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नेताओं के बोलः अपने-अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकते ये लोग

नेताओं के बोलः अपने-अपने गिरेबान में क्यों नहीं झांकते ये लोग

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने विधानसभा में सेक्स शिक्षा पर कुछ बातें कहीं। लेकिन भाजपा के नेताओं समेत तमाम दलों के नेताओं ने शोर मचा दिया। राष्ट्रीय महिला आयोग कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर नहीं आया। लेकिन इन दलों के नेताओं ने कभी अपनी ही पार्टी के नेताओं के महिला विरोधी बयानों और चरित्र पर नजर नहीं डाली। पूर्णियां यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर रोकैया बशरी का विश्लेषण पढ़िएः

आज कल की राजनीति को देख कर अनायस ही संत कबीर दास जी का एक दोहा याद आता है...

“बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि,

हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।”

यह दोहा महज़ लफ़्ज़ों की लय मात्र नहीं है, इन दो पंक्तियों ने अपने आप में जीवन का बहुत बड़ा ज्ञान समेटा हुआ है और यह ज्ञान इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज के दौर में जब सोशल मीडिया के जरिए कोई भी खबर मिनटों में कहीं भी पहुंच जाती है, और जंगल में लगी आग के तरह फ़ैल भी जाती है ,तो ऐसे वक्त में ये ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है के कोई इंसान सोच समझ कर बोले और ख़ास तौर पर जब कोई व्यक्ति किसी गणमान्य पद पर विराजमान हो तो ये ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। जहां बोलने से भाषा का प्रयोग बहुत सोच समझ कर और पद की गरिमा का ख़्याल रखते हुए करना बेहद ज़रूरी होता है।

परंतु आज कल देश में लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद से लेकर विधान सभा तक जिस तरह की ओछी भाषा का प्रोयोग हो रहा है वो न केवल अमर्यादित है अपितु भरतीय संस्कृति और देश के गरिमा को ज़मीदोज़ करने वाला है।

बिहार में सुशासन बाबू के द्वारा दिया गया बयान भी इसी  फ़ेहरिस्त का एक हिस्सा है। जिस की राज्य से लेकर देश भर में निंदा की जा रही और भरसक करनी भी चहिए। प्रदेश के सरवोच्च पद पर विराजमान व्यक्ति अगर अपने पद की गरिमा को ताक पर रख कर गली नुक्कड़ पर होने वाली भाषा का प्रयोग करे तो बेशक निंदा होनी चहिए। ये बात अलग है कि इसके पीछे मुख्यमंत्री का इरादा ग़लत नहीं था। भाषा आपत्तिजनक थी और इस पर विरोध लाज़मी है और अच्छी बात ये है के पूरा देश एकजुट हो कर इसका विरोध कर रहा है।

महिला संगठन से लेकर महिला संसद और ख़ास तौर से महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी जी, जो देश की बेटियों के साथ हाथरस जैसे दिल दहलाने वाले मामले हो या हालिया बनारस हिन्दू विश्विद्यालय की छात्रा के साथ हुआ दुराचार हो,ऐसे गंभीर मुद्दों पर भी चुप रहने वाली मंत्री महोदया भी भर- भर कर नीतीश कुमार की आलोचना कर रहीं हैं। विपक्ष के तमाम नेतागण एक सुर में इसका विरोध कर रहे हैं और करनी भी चाहिये।...परन्तु कुछ सवाल हैं जिसका जवाब जानना जनता का हक़ है।...

जब बिहार में विपक्ष में बैठी पार्टी केंद्र में सत्ता में होती है और उनके पार्टी के सांसद रमेश बिधूड़ी विपक्ष के सांसद कुँवर दानिश अली पर अमर्यादित टिप्णी करते हैं और उन्हें विशेष धर्म से संबंधित होने के आधार पर नस्लीय गालियां देते हैं। लोकतंत्र के सबसे बड़े पंचायत में ये सब लाइव चलता है। जनता तब भी इस घटना को लोकतंत्र पर धब्बा बताते हुए इस दुर्घटना की निंदा करती है। लेकिन तब सत्ता पक्ष इस मामले पर कोई करवाई क्यों नही करता ?

