुप रहा है। सीपीआईएम नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के बीमार पड़ने पर राज्यपाल उन्हें देखने उनके घर तक गए थे।
इंदिरा-वाजपेयी के भेजे राज्यपाल
विमान बोस का यह बयान इसलिए भी अहम है कि इसके पहले वाम मोर्चा शासन काल में ऐसे कई मौके आए जब तत्कालीन राज्यपालों से राज्य सरकार की नहीं बनी और उनके बीच का मतभेद खुल कर सामने आ गया था।
इंदिरा गांधी की ओर से भेजे गए भैरव दत्त पांडेय हों या अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से भेजे गए वीरेन जे शाह, वाम मोर्चा सरकार से उनकी नहीं बनी।
तत्कालीन मुख्यमंत्र ज्योति बसु ने बग़ैर राज्य सरकार के परामर्श के बी. डी. पांडेय को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाने का विरोध किया था। लेकिन वे 1981 से 1983 तक राज्यपाल बने रहे।
वीरेन जे शाह बीजेपी सांसद और पार्टी कार्यकारिणी के सदस्य थे, उन्हें वाजपेयी सरकार ने 1999 में पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया और वे उस पद पर 2004 तक रहे। वीरेन शाह ने भी राज्य में हिंसा का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कई बार राज्य सरकार की आलोचना भी की थी।
महात्मा गांधी के पोते और देवदास गांधी के बेटे गोपाल कृष्ण गांधी 2004 से 2008 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे। उनके समय भी राज्य में राजनीतिक हिंसा हुई और उन्होंने भी राज्य सरकार की आलोचना की थी।
सबसे हट कर धनखड़
लेकिन इन तीनों राज्यपालों ने राज्य सरकार की कुछेक मुद्दों पर ही आलोचना की थी और वह बहुत ही शांत व सधी ही भाषा में थी। इन आलोचनाओं के बावजूद ज्योति बसु या बुद्धदेव भट्चार्य से उनके सौहार्द्रपूर्ण रिश्ते बने रहे।
लेकिन मौजूदा राज्यपाल के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। जगदीप धनखड़ पर खुले आम आरोप लग रहे है कि वे राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं, वे अपनी संवैधानिक सीमाओं का जानबूझ कर उल्लंघन कर रहे हैं, एक तरह से उन्होंने राज्य सरकार व मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल रखा है।
पर्यवेक्षक तो यहाँ तक कहते हैं कि पहले वाम मोर्चा, कांग्रेस और अब तृणमूल कांग्रेस विपक्ष के रूप में जितने तीखे हमले नहीं किए, उससे अधिक ज़ोरदार हमले महामहिम राज्यपाल राज्य सरकार पर कर रहे हैं।