नीतीश कुमार के अमर्यदित बयान पर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा मांगने वाली सत्तारूढ़ पार्टी बिधूड़ी मामले में चुप्पी क्यों साध लेती है? मुख्यमंत्री मंत्री के भाषण से महिलाओं के प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है ,और यक़ीनन बयान शर्मनाक था। लेकिन भाजपा अपने चहेते संसद बृजभूषण के द्वारा महिला रेसलर के साथ किए गए कथित दुराचार पर गूंगी और बाहरी हो जाती है।


भारत की जानी-मानी महिला खिलाड़ी लगातार प्रदर्शन करती रहीं और गद्दीनशीन अपने चहेते संसद के दामन के दाग़ को छुपाने मैं लगे रहे। महिला खिलाड़ियों की पीड़ा सुनने और उस का समाधान करने के बरअक्स उनके साथ बदसलूकी की गई ,उन्हें गिरफ्तार किया गया पुलिस द्वारा अशोभनीय व्यवहार किया गया। और वो महिलाएं कोई आम महिला नही थीं वो दुनियाभर में भारत के तिरंगे का शान बढ़ाने वाली महिलाएं थी।

और विडम्बना ये है कि उनके लिए महज़ शब्द मात्र का प्रयोग नही हुआ था । उनके साथ तो शारीरिक उत्पीड़न हुआ था लेकिन तब ये तथा कतिथ नारी सम्मान वाले लोगों को क्या सांप सूंघ गया था? उस समय क्यों इनको महिला खिलाड़ी की इज़्ज़त का और उनके नारी होने का ख़याल नही आया?

क्यों आज शब्द मात्र से आघात हो जाने वाली महिलाएं , यौन उत्पीड़न जैसे दुराचार पर भी चुप रहीं? क्या अब महिलाओं की इज़्ज़त, उनके मान-सम्मान का भी राजनीतिकरण किया जाएगा??


सत्ता पक्ष में गणमान्य पद पर बैठे ऐसे कई नेता है जो सरे आम महिलाओं के लिए नगर वधु,और भी बहुत सी अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं। पर सत्ता में बैठे सुप्रीम लीडर या मंत्रिमंडल में शामिल लोगों से लेकर आला कमान सब चुपचाप तमाशाबीन क्यों बने रहते हैं। या आज के राजनीतिक समीकरण में वाक़ई में ग़लत सही का पैमाना बदल गया है?

क्या किसी पार्टी विशेष को कुछ भी बोलने और करने की खुली छूट मिल गई है??


यक़ीनन नीतीश कुमार की भाषा अमर्यादित थी,लेकिन उनका उद्देश्य ग़लत नही था। और ग़लती तो इंसान से ही होती है। और मुख्यमंत्री ने अपने मानव जाति के होने का प्रमाण देते हुए अपनी स्वयं की निंदा की और माफ़ी मांगी। परंतु क्या केंद्र पर बैठी सत्ता रूढ़ पार्टी के लोग कभी अपने ग़लत व्यवहार के लिए माफ़ी मांगेंगे? क्या पार्टी के आला कमान अपने छोटभाईया मानसिकता वाले बड़े नेताओं के अमानवीय कृत्यों की निंदा करेंगे?

और आख़िरी सवाल, महिलाओं पर चंद शब्द बोलने पर नीतीश कुमार से इस्तीफा मांगने वाले विपक्ष के नेता 4 महीने से भी अधिक समय से मणिपुर की औरतों के साथ हो रहे अत्याचार पर चुप रहने पर,क्या अपने महामहिम से इस्तीफा मांगेंगे? क्या देश के प्रधान नेता मणिपुर की अवहेलना करने और उस पर चुप्पी साधे रहने के लिए अपनी निंदा करेंगे?

या सत्ता रूढ़ पार्टी की हर ग़लती माफ़ है? भारत एक लोकतांत्रिक देश है ,और हमारा संविधान सबके लिए सामान न्याय की बात करता है। ऐसे में सत्ता हो या विपक्ष, दोनों के लिए इंसाफ का तराज़ू एक ही होना चाहिए।

